दुर्ग। शासकीय विश्वनाथ यादव तामस्कर स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय में नवगठित छत्तीसगढ़ इतिहास परिषद के प्रथम अधिवेशन एवं राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन छत्तीसगढ़ हिन्दी ग्रंथ अकादमी के संचालक रमेश नैय्यर के मुख्य आतिथ्य तथा भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के पूर्व सदस्य, सचिव और नेहरू स्मृति संग्रहालय एवं पुस्तकालय के फैलो प्रो. प्रभात कुमार शुक्ला की उपस्थिति में सम्पन्न हुआ। रमेश नैय्यर ने कहा कि औपनिवेशिक दौर में अंग्रेजों ने सारे देश में किसानों को गरीब बनाये रखने की रणनीति अपनायी ताकि किसान परिवारों से मजबूर नौजवान अंग्रेज सेना में भर्ती हो सकें। किसानों का शोषण तब से लेकर आज तक योजनाबध्द तरीके से जारी है। उन्होंने कहा कि किसान राजनीति का इस्तेमाल नहीं कर पाते लेकिन राजनीति अक्सर किसानों का इस्तेमाल करती हैं। read moreउद्घाटन समारोह की अध्यक्षता प्राचार्य डॉ. सुशील चन्द्र तिवारी ने की। इस अवसर पर विशेष अतिथि के रूप में पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के पूर्व इतिहास विभागाध्यक्ष डॉ. एम.ए. खान तथा छत्तीसगढ़ इतिहास परिषद के अध्यक्ष डॉ. आभा पाल उपस्थित थे।
श्री नैय्यर ने कहा कि मनुष्य के सभ्य होने का प्रमाण एक तरफ काव्य है और दूसरी तरफ कृषि। पेशावर से दिल्ली तक पंजाब और ढाका से कलकत्ता तक बंगाल एक था, लेकिन राजनीति ने उसे भौगोलिक खण्डों में बांट दिया। लेकिन जब इतिहास लिखा जाता है तो वह खण्डों में नहीं बंटा होता। श्री नैय्यर ने छत्तीसगढ़ के सम्पूर्ण इतिहास पर तीन खण्डों में एक वृहद ग्रंथ छत्तीसगढ़ हिन्दी ग्रंथ अकादमी से प्रकाशित करने की घोषणा की तथा इसके लिए छत्तीसगढ़ इतिहास परिषद से जुड़े इतिहासकारों एवं अध्येताओं से सामग्री संकलित करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि रायपुर, सरगुजा और बस्तर अंचल के विद्वानों की समिति बनाकर यह कार्य किया जायेगा।
प्रो. प्रभात कुमार शुक्ला ने कृषक, श्रमिक एवं आदिवासी आंदोलन- 1850-1910 विषय पर केन्द्रित संगोष्ठी का विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि मजदूर किसान आंदोलन राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलन का हिस्सा है। मजदूर, किसान और आदिवासियों ने गुलामी के दौर में अपनी मुक्ति की लड़ाई लड़ी क्योंकि अंग्रेजों ने बहुत बड़े पैमाने पर उनका शोषण किया था। इसका अनुमान सिर्फ इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि अंग्रेजों ने समूचे भारत से वसूले गये राजस्व का बड़ा हिस्सा इंग्लैण्ड में हुई औद्योगिक क्रांति के लिए खर्च किया जो देश के सकल घरेलू उत्पाद का 5 प्रतिशत से अधिक था। उन्होंने कहा कि आदिवासी आंदोलनों में व्यापक सामुदायिक चेतना विकसित हुई जो दुर्भाग्य से वर्ग चेतना में परिवर्तित नहीं हो सकी।
प्रो. एमए खान ने भारत के विभिन्न भागों में अंग्रेजी साम्राज्य के समय से लेकर आज तक के विभिन्न किसान और आदिवासी विद्रोहों का उल्लेख करते हुए कहा कि किसान मजदूर और आदिवासी समान रूप से औपनिवेशिक शोषण का शिकार थे। इस रूप में वे अलग अलग नहीं बल्कि एक हैं। आज भी उनका शोषण जारी है। विडंबना है कि आज खुली अर्थव्यवस्था में हर उत्पादक को अपने उत्पादन की कीमत तय करने का अधिकार है, सिर्फ किसान को नहीं।
छत्तीसगढ़ इतिहास परिषद के अध्यक्ष डॉ आभा पाल ने कहा कि क्षेत्रीय इतिहास को विशेष महत्व दिये जाने की आवश्यकता है, क्योंकि वह राष्ट्रीय इतिहास का स्रोत है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ सुशील चन्द्र तिवारी ने छत्तीसगढ़ इतिहास परिषद के गठन एवं महाविद्यालय में इसके प्रथम अधिवेशन पर प्रसन्नता जाहिर करते हुए शोधार्थियों का आह्वान किया कि किसी भी क्षेत्र का इतिहास लेखन के समय वहां उपलब्ध निष्पक्ष क्षेत्रीय स्रोतों को भी महत्व दिया जाना चाहिए तथा क्षेत्रीय एवं राष्ट्रीय इतिहास की प्रामाणिकता एवं सामंजस्य का ध्यान अवश्य रखा जाना चाहिए।
आरंभ में प्राचार्य डॉ सुशील चंद्र तिवारी, डॉ एमके पाण्डेय, डॉ राजेन्द्र चौबे, डॉ ज्योति धारकर, डॉ शीला अग्रवाल, डॉ मीता चक्रवर्ती एवं डॉ वेदवती मण्डावी ने अतिथियों का स्वागत किया। विद्यार्थियों ने स्वनिर्मित मूर्तियां अतिथियों को भेंट की।