भिलाई। लायन डिस्ट्रिक्ट मुम्बई की प्रथम महिला गर्वनर लायन भावना शाह ने कहा कि नए दौर में आईक्यू (इंटेलीजेंस कोशेंट), ईक्यू (इमोशनल कोशेंट) और एसक्यू (स्पिरिचुअल कोशेंट) के बीच तालमेल बनाने की जरूरत है। पहले केवल आईक्यू पर ही ध्यान दिया जाता था। पर समाज की अवधारणाएं तेजी से बदल रही हैं और सबसे नई पीढ़ी इसका सबसे अधिक शिकार हो रही है। मोटिवेशनल स्पीकर भावना शाह यहां होटल ग्रांड ढिल्लन में आयोजित लायन्स क्लब भिलाई के शताब्दी समारोह को विशेष वक्ता की आसंदी से संबोधित कर रही थीं। उन्होंने कहा कि बच्चे को प्रत्येक कार्य से केवल मना करते रहने पर उसमें नकारात्मकता पैदा हो सकती है। हो सकता है आज हम उसे एक चांटा मार दें किन्तु जब वह बड़ा होगा और हमें वृद्धाश्रम छोड़ आएगा तब यह चांटा कई गुणा अधिक वेग से हमारे पास लौटेगा। हम बार बार अपने बच्चे को ‘यूजलेस’ न कहें क्योंकि दुनिया में ऐसा कोई होता नहीं है। होता यह है कि हम ‘यूज – लेस’ अर्थात उसका उपयोग कम कर पाते हैं। Read More
उन्होंने जोर देकर कहा कि बच्चों पर अहसान लादना बंद करें। यह न सोचें कि बच्चों को आपने जन्म दिया है। यह न भूलें कि प्रत्येक बच्चे के जन्म के साथ मातृत्व और पितृत्व का भी जन्म होता है। आज हम पैसा कमाने की होड़ में उनके लिए वक्त नहीं निकाल पा रहे हैं। पर यह पैसा किसी काम नहीं आने वाला। बच्चे को स्वयं से जोड़कर रखें। तभी वह अपने आपको आपसे जुड़ा हुआ महसूस करेगा। उन्होंने अपना उदाहरण देते हुए कहा कि उन्होंने 15 वर्ष की आयु में अपने पिता को खो दिया। वे उस समय केवल 40 वर्ष के थे। पर उन्होंने अकूत संपत्ति खड़ी की थी। वे स्वयं पेशे से वकील हैं किन्तु आज तक वे उन संपत्तियों का कब्जा नहीं ले पाई हैं।
क्रोध पर नियंत्रण को जरूरी बताते हुए उन्होंने कहा कि यदि आपको क्रोध आ रहा है तो आप किचन से निकल जाएं। क्योंकि क्रोध में पकाया गया भोजन जहर के रूप में आपके परिवार के पेट में जाएगा। इसी तरह मन में यदि गलत सोच आ गई तो गलत बीज का रोपण हो जाता है जिसका निकट भविष्य में दुष्परिणाम हमें भुगतना पड़ता है। सोच को हमेशा सही रखें, सकारात्मक रखें। किसी को आने में विलम्ब भी हो रहा हो तो मन में कुशंकाएं न पालें। क्योंकि ऐसी शंकाएं भी अकसर सही साबित हो जाती हैं।
आरंभ में कुछ मजाकिया लहजे में उन्होंने कहा कि इतने सारे शेरों (लायन्स) के सामने खड़ा होने या बोलने में उन्हें कभी डर नहीं लगता। दरअसल पुरुषों से ही उन्हें कभी डर नहीं लगा क्योंकि उनका मानना है कि पुरुष कभी स्त्री का सर्वनाश नहीं कर सकते। दरअसल स्त्री ही स्त्री को बर्बाद करती है।
अपने ओजस्वी उद्बोधन में उन्होंने शादी के लिए कुण्डली मिलान, देवी देवताओं पर फल, फूल और दूध चढ़ाने जैसे खोखलेपन का भी पुरजोर विरोध किया। उन्होंने कहा कि फल -दूध की जरूरत इंसानों को होती है, मूरतों को नहीं। पूजा से लेकर सम्मान समारोहों तक में हमें फूलों का इस्तेमाल बंद कर देना चाहिए क्योंकि जब तक ये पौधों पर होते हैं प्रकृति को सुन्दर बनाते हैं, खुशबू बिखेरते हैं।