भिलाई। अपोलो बीएसआर अस्पताल में नसों की जटिल सर्जरी सफलतापूर्वक की जा रही है। पिछले एक माह के भीतर यहां तीन ऐसे मरीजों की सफल सर्जरी की गई जिनके हाथ सुन्न पड़ चुके थे। मरीज की बांह में संवेदना लौटने लगी है। न्यूरोसर्जन डॉ लवलेश राठौड़ ने बताया कि घायल या टूटी हुई नसों (तंतुओं) को जोड़कर उनमें संवेदना लौटाना एक बेहद चुनौतीपूर्ण कार्य है। अंचल में ऐसे आपरेशन विरल हैं। अब यह सुविधा यहां उपलब्ध हो गई है।
एक मरीज की चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि हादसे के बाद उसका एक हाथ बेकार हो गया था। उसमें किसी तरह की हरकत नहीं थी। हादसे को लगभग डेढ़ साल बीत चुके थे। उसने इलाज भी कराया पर कोई फायदा नहीं हुआ था।
मरीज के यहां पहुंचने पर हमने उसका एमआरआई कराया। एमआरआई से पता चला कि हाथों को नियंत्रित करने वाली नसों (नव्र्स) का संबंध रीढ़ से टूट चुका था। इसलिए हाथ में कोई संवेदना नहीं थी। हमने उसकी बांह को हिला डुलाकर मांसपेशियों की स्थिति को जांचा और फिर उसका आपरेशन करने का फैसला किया।
हमने ब्रैकियल प्लेक्सस की नसों को इंटरकोस्टल नस से जोड़ दिया। आपरेशन सफल रहा और धीरे-धीरे मरीज की बांह में संवेदना लौटने लगी है। हम उम्मीद कर रहे हैं कि जल्द ही वह अपने हाथ से काम कर पाएगा।
इसी तरह कांकेर से आए एक मरीज चंदन सिंह का भी बायां हाथ बेकार हो गया था। लगभग डेढ़ साल पहले बांह की सर्जरी हुई थी किन्तु वह नाकामयाब रही थी। उसकी दोबारा सर्जरी की गई जो सफल रही। मरीज की बांह में संवेदना लौटने लगी है। ऐसे ही एक और मरीज का इलाज अपोलो बीएसआर में सफलता के साथ किया गया है।
यह था कारण
रीढ़ से निकलकर नसें पूरे शरीर में एक जाल सा बनाती हैं। संवेदनाएं इसी से आती हैं। ब्रेकियल प्लेक्सस नसों का वह जाल है जो हाथों तक पहुंचती हैं। इन्हीं तंतुओं की मदद से हाथों तक दिमाग का आदेश पहुंचता है और वह काम करता है। मरीज के इन्हीं नसों का सम्पर्क रीढ़ से टूट चुका था। इससे पूरी बांह संवेदनाशून्य हो गई थी।