भिलाई। छत्तीसगढ़ में पदस्थ एसटीएफ के जवानों के लिए दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन अपोलो बीएसआर अस्पताल में किया गया। इस अवसर पर विशेषज्ञ चिकित्सकों ने विभिन्न रोगों से बचने, प्राथमिक उपचार देने तथा अपने घायल साथी की जान बचाने के लिए बेहद उपयोगी टिप्स दिए। इस अवसर पर अपोलो बीएसआर के प्रयासों की सराहना करते हुए एसटीएफ के एसपी धर्मेन्द्र गर्ग ने कहा कि कभी कभी थोड़ा सा ज्ञान भी जीवन बचाने के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है। जंगलों में किसी भी प्रकार की सुविधाओं से दूर रहने वाले जवानों के लिए यह जानकारी बहुत काम की है। Read More
अपोलो बीएसआर अस्पताल के मेडिकल डायरेक्टर डॉ एपी सावंत ने कहा कि जवानों के लिए कुछ कर पाना हमारी नैतिक जिम्मेदारी बनती है। इन जवानों की कुर्बानियों से ही आम जन जीवन सुरक्षित रहता है। उन्होंने बताया कि ऐसा ही एक शिविर मई में भी लगाया गया था जिसमें एक बैच को बेसिक लाइफ सेविंग स्किल्स का प्रशिक्षण दिया गया था। उन्होंने प्रतिबद्धता जताई कि अपोलो बीएसआर आगे भी जवानों को प्रशिक्षण देता रहेगा। उन्होंने अपोलो बीएसआर को यह अवसर प्रदान करने के लिए एडीजी आरके विज, डीआईजी रजनीश शर्मा, एसटीएफ के एडिशनल एसपी श्रीकांत द्विवेदी के साथ ही अपोलो ग्रुप के चेयरमैन डॉ एमके खण्डूजा को धन्यवाद दिया।
चीफ एनेस्थेटिस्ट डॉ सुप्रतिम दासगुप्ता ने बेसिक लाइफ सपोर्ट के बारे में स्पेशल टास्क फोर्स के जवानों को विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने बताया कि यदि कोई व्यक्ति बेहोशी की स्थिति में पड़ा मिल जाए तो सबसे पहले उसे थपकी देकर जगाने की कोशिश करनी चाहिए। यदि वह नहीं जागता तो उसकी गर्दन के पास मुख्य धमनी पर उंगली रखकर यह देखना चाहिए कि उसकी नाड़ी चल रही है या नहीं। यदि नब्ज भी गायब मिले तो उसकी नाक के आगे उंगली रखकर देखना चाहिए कि सांसें आ जा रही हैं या नहीं। यदि जिन्दगी के इनमें से कोई भी चिन्ह दिखाई न दे तो तत्काल उसे चित लिटाते हुए उसके हृदय वाले स्थान पर रुक रुक कर तीस बार दबाव डालना चाहिए और मुंह से दो सांस देने की कोशिश करनी चाहिए।
एनेस्थेटिस्ट राकेश सोलंकी ने जंगलों में या अस्पताल से दूर किसी के गंभीर रूप से जख्मी हो जाने पर साथियों के कर्तव्यों के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि सबसे पहले रक्तस्राव रोकने की कोशिश करनी चाहिए। इसके लिए टूर्निकेट का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। घायल को अधिक से अधिक आराम की स्थिति में लाकर उसे तत्काल अस्पताल की ओर रवाना करना चाहिए।
लैप्रोस्कोपिक सर्जन डॉ हिमांशु गुप्ता ने कहा कि गोली लगने पर सबसे पहले तो यह सुनिश्चित करना चाहिए कि गोली शरीर को भेदकर निकल गई है या अभी अन्दर ही है। इसके बाद रक्तप्रवाह को रोकने का प्रयत्न किया जाना चाहिए। इसके लिए साफ सुथरे कपड़े का इस्तेमाल किया जा सकता है। रोगी को कम से कम हिलने डुलने देना चाहिए तथा जल्द से जल्द अस्पताल पहुंचाना चाहिए।
वहीं लैप्रोस्कोपिक सर्जन डॉ अमित बैंगानी ने अंदरूनी चोटों की चर्चा करते हुए कहा कि सबसे पहले रोगी की स्थिति का सही अंदाजा लगाने की कोशिश करनी चाहिए। ऐसे रोगी की सीएबी जांच करनी चाहिए। रोगी के नाक मुंह में कहीं कीचड़ तो नहीं भरा हुआ, वह सही ढंग से सांस ले रहा है या नहीं तथा उसके शरीर में रक्तसंचार हो रहा है या नहीं इसकी जांच करनी चाहिए। रोगी को एकदम सीधा लिटाकर बिना ज्यादा हिलाए डुलाए अस्पताल ले जाना चाहिए। यदि रोगी पर बेहोशी छा रही है तो समतल स्थान पर लिटाकर उसके पैरों को ऊपर की ओर उठाना चाहिए। इसके बाद उसे बाईं करवट लिटाते हुए उसके दाहिने घुटने को सीने की तरफ मोडऩा चाहिए। दाहिने हाथ को भी मोड़कर सीने के पास रख देना चाहिए। उन्होंने बताया कि इसे मेडिकल भाषा में रिकवरी पोजीशन कहते हैं।
अपोलो बीएसआर के कार्डियोलॉजिस्ट डॉ दिलीप रत्नानी ने भारतीयों में बढ़ रहे हृदय रोग के खतरे को रेखांकित करते हुए खान-पान, रहन सहन में सामंजस्य बिठाने की बात कही। उन्होंने कहा कि भारतीय चाहे दुनिया के किसी भी कोने में क्यों न रह रहे हों, उन्हें हृदयरोग का खतरा औरों के मुकाबले अधिक होता है। उन्होंने बताया कि अब दुबले-पतले और कम उम्र के लोगों को भी दिल के दौरे पड़ रहे हैं इसलिए सभी को सावधानी बरतनी चाहिए। उन्होंने बताया कि हृदयरोगों की कोई उम्र नहीं होती। पिछले कुछ समय से देखा जा रहा है कि नसों में कोलेस्ट्राल की जमावट बहुत कम उम्र (10 साल) से शुरू हो रही है।
मेडिसिन स्पेशलिस्ट डॉ जय तिवारी ने बताया कि जंगलों में डेरा डाले जवानों को जितना खतरा सांप बिच्छू या गोलियों से है, उतना ही खतरा मलेरिया, डेंगू, टायफाइड या पीलिया से है। पीलिया का एक प्रकार ऐसा भी है जो सेक्स पार्टनर के सम्पर्क में आने से हो सकता है। हेपाटाइटिस-बी रोगी महिला के सम्पर्क में आने से भी हो सकता है। शेष प्रकार के हेपाटाइटिस से बचने के लिए भोजन एवं पानी की शुद्धता का ख्याल रखना चाहिए।
न्यूरो सर्जन डॉ नरेश कृष्णानी ने बताया कि सिर, गर्दन या रीढ़ की हड्डी पर चोट लगी हो तो रोगी को एकदम सीधे लिटाना चाहिए। उपलब्ध होने पर उसे सर्वाइकल कॉलर लगाकर गर्दन को सीधा रखना चाहिए। उसे इसी अवस्था में बिना ज्यादा हिलाए डुलाए अस्पताल ले जाना चाहिए। अपोलो बीएसआर के नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ विजय वच्छानी ने गुर्दे की पथरी के प्रति जवानों का आगाह करते हुए कहा कि इससे बचने के लिए पानी तथा तरल पदार्थों का ज्यादा से ज्यादा सेवन करना चाहिए। उन्होंने पथरी होने पर उभरने वाले लक्षणों की भी चर्चा की।
कार्यक्रम का कुशल संचालन मेडिकल सुपरिंटेंडेंट डॉ पार्थ सारथी गोस्वामी ने एवं संयोजन जी.एम. मार्केटिंग निखिलेश दावड़ा ने किया।