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जुवेनाइल जस्टिस बिल राज्यसभा में पास

Dec 22, 2015

juvenileनई दिल्ली। लोकसभा में काफ़ी पहले पारित हो चुका जुवेनाइल जस्टिस बिल मंगलवार को आख़िरकार राज्यसभा में ध्वनिमत से पास हो गया. अब यह बिल राष्ट्रपति के पास मंज़ूरी के लिए भेजा जाएगा. हालांकि बहस के दौरान सदन के बहुत से सदस्यों ने इसके ख़िलाफ़ भी अपना पक्ष पेश किया. दिल्ली के 2012 के निर्भया सामूहिक बलात्कार के एक नाबालिग दोषी के तीन साल की सज़ा पूरी करने के बाद आज़ाद होने के कारण निर्भया के माता-पिता और दूसरे कई लोग इस बिल को जल्द से जल्द पास कराने के लिए आंदोलन कर रहे हैं. Read More
नाबालिग़ अपराधी को केवल दो दिन पहले 20 दिसंबर को रिहा किया गया और फ़िलहाल वो किसी एनजीओ के संरक्षण में है.
ये बिल अगर क़ानून में तब्दील होता है तो ‘जघन्य’ जुर्म के मामले में 16 से 18 साल की उम्र के नाबालिग़ को वयस्क माना जाएगा. जघन्य अपराध यानि ऐसा अपराध जिसकी आईपीसी में सज़ा सात साल से ज़्यादा है.
मौजूदा क़ानून के तहत 18 साल के कम उम्र के अपराधी को नाबालिग़ माना जाता है.
सीपीएम, एनसीपी और डीएमके ने बिल को सेलेक्ट कमेटी के पास भेजने की मांग की थी. लेकिन उनकी मांग नहीं मानी गई. इस कारण सीपीएम ने वोटिंग से पहले सदन से वाकआउट किया.
सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा, ”हर पहलू का विश्लेषण करके क़ानून बनाना होगा. सवाल उम्र का नहीं, अपराध का है.”
संसद से बिल पास होने का स्वागत करते हुए निर्भया के माता-पिता ने कहा, ”हमें तसल्ली है कि आने वाले दिनों में बच्चियां सुरक्षित होंगी.”
सदन के कई सदस्यों का मानना था कि बहस गरीब तबके को समान सुविधाएं मुहैया कराने पर होनी चाहिए
बिल पर बहस और वोटिंग के दौरान निर्भया के माता-पिता भी राज्य सभा की दर्शक दीर्घा में मौजूद थे.
केंद्रीय संसदीय मंत्री वेंकैया नायडू ने स्वीकार किया कि जनता के दबाव में इसे राज्य सभा से पारित कराया गया है.
कांग्रेस की रेणुका चौधरी ने भी बिल पास होने का स्वागत किया और कहा कि ये बिल कांग्रेस ही संसद में लेकर आई थी.
इससे पहले राज्य सभा में बिल पेश करते हुए केंद्रीय महिला एंव बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने कहा कि बिल में सारी बातों का ख़्याल रखा गया है.
बिल की वकालत करते हुए मेनका गांधी ने कहा, ”कोई भी जुवेनाइल सीधे जेल में नहीं भेजा जाएगा. जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड में विशेषज्ञ और मनोचिकित्सक होते हैं जो पहले इस बात का निरीक्षण करेंगे कि किया गया अपराध बचपने में हो गया है या इसे एक वयस्क मानसिकता के साथ किया गया है.”
बहस के दौरान तृणमूल कांग्रेस के सदस्य डेरेक ओ ब्रायन ने बिल का पक्ष लेते हुए कहा कि, “अगर निर्भया की जगह मेरी बेटी होती तो मैं उसे गोली मार देता. कहने का मतलब ये कि इस बिल के साथ लोगों की भावनाएं जुड़ी हुई हैं. इसलिए इसे कुछ संशोधनों के साथ पारित कर देना चाहिए.”
उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी के सांसद रविप्रकाश शर्मा ने इस बात पर विरोध किया कि ग़रीब तबक़े के बच्चों के लिए सख़्त क़ानून बनाया जा रहा है.
जुवेनाइल बिल की 4 ख़ास बातें
रविप्रकाश शर्मा ने इस बिल का विरोध करते हुए कहा कि, ”मीडिया इस तरह की मार्केटिंग कर रहा है कि अगर क़ानून सख़्त हो जाएगा तो निर्भया को इंसाफ़ मिल जाएगा. ये सच नहीं है.”
जदयू, बिहार से सांसद कहकशां परवीन ने भी बिल के विरोध में अपने विचार रखते हुए कहा कि बच्चे अगर अपराधी बन रहे हैं तो इसके पीछे अशिक्षा, ग़रीबी और बेरोज़गारी है. उनके अनुसार इस बिल को लाने का मक़सद सज़ा की उम्र 18 से 16 वर्ष करना नहीं बल्कि ऐसे बच्चों में कारगर सुधार लाना होना चाहिए.
राज्यसभा सदस्य अनु आग़ा ने बिल के विरोध में कहा कि अगर कोई नाबालिग़ अपराध करता है तो वो हमारी ज़िम्मेदारी है.
उनका कहना था, ”जस्टिस वर्मा जैसे सम्मानीय लोगों ने जब इस बिल का पक्ष नहीं लिया तो ज़ाहिर है कि इसमें कुछ ख़ामियां हैं. बाल सुधारगृहों की दशा सुधारने पर बहस होनी चाहिए.”
आग़ा ने इस बिल को सेलेक्ट कमेटी को भेजे जाने मांग की थी. दोनों सदनों में पास होने के बाद क़ानून बनने के लिए राष्ट्रपति की मंजूरी की औपचारिकता भर बची रह गई है.

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