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नाचता मसान और सांप नेवले की लड़ाई

Aug 20, 2016

gustakhi maafDeepak Ranjan Das
बचपन में देखा हुआ एक दृश्य, इन दिनों बार-बार याद आता है। एक आदमी कुछ पिटारे और झांपियां लिए सड़क किनारे बैठा है। सामने कुछ तेल की शीशियां, कुछ जड़ी बूटियां, दो हड्डियां (शायद इंसानी जांघ की), एक खोपड़ी (इंसान की)। गले में पतली सी सांकल से बंधा एक नेवला, चहलकदमी करता हुआ। सेमी-राजस्थानी लिबास में एक आदमी। चारों तरफ घेर कर खड़े बच्चे। वह लगातार बोल रहा है। लोग ध्यान से सुन रहे हैं। वह झांपी में सांप की तरफ इशारा करता है और फिर नेवले के बारे में बताता जाता है। वह सांप नेवले की लड़ाई दिखाने की बातें करता है। बीच-बीच में बच्चों से तालियां बजवाता है। फिर बड़े भी इकट्ठा होने लगते हैं और वह जड़ी-बूटी से बनी दवाओं का गुणगान करने लगता है।

रात में डरते बच्चे, मसूढ़े से निकलता खून, जोड़ों का दर्द, मर्दाना कमजोरी और भी न जाने क्या-क्या ठीक करने का दावा करता है। फिर दवा बिकती चली जाती है। सांप-नेवले की लड़ाई देखने के लिए खड़े बच्चों का धैर्य जवाब देने लगता है और एक-एक कर वह खिसकने लगते हैं। अब मदारी को भी कोई फर्क नहीं पड़ता। बच्चों की उसकी जरूरत पूरी हो चुकी है। टारगेट ग्रुप आने लगा है। बरकत आने लगी है। बच्चों के हटते ही वह खास दवाइयां बेचने लगता है। इसमें मोटी कमाई है, अनाप शनाप पैसा है।
गुजरते वक्त के साथ ये ‘मेडिसिन मदारीÓ लुप्त होते चले गए। सामने आ गए कुछ और लोग। इनका लिबास अलहदा है। ये संभ्रांत लगते हैं। पर गजब की समानता है। एकतरफा संवादों का दौर जारी है। एक तरफ बोलने वाला – दूसरी तरफ सिर्फ सुनने वाला। स्टाइल एकदम वही। वह मन की बात करता है। सपने बेचता है। वादे करता है। अपनी पीठ खुद थपथपाता है। पहले मसान (खोपड़ी) की बातें करता है। फिर मसान को छोड़कर सांप नेवले की बातें करता है और फिर सांप नेवले को छोड़कर दवाइयों का गुणगान करने लगता है। इसीमें बरकत जो है। कोई पूछ नहीं सकता कि मसान नाचा क्यों नहीं, सांप नेवले की लड़ाई क्यों नहीं हुई। बच्चे तो बच्चे, बड़े भी यह पूछने का साहस नहीं जुटा पाते कि सभी दवाओं का रंग-रूप एक जैसा क्यों है।
बहुत तेज हैं आज के बच्चे : फटाफट लाइफ में पैदा हुए बच्चे हाजिर जवाब भी हैं। वे कविता नहीं ‘रैप’ करते हैं। गर्लफ्रेंड ने पूछा, गाड़ी का पैनल कहां गया, फट से जवाब आया, ‘निकाल दी, वहीं से बरकत आ रही है। फैसला करने में भी इन्हें वक्त नहीं लगता। कभी अन्ना, कभी केजरी तो कभी कोई और। सिर पर बैठाकर नाचने में वक्त नहीं लगाते तो उतार कर कचरे की टोकरी में फेंकने में भी देर नहीं करते।

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