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जब दु:स्वप्न में तब्दील हुआ एक मामूली आपरेशन

Jan 27, 2016

dr-pankaj-dwivediभिलाई (संडे कैम्पस)। अपोलो बीएसआर मल्टीस्पेशालिटी अस्पताल ने एक बार फिर अपनी उपयोगिता साबित कर दी। मनेन्द्रगढ़ के पास स्थित एक छोटे से गांव से आए घायल व्यक्ति की शारीरिक संरचना कुछ ऐसी थी कि रक्तस्राव रोकने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी। मामूली सा लगने वाला यह आपरेशन एक दु:स्वप्न में तब्दील हो गया। अपोलो बीएसआर के आर्थोपेडिक सर्जन डॉ पंकज द्विवेदी ने बताया कि यह मरीज करीब तीन सप्ताह पहले पहली बार अपोलो बीएसआर लाया गया था। उसके दाहिने जांघ की हड्डी टूटी हुई थी। मांस फटा हुआ था जिसे बहुत ही भद्दे तरीके से टांके लगाकर बंद किया हुआ था। हड्डी आड़ी और खड़ी दोनों तरफ से टूटी हुई थी। आपरेशन जरूरी था पर मरीज उस समय तैयार नहीं था। हमने यहां घाव को साफ किया और ड्रेन लगाकर घाव को स्टिच कर दिया और मरहम पट्टी कर दी। Read More
14 दिन बाद मरीज टांका कटवाने आया और आपरेशन के लिए एक हफ्ते की मोहलत लेकर लौट गया। मरीज के पुन: यहां पहुंचने पर टूटी हड्डी को दुरुस्त करने के लिए उसकी सर्जरी शुरू की गई।
डॉ द्विवेदी ने बताया कि जांघ में धमनी और नसें भीतर की तरफ होती हैं इसलिए आपरेशन बाहर की तरफ से किया जाता है। हमने बाहर की तरफ से जांघ को खोला तो वहां काला खून रिसता मिला। हमें यही लगा कि हड्डी जब टूटी होगी तो उसने नसों को नुकसान पहुंचाया होगा। हमने रक्तस्राव का स्रोत ढूंढना शुरू किया। चूंकि हमने जांघ पर चीरा बाहर की तरफ से लगाया था इसलिए अब धमनी और नसों तक पहुंचने के लिए हमें टूटी हड्डी के दूसरी तरफ झांकना था। पर स्रोत मिल नहीं रहा था। तभी हमारी नजर धमनी पर पड़ी। वह ऐसी जगह से होकर जा रही थी जहां सामान्यत: वह नहीं होती। हमें उसमें एक छेद मिला जहां से रक्तस्राव हो रहा था। हमने उसे बंद कर दिया। पर इसके बाद जो हुआ उसकी हमने कल्पना भी नहीं की थी। पैर के नीचे के हिस्से में रक्तस्राव बंद हो गया। पैर पीले पडऩे लगे।
हमने तत्काल प्लास्टिक सर्जन डॉ दीपक कोठारी को बुला लिया। फिर रेडियोलॉजिस्ट डॉ विजय कौशिक भी आ गए। ओटी में ही मरीज का डॉपलर किया गया और इस बात की पुष्टि हो गई कि पैर के नीचे के हिस्से में खून नहीं जा रहा है। हमने मरीज के घाव को प्लास्टिक एड्हेसिव ड्रेसिंग से बंद किया और उसे कैथलेब ले गए। वहां डॉ दिलीप रत्नानी ने एंजियाग्राफी की तो पता चला कि रक्त केवल चोट वाली जगह तक ही जा रहा है।
तब तक वैसकुलर सर्जन डॉ निमीष राय भी पहुंच चुके थे। हमने जांघ को दूसरी तरफ से खोला तो हमारे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। जिसे हम मुख्य धमनी समझ रहे थे वह उसकी एक शाखा ही थी जो अपने सामान्य आकार से कहीं ज्यादा फूली हुई थी। मुख्य धमनी अपने स्थान से हटकर मिली। इसमें खून का थक्का जमा हुआ था। खून का थक्का हटाते ही वहां से ताजा लाल खून का फव्वारा छूटा। हमने तत्काल उसकी रिपेयरिंग की और तब कहीं जाकर पैर के निचले हिस्से में रक्त का प्रवाह प्रारंभ हो पाया।
शायद ऐसा हुआ था
डॉ द्विवेदी ने बताया कि धमनी के घायल होने पर उसके आसपास शाखाएं और प्रशाखाएं बन जाती हैं तथा रक्त का संचार उनमें से होता रहता है। ऐसा लगता है कि जब मरीज को चोट लगी तभी उसकी धमनी टूटी हड्डी से टकराकर कट गई थी। मरीज की शारीरिक संरचना सामान्य से कुछ हटकर थी। मुख्य धमनी ने अपना रास्ता बदला था और एक शाखा ने उसकी जगह ले रखी थी। मुख्य धमनी में थक्का फंसा हुआ था और शाखा से रक्तसंचार हो रहा था। इसलिए जैसे ही हमने शाखा की मरम्मत की रक्तप्रवाह रुक गया।
मल्टीस्पेशालिटी बनी वरदान
डॉ द्विवेदी ने बताया कि अपोलो बीएसआर में एक ही छत के नीचे सारी सुविधाएं उपलब्ध होने के कारण ही मरीज को हम बचा पाए अन्यथा रक्तस्राव से मरीज की मृत्यु हो सकती थी। पैरों को रक्तप्रवाह ज्यादा देर तक बंद रहने पर पैर को काटने पड़ सकता था। इस मरीज पर प्लास्टिक सर्जन, वैसकुलर सर्जन, कार्डियोलॉजिस्ट, कैथलैब, रेडियोलॉजिस्ट और आर्थोपेडिक सर्जन, सब ने मिलकर अपना अपना काम किया। इस केस की रिपोर्टिंग मेडिकल जर्नल में की जाएगी।

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