भिलाई। कथा व्यास पूज्य जया किशोरीजी का मानना है कि तेजी से बदलते सामाजिक एवं पारिवारिक ताना-बाना के बीच आज लोग व्याकुल हो रहे हैं। अपनी व्यस्तता के बीच एकल परिवारों में बच्चों में संस्कारों के बीज बोना बेहद मुश्किल होता जा रहा है। इससे बचा जा सकता है, यदि बच्चों को बचपन से ही ईश्वर के मार्ग पर डाल दिया जाए। संस्कारवान बच्चों के पथभ्रष्ट होने या माता-पिता तथा अन्य ज्येष्ठों में आस्था गंवाने का प्रश्न ही नहीं उठता। [More]‘नानी बाई रो मायरो के लिए यहां पहुंची कथाव्यास ने सवालों का जवाब देते हुए कहा, यह सही है कि माता-पिता यह महसूस कर रहे हैं कि उनके पास अपने बच्चों के लिए वक्त नहीं है। एकल परिवारों में बच्चों के सिर पर दादा-दादी या नाना-नानी का भी हाथ नहीं होता। ऐसे में उनका व्याकुल होना स्वाभाविक है। किन्तु यह वस्तुस्थिति नहीं है। यदि हम ठान लें कि हमें प्रतिदिन अपने बच्चों के साथ एक-दो घंटे व्यतीत करने हैं। उनके साथ खुले मन से वार्तालाप करना है तो इसके लिए वक्त निकाला जा सकता है। एक उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि उनकी एक परिचित हैं जो कामकाजी हैं। उन्हें घर लौटते सात या कभी कभी आठ भी बज जाते हैं। पर इसके बाद भी वे अपने बच्चों के लिए वक्त निकालती हैं। वे अपने बच्चों के होमवर्क चेक करती हैं, होमवर्क करने में उनकी मदद भी करती हैं। बच्चों को इतना वक्त तो हमें देना ही होगा।
माता पिता बच्चों को बचपन में ही दें संस्कार
संस्कारों की चर्चा करते हुए वे कहती हैं कि बच्चा कच्चा घड़ा होता है। उसे आकार दिया जा सकता है। यदि आपके पास ज्यादा वक्त नहीं भी है तो स्वयं ईश्वर में आस्था रखें और अपने बच्चों को भी अपने साथ पूजा पाठ में शामिल करें। उसमें संस्कार डालें। हंसते हुए वे कहती हैं कि बचपन में यदि किसी बच्चे से कहा जाए कि झूठ बोलने पर नाक लंबी हो जाती है, या यह कहा जाए कि छिपकर किए गए गलत कार्य को भगवान देख लेता है तो वह इसे सहज रूप से स्वीकार कर लेगा। किन्तु यही बात यदि पढ़े-लिखे बड़े बच्चे से कही जाए तो उसके लिए इसपर यकीन करना मुश्किल होगा और वह तर्क वितर्क करेगा।
माता-पिता दोनों की जिम्मेदारी
जया किशोरी ने कहा कि बच्चों की परवरिश माता और पिता दोनों की संयुक्त जिम्मेदारी है। यदि माता के पास ज्यादा वक्त नहीं है तो पिता को यह जिम्मेदारी निभानी चाहिए। अपना उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा, ‘मैने 7 साल की उम्र से ही भजन प्रस्तुत करना शुरू कर दिया था। अकसर पिता के साथ ही भजन गाने जाया करती थी। इसलिए मेरा तादात्म्य पिता से ही ज्यादा जुड़ा है। मैं अपने पिता से सभी प्रकार की बातें कर सकती हूं। हम दोनों परफेक्ट फ्रेंड्स हैं। हम किसी भी विषय पर बात कर सकते हैं, राय मशविरा कर सकते हैं। उनके पास अनुभव है। मैं उनके अनुभव का लाभ लेती हूं। पर मेरी बहन मां के ज्यादा करीब है। वह अपनी सारी बातें मां के साथ ही साझा करती है। वह अभी 12वीं कक्षा में पढ़ती है जबकि मैं बी.कॉम की छात्रा हूं। अब वह कुछ बातों में मेरी सलाह लिया करती है। परिवार में एक दूसरे का यह सपोर्ट होना बहुत जरूरी है।Ó
सेवा में ही सुख
पूज्य कथा व्यास कहती हैं कि सेवा में जो सुख है, वह और किसी उपलब्धि में नहीं है। हमें जरूरतमंदों की सेवा करनी चाहिए। इस विशाल देश में करोड़ों ऐसे लोग हैं जिनके पास कुछ नहीं है। हमें यथा साध्य उनकी मदद कर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश करनी चाहिए। हम भी नारायणपुर सेवा संस्थान उदयपुर के तहत यही कर रहे हैं। हमारी सूची में विकलांग सबसे ऊपर हैं। हमारी संस्था विकलांगों का नि:शुल्क इलाज करती है। उनकी सर्जरी कर उनका आत्मविश्वास बढ़ाने की कोशिश करती है। उन्हें जॉब स्किल्स सिखा कर आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास करती है। यही नहीं हम उनकी शादी भी करवाते हैं। विकलांगों का विवाह कराते समय हमारी पूरी कोशिश होती है कि जोड़ा एक दूसरे का पूरक बन सके। यदि कोई पांव से लाचार है तो उसकी जोड़ी किसी ऐसे व्यक्ति के साथ बनाने की कोशिश की जाती है जो चलने फिरने में सक्षम हो। एक सुनने वाला हो तो दूसरा श्रवण बाधित हो सकता है। इस तरह से उनकी जिन्दगी आसान हो जाती है। हम विधवाओं, निराश्रितों की भी मदद करते हैं। मैं और मेरे पिता, भजन, कथा एवं भागवत से मिलने वाली पूरी राशि का 90 फीसदी हिस्सा इन्हीं सेवा कार्यों में लगा देते हैं। उन्होंने बताया कि यदि भागवत या नानी बाई रो मायरो का आयोजन करवाने वाला यह आयोजन किसी गौशाला, पाठशाला या अन्य शुभकार्य के लिए न करवा रहा हो तो इसमें आने वाले दान की राशि का 90 फीसदी नारायण सेवा संस्थान को ही जाता है।
मोदी बना सकेंगे विश्वगुरू
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की क्षमताओं में अपनी गहरी आस्था जताते हुए पूज्य जया किशोरी ने कहा कि भारत के विश्वगुरू के रूप में उभरने की बातें तो बहुत लोग करते हैं किन्तु मुझे ऐसा लगता है कि मोदी ऐसा कर सकते हैं। वे संस्कार और व्यापार को एक साथ लेकर चलते हैं। वे जापान जाते हैं तो वहां गीता देकर बुलेट ट्रेन लेकर आते हैं। वे विश्व में एक नई व्यवस्था लाने के लिए पहल कर रहे हैं और लोग उन्हें सुन रहे हैं, समझ रहे हैं, फालो कर रहे हैं।
कन्या भ्रूण हत्या को रोकना ही होगा
जया किशोरी ने कहा कि कन्या भ्रूण हत्या को हर हाल में रोकना होगा। कन्या भ्रूण हत्या के लिए दहेज प्रथा को दोषी ठहराते हुए उन्होंने कहा कि भले ही हम कन्या को लक्ष्मी कहें किन्तु अधिकांश परिवारों में कन्या के जन्म का मतलब संपत्ति का ह्रास होता है क्योंकि वह दहेज लेकर जाती है। वे पुत्र चाहते हैं क्योंकि पुत्र दहेज के रूप में संपत्ति लेकर आता है। दहेज गरीब एवं निम्न मध्यवर्गीय परिवारों के लिए एक गंभीर समस्या है। इसलिए लोग कोख में ही कन्या भ्रूण की हत्या करवा देते हैं। पर कन्या को बोझ समझना गलत है। कन्या भी वे सारे काम कर सकती है जो पुत्र करता है। आज कन्या प्रत्येक क्षेत्र में खुद को साबित कर रही है। घर की सारी जिम्मेदारियां भी उठा रही हैं। मैं लोगों को स्वयं अपना उदाहरण देती हूं। मैं भी कन्या हूं। बल्कि हमारे घर में संतान के रूप में हम सिर्फ दो बहनें ही हैं। हमारे माता पिता ने कभी हमारे साथ भेदभाव नहीं किया। कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ लोगों को प्रेरित करना, मेरे जीवन का मकसद है।
नानी बाई रो मायरो
कथाव्यास जया किशोरी ने कहा कि उनका बचपन भक्तिरस से ओतप्रोत था। पिता भजन गाया करते थे। उसने भी अपने पिता के साथ भजन गाना शुरू कर दिया। अपने कानों को हाथ लगाते हुए वे कहती हैं कि इसके बाद उन्होंने स्वामी श्री रामसुन्दरजी महाराज से गायन की शिक्षा ली। 8 साल की उम्र में उनकी पहली सीडी आई। फिर भागवत का ज्ञान हासिल किया। अब वे भागवत भी करती हैं। नानी बाई रो मायरो सुनाते हुए उनके पिता रो पड़ते थे। इसने उन्हें भीतर से आंदोलित कर दिया। यह कथा शुरू होती है नरसी मेहता से। नरसी मेहता का ईश्वर में अनुराग था। वे अपना पूरा समय ईश्वर के भजन कीर्तन में ही व्यतीत करते थे। उनका विवाह हुआ। गौना भी हुआ पर वे खुद को बदल नहीं सके। घर का पूरा बोझ उनके बड़े भाई पर पड़ रहा था। काम धाम नहीं करने के लिए उन्हें भाभी की उलाहना का भी सामना करना पड़ता। फिर एक दिन उन्होंने घर छोड़ दिया। घर छोड़कर वे जंगल में पहुंच गए। यहां उन्हें एक पुराना शिवालय दिखा जो गंदगी से अटा पड़ा था। उन्होंने वहां स्थापित शिवलिंग को अपनी आगोश में ले लिया और वहीं पड़े रहे। शिवजी ने प्रसन्न होकर उनसे वर मांगने को कहा तो उन्होंने ईश्वर को ही मांग लिया। शिवजी के साथ वे श्रीकृष्ण के सान्निध्य में आए। श्रीकृष्ण उनके भक्तिभाव से गदगद हो गए। इसके बाद वे लौट आए। अपने परिवार को लेकर अलग रहने लगे। पर उनकी दिनचर्या पहले जैसी ही बनी रही। वे दिन भर भजन कीर्तन करते और अपनी आंखों से देखी रास लीला का वर्णन करते। इस बीच उनके यहां एक पुत्र और एक पुत्री का जन्म हुआ। पुत्र की बीमारी से अकाल मृत्यु हो गई। जब पुत्री नानीबाई की बेटी के ब्याह का समय आया तो नानीबाई को अपने दिवंगत भाई की याद सताने लगी। ऐसे समय में श्रीकृष्ण उनके भाई के रूप में माता रुक्मणी के साथ पहुंचे। उन्होंने 56 करोड़ की मायरा रस्म अदायगी की।
ye katha mere dil ko utsahit karti h