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साहित्य में काम नहीं आता आरक्षण, संरक्षण

Dec 15, 2016

आदिवासी साहित्यकार सम्मेलन में बोले परदेशीराम
pardesiram-vermaभिलाई। प्रख्यात साहित्यकार परदेसी राम वर्मा ने कहा कि साहित्य सृजन के क्षेत्र में आकर सभी बराबर हो जाते हैं। यहां कोई आरक्षण नहीं मिलता। संरक्षण भी काम नहीं आता। केवल परिश्रम, आत्मविस्वास, साधना, दृष्टि और अनुभव से इस क्षेत्र मेें लोग स्वयं को स्थापित करते हैं। श्री वर्मा भोपाल में सम्पन्न हुए अखिल भारतीय आदिवासी साहित्यकार सम्मेलन को मुख्य अतिथि की आसंदी से संबोधित कर रहे थे। अगला सम्मेलन भिलाई में होगा। श्री वर्मा ने कहा कि वे स्वयं गैर साहित्यिक पृष्ठभूमि वाले समाज से आते हैं। उनके पुरखों ने हल चलाया। जब वे कलम चलाने पहुंचे तो लोगों ने उपहास किया, उपेक्षा की। तमाम विरोधों का सामना करना पड़ा। लेकिन धीरे धीरे मूल्यांकन हुआ और आज वे अपने रचनाधर्मी जीवन से संतुष्ट हैं। उन्होने कहा कि वे पिछले 50 साल से लिख रहे हैं और आज भी स्वयं को नया लेखक मानते हैं। चुनौतियां यथावत हैं। एक एक कदम आगे बढऩे के लिए आज भी उतना ही संघर्ष है जितना 50 साल पहले था।
श्री वर्मा ने कहा कि साहित्य की सत्ता की महिमा राजनीति की सत्ता से बड़ी होती है। आदिवासी समाज पूरी दुनिया में संस्कृति के एक सूत्र में बंधा है। जिस तरह श्रमिकों की एक संस्कृति है उसी तरह आदिवासियों का एक ही समाज है। फिरकों में उन्हें साजिश के तहत बांटा गया है।
उन्होंने कहा कि गोदान के नायक को पिछड़े श्रमिक समाज से चुना गया, मंत्र कहानी का नायक आदिवासी है। रांगेयराघव की गदल आदिवासी है। आदिवासी समाज की परंपरा ही छत्तीसगढ़ की परम्परा है। देश के हर प्रांत में आदिवासी समाज स्वाभिमान के साथ जीवन जीकर दूसरों के हितों की लड़ाई भी लड़ता है। साहित्य में आदिवासी जीवन के गहरे रंगों को गैर आदिवासी लेखकों ने उभारा है।
उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ में 2015 में आदिवासी समाज को केन्द्र में रखकर लेखन करने वाले हरिहर वैष्णव को राज्य का शीर्ष सम्मान मिला। लेकिन आदिवासी समाज से लेखन के क्षेत्र में बहुत कम लोग निकल पाए हैं। यह क्रांतिकारियों, राष्ट्रप्रेमियों, समाजसेवियों का समाज आगे बढ़ेगा तब समग्र समाज आगे बढ़ेगा।
संयोजक के आर शाह ने कहा कि आदिवासी समाज अंगड़ाई ले रहा है। वह लिखने की कला नहीं जानता। वह हक मांगना भी नहीं जानता। वह आन-बान के लिए अपनी जान देना जानता है। दूसरों की खुशी के लिए स्वयं दुख उठाना जानता है। ठगे जाकर भी दूसरों को हक दिलाना चाहता है। यह समाज जब ताल ठोककर लेखन के क्षेत्र में आयेगा तब दुनिया देखेगी कि आदिवासी कलम भी उसके तीर की तरह ही धारदार होती है। इसके लिए श्री वर्मा के मार्गदर्शन में लेखन शिविरों का आयोजन किया जाएगा।
सम्मेलन में राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, गुजरात, बिहार और उत्तर प्रदेश के 200 आदिवासी चिंतक एवं लेखक शामिल हुए। जून में भिलाई में अखिल भारतीय आदिवासी साहित्य सम्मेलन होगा। संचालन खंडवा से आए देवेन्द्र सिंह सैयाम ने किया।

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