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पूरा जीवन ही यज्ञ स्वरूप : श्रीनारायाण आचार्य

Mar 30, 2016

shri-narayanacharyaभिलाई। हमारा पूरा जीवन ही यज्ञ स्वरूप है। जीवन के प्रत्येक अंग प्रत्यंग पर इसका प्रभाव देखा जाता है। हमारे विभिन्न अंग कभी स्रुवा (हवन में आहुति देने का लकड़ी का चम्मच) तो कभी शाकल्य (हवन सामग्री) के रूप में कार्य करते हैं। इसी से पूरा सृष्टि चक्र चलायमान है। उक्त उद्गार कोशलेष सवन अयोध्या के उत्तराधिकारी ज्योतिषाचार्य, व्याकरणाचार्य हरिनारायण आचार्य ने सेक्टर-2 मैदान में श्री हनुमत वानरी सेना सेवा समिति के तत्वावधान में आयोजित रुद्र महायज्ञ की धर्मसभा में व्यक्त किए। श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि ‘यज्ञ’ शब्द संस्कृत की यज् धातु से बना हुआ है जिसका अर्थ होता है दान, देवपूजन एवं संगतिकरण। यज्ञ स्वयं के लिए नहीं किया जाता है बल्कि सम्पूर्ण विश्व के कल्याण के लिए किया जाता है। Read More
उन्होंने बताया कि यज्ञ में औषधीय गुणों वाली वस्तुओं की आहुति दी जाती है। अग्नि इन्हें सूक्ष्म रूप में परिवर्तित कर लाख गुना बढ़ा देती है। इससे न केवल यज्ञ शाला में उपस्थित लोगों को स्वास्थ्य लाभ होता है बल्कि उसके आसपास का वायुमंडल भी शुद्ध होता है। अग्नि के प्रभाव से ये सूक्ष्म तत्व ऊपर उठकर ओजोन परत की सुरक्षा करने में भी मदद करते हैं। यह विज्ञान सिद्ध है।
उन्होंने बताया कि हवन कुण्ड में दी गई आहुति को कुण्ड अपने पास नहीं रखता बल्कि उसे वायुमण्डल एवं आकाश को सौंप देता है। यह बादलों में घुलकर वापस पानी की बूंदों के रूप में धरती पर लौट आता है। किसान जब खेत जोतकर बीज का वपन करता है तो यही गुण बीज को हजार गुना कर देते हैं। अनाज को खेत अपने पास नहीं रखते बल्कि वहां से वह मिलों में पहुंच जाता है। फिर यह अन्न बनकर हमारे पास आता है जिसे हम ग्रहण करते हैं। लेने देने का यह सिलसिला अनवरत चलता रहता है। देने वाला स्रुवा बन जाता है और पाने वाला कुण्ड बन जाता है।
स्त्री पुरुष के संबंध
स्त्री पुरुष के संबंधों की चर्चा करते हुए श्रीनारायणाचार्य ने कहा कि यज्ञ में साबुत अनाज डाला जाता है। यह पति-पत्नी को साथ-साथ चलने का संदेश देता है। भूसी और चावल का दाना अलग अलग होने पर कष्ट पाते हैं। भूसी कूटी जाती है और फिर भाड़ में झोंक दी जाती है। चावल को भी खौलते पानी में डाल कर पकाया जाता है और फिर उसे दांत पीसते हैं। संतानोत्पत्ति भी यज्ञ है। पुरुष स्रुवा बनकर बीज स्त्री को देता है। स्त्री इसे संतान के रूप में लौटा देती है। स्त्री और पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं।
पार्थिव शिवलिंग
पार्थिव शिवलिंग सिद्धियां देता है। रावण ने जब तक पार्थिव शिव की पूजा की तब तक उसका कोई बाल भी बांका नहीं कर सका। जब श्रीराम ने लंका पर आक्रमण किया तब यह क्रम टूट गया और त्रिलोकविजयी रावण का नाश हो गया। श्रीराम ने भी रामेश्वरम में पार्थिव शिवलिंग की पूजा की तो समुद्र को बांधने में सफल रहे।
परिक्रमा को ऐसे समझें
भगवान कहते हैं, मुझे जाने बिना मुझमें विश्वास न करो। मुझे चारों तरफ से देखो, जानो और तब विश्वास करो। मुझसे सात्विक तेज प्रवाहित होता है, उसे महसूस करो और लाभ लो।
रुद्र महायज्ञ से ज्ञान की प्राप्ति
आचार्य ने बताया कि गिरीश शिव के यज्ञ से ज्ञान की प्राप्ति होती है। विवेक और ज्ञान का सामंजस्य हमें बुद्धियोग प्रदान करते हैं। यज्ञ से आयु, आरोग्यता, तेजस्विता, विद्या, यश, पराक्रम, वंशवृद्धि, धन-धन्यादि, सभी प्रकार की राज-भोग, ऐश्वर्य, लौकिक एवं पारलौकिक वस्तुओं की प्राप्ति होती है।
पहली बार देखा यह दृश्य
आचार्यश्री ने कहा कि श्री हनुमत वानरी सेना सेवा समिति ने सवा करोड़ पार्थिव शिवलिंगों के निर्माण का संकल्प लिया है जो दुर्लभ है। अपने दीर्घ सार्वजनिक जीवन में उन्होंने पहले कभी ऐसा विहंगम दृश्य नहीं देखा। उन्होंने इस विशाल आयोजन के लिए आयोजक चिन्ना केशवलू, बी सुग्रीव, पं. अम्बरीश शुक्ल एवं साथियों को साधुवाद दिया।
dr-mahesh-sharmaसंचित पुण्य से मिला सौभाग्य
आरंभ में श्री नारायणाचार्य का भिलाई परिवार की ओर से स्वागत करते हुए अंतरराष्ट्रीय संस्कृत विद्वान डॉ महेश चन्द्र शर्मा ने कहा कि रुद्रमहायज्ञ का भिलाई में होना यहां के लोगों के संचित पुण्यों का परिणाम है। आचार्यश्री के यहां पदार्पण तथा रुद्र महायज्ञ से आज यह भूमि पावन हो गई है। उन्होंने यज्ञ, आहूति, पार्थिव शिवलिंग पर अपने सारगर्भित विचार व्यक्त किए।

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