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भाषाएं अलग पर सांस्कृतिक विरासत एक : मिश्र

Sep 9, 2016

भिलाई। छत्तीसगढ़ के जनसम्पर्क, संस्कृति एवं पर्यटन विभाग के सचिव संतोष कुमार मिश्र (आईएएस) ने कहा कि भारत में अनेक भाषाएं हैं पर हम सबको सांस्कृतिक एकता और जीवन मूल्य एक सूत्र में पिरोते हैं। उन्होंने कहा कि यूरोपियन समूह आर्थिक कारणों से एकजुट हुआ था पर वो कभी एक देश का रूप नहीं ले सके जबकि भारत के साथ ऐसा नहीं है। यहां की सभी भाषाओं के मूल में संस्कृत है जो हमारी धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत में भी झलकती है।
श्री मिश्र श्री शंकराचार्य महाविद्यालय जुनवानी में छत्तीसगढ़ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद (सीजी कॉस्ट) द्वारा प्रायोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन समारोह को संबोधित कर रहे थे। यह दो दिवसीय संगोष्ठी गणित एवं तकनीकी क्षेत्र की नई धारा और चिकित्सकीय माइक्रोबायोलॉजी की उन्नत तकनीक पर आयोजित है।
उन्होंने कहा कि यूरोपियन यूनियन सिर्फ इसलिए एकजुट हुआ था कि एक मुद्रा और एक रक्षातंत्र का सब लाभ ले सकें। पर भारत के साथ ऐसा नहीं है। इस पूरे राष्ट्र का तानाबाना एक है। हम सब भीतर से जुड़े हुए हैं और भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं।
भारत की भाषा और सांस्कृतिक एकता की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि हार्वर्ड विश्वविद्यालय की डायना ईक ने 20 वर्षों तक भारत में रहकर यहां की भाषाई और खानपान की विविधता एवं सामाजिक-धार्मिक एकता पर शोध किया। उन्होंने अपने शोध को ‘सेकरेड जियोग्राफी ऑफ इंडियाÓ नामक पुस्तक के रूप में प्रस्तुत किया। इसमें भारत के मंदिरों का उल्लेख मिलता है जहां पूरे देश के लोग जाते हैं। तिरुपति बालाजी में देश के सबसे ज्यादा लोग पहुंचते हैं। वहीं ईटानगर के पास सबसे बड़ा एकाश्म (एक ही चट्टान से तराशा गया) शिवलिंग है जिसे देखने दूर-दूर से लोग आते हैं।
श्री मिश्र ने विद्यार्थियों के प्रश्नों का जवाब देते हुए कहा कि उन्होंने दक्षिण से अपना कर्मजीवन शुरू किया। भाषा कभी आड़े नहीं आई। उन्होंने जोर देकर कहा कि हमें हिन्दी या अपनी मातृभाषा के अलावा कम से कम एक भाषा और सीखनी चाहिए। यह भाषा अंग्रेजी हो तो बेहतर क्योंकि यह पूरी दुनिया को जोडऩे वाली भाषा है। उन्होंने कहा कि जो दर्जा कभी फारसी का था वही आज अंग्रेजी का है। कभी फारसी का बोलाबाला हुआ करता था क्योंकि कानून फारसी में था। फारसी जानने वालों की समाज में बड़ी इज्जत थी। अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रोजगार प्राप्त करने में, उत्पादकता बढ़ाने में और स्वीकार्यता बढ़ाने में सहायक है। इस लिहाज से यह हमें आर्थिक रूप से सुदृढ़ करता है।
राष्ट्रधर्म और राजधर्म की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि उन्होंने बतौर आईएएस अधिकारी काफी काम किये। कुछ काम हुए कुछ अभी बाकी हैं। इसे वे सफलता या विफलता के रूप में नहीं देखते। वे नहीं मानते कि सीढिय़ों को चढ़ जाने वाला असफल है और नहीं चढ़ पाने वाला असफल। यही जीवन का दर्शन होना चाहिए। आप प्रयत्न करते रहें, जहां तक पहुंचें उसे ही अपनी सफलता मानें। इससे जीवन को पूर्णता मिलेगी।
आरंभ में महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ रक्षा सिंह ने दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के आयोजन के लिए संबंधित विभागों को बधाई देते हुए इसके सफल होने की मंगलकामना की। महाविद्यालय के निदेशक जी दुर्गाप्रसाद राव ने विभिन्न राज्यों के अलग अलग विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों से आए प्रतिभागियों का स्वागत किया और संगोष्ठी का पूरा लाभ उठाने का आग्रह किया।

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