दुर्ग। शासकीय विश्वनाथ यादव तामस्कर स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय में महान कथाकार मुंशी प्रेमचंद की 135 वीं जयंती के अवसर पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। हिन्दी विभाग के तत्वावधान में आयोजित इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रख्यात साहित्यकार तथा पत्रकार प्रभाकर चौबे थे। संगोष्ठी के अध्यक्षता प्राचार्य, डॉ. सुशील चन्द्र तिवारी ने की। कार्यक्रम में प्रख्यात कवि संजय शाम तथा कथाकार जीवेश प्रभाकर भी उपस्थित थे। इस अवसर पर प्रेमचंद की कहानी ‘सवा सेर गेहूं’ पर आधारित फिल्म का प्रदर्शन किया गया। Read More
प्रभाकर चौबे ने कहा कि मौजूदा दौर में समाज अत्यंत तीव्र गति से परिवर्तित हो रहा है। पिछला समय गतिहीन और ठहरा हुआ था, लेकिन नई पीढ़ी ने टेक्नालॉजी के माध्यम से हस्तक्षेप कर उसे त्वरित रूप से गतिशील समाज में बदल दिया है। पिछले दस वर्ष में जितनी तेज रफ्तार से परिवर्तन हुआ है, उतना पहले कभी नही हुआ है। आज छोटी और बड़ी बहनों के बीच पीढ़ी का अंतराल उत्पन्न हो चुका है। उपभोक्तावाद आज का मुख्य सामाजिक लक्षण है। यहां तक कि नवजात शिशु भी उपभोक्तावाद से मुक्त नही है। ऐसे समय में प्रेमचंद का साहित्य मनुष्य की संवेदना को प्रतिबध्दता और पक्षधरता के साथ रेखांकित करता है। आज कोई भी तटस्थ नही रह सकता। पक्षधरता अनिवार्य है।
प्रेमचंद ने पीड़ित मनुष्य की पक्षधरता का साहित्य रचा और अपने समय के इतिहास को प्रमाणिकता के साथ उकेरा। उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार हमारे दौर की ज्वंलत समस्या है। इसका संबंध दरअसल सामाजिक व्यवस्था से है। प्रेमचंद की कहानी नमक का दरोगा भ्रष्टाचार की औपनिवेशिक जड़ों की ओर संकेत करती है। उपनिवेशवाद ने स्वयमेव भ्रष्टाचार को जन्म दिया था, जिसकी ओर 1883 में प्रताप नारायण मिश्र ने अपने निबंध रिश्वत में इशारा किया था। प्रेमचंद ने सामाजिक मुद्दों पर भी विपुल लेखन किया था। वे अपने समय के सजग पत्रकार थे।
हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ शीला अग्रवाल ने कहा कि प्रेमचंद की लेखनी से पराधीन भारत के परिदृश्य का कोई भी कोना अछूता नहीं रहा। उन्होंने बाल विवाह, विधवा विवाह, स्त्री प्रताड़ना, दलितों का दमन, भ्रष्टाचार, उच्च वर्ग की महत्वाकांक्षा, अंग्रेजों द्वारा किसानों-मजदूरों का उत्पीड़न आदि अनेक मुद्दों पर अपने उपन्यासों और कहानियों से प्रकाश् डाला है।
कार्यक्रम के प्रारंभ में तृप्ति साहू, पूर्णिमा बंसोड़ तथा नीतू साहू ने स्वागत गीत प्रस्तुत किया। डॉ शीला अग्रवाल ने स्वागत भाषण दिया। डॉ जयप्रकाश साव ने अतिथि साहित्यकारों का परिचय दिया। अतिथियों ने दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। अतिथियों का स्वागत छात्र रूपेश, प्रियम तथा गौरव नायक ने किया। अतिथियों के पूर्व विभाग के छात्रों ने प्रेमचंद की कहानियों पर वाचिक प्रस्तुति दी। छात्र प्रियम ने कफन, शालू कौर ने सद्गति, गौरव नायक ने पूस की रात तथा सरिता देशमुख ने स्त्री और पुरुष कहानी का मौखिक पाठ प्रस्तुत किया। नेहा वर्मा ने छत्तीसगढ़ी में प्रेमचंद का परिचय दिया। अन्य प्रतिभागी छात्रों में संजीव कुमार तथा प्रवीण शर्मा सम्मिलित थे।
कार्यक्रम के अंत में मुख्य अतिथि प्रभाकर चौबे ने अपनी व्यंग्य रचना दुर्योधन फेल हो गया तथा काव्य रचना गांव का नाला का वाचन किया। कवि संजय शाम ने कविता मैं डर गया था प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का संयोजन तथा अंत में आभार प्रदर्शन डॉ अभिनेष सुराना ने किया। डॉ कृष्णा चटर्जी ने कार्यक्रम का संचालन किया। इस अवसर पर महाविद्यालय के प्राध्यापक डॉ राजेन्द्र चौबे, डॉ एके खान, डॉ अनिल कश्यप, डॉ अजय कुमार सिंह, डॉ बलजीत कौर, डॉ शंकर निषाद उपस्थित थे। कार्यक्रम को सफल बनाने में हिन्दी विभाग के विद्यार्थियों ने योगदान दिया।