राज्य शासन ने बिलासपुर और रायपुर का नाम स्मार्ट सिटी के लिए प्रस्तावित करने का फैसला किया है। बताते हैं कि नामों पर केन्द्र का ठप्पा लग गया तो इन दोनों शहरों के नेताओं को अच्छा खासा पैसा पीटने का मौका मिल जाएगा। केन्द्र के पैसों से शहर तो क्या ही स्मार्ट होगा। हां! कुछ-कुछ काम चुने गए दोनों शहरों में अच्छा हुआ है। रही भिलाई की बात तो यहां के नेताओं की नजरें भिलाई इस्पात संयंत्र, उसके टाउनशिप और अस्पताल पर ही गड़ी रह गर्इं। वे अपना काम कर ही नहीं पाए। सॉलिड वेस्ट मैनेजमेन्ट की बात छोड़ भी दें तो आज तक घर-घर से कचरा उठाने की व्यवस्था नहीं हो पाई है। Read Moreखैर स्मार्ट सिटी के नाम पर भी शहर को कुछ हासिल नहीं होना था। पैसा कहां से आता और कहां चला जाता, इसका अंदाजा लगाना भी कठिन है। अब तसल्ली के लिए हम यह कह सकते हैं, ‘भिलाई तो पहले ही ओवर-स्मार्ट है, इसे स्मार्ट बनाने की जरूरत ही क्या है?’ शेष प्रदेश में जब लोगों को यह नहीं पता था कि एरनाकुलम कहां है, तब भिलाई के लोग कैलीफोर्निया, कनाडा, न्यूयार्क, लंदन में या तो पढ़ रहे थे या नौकरियां कर रहे थे। आज भी दुनिया के हर देश में जितने भी भारतीय मिल जाते हैं उनमें भिलाइयंस की संख्या अच्छी खासी है। एशिया का सबसे बड़ा इंटीग्रेटेड स्टील प्लांट यहां तब भी था। भिलाई इस्पात संयंत्र ने प्राइम मिनिस्टर्स ट्राफी बार-बार जीतकर अपनी श्रेष्ठता साबित की। देश भर की रेलगाड़ियां भिलाई की रेल पटरियों पर ही दौड़ती हैं। यहां की हरियाली अद्भुत है। रूस और नाईजीरिया में यहां के लोगों की रिश्तेदारियां हैं। बड़Þी संख्या में इस्पात कार्मिक रूस में प्रशिक्षण लेते रहे हैं। पंथी, पंडवानी को विदेश की भूमि पर भेजने का सौभाग्य भी भिलाई को ही पहले मिला। यहां की लोकसंस्कृति का दुनिया से परिचय कराने का सौभाग्य भी भिलाई को ही मिला। यहां रहने वाले लोगों का अपने देश से परिचय, शेष प्रदेश के बाशिंदों से बेहतर है। यहां पूरे देश के प्रतिनिधि रहते हैं। यह पहले ही लघु भारत है। इस जिले में दो-दो विश्वविद्यालय हैं, आईआईटी आ रहा है। यह शहर तो ओवर-स्मार्ट है। फिर स्मार्ट सिटी की दौड़ में क्यों पड़ना? अंगूर खट्टे हैं…