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प्रेम उच्च कोटि का आध्यात्मिक मूल्य है

Feb 8, 2017

bhilai-hansa-shukla-sushil-दुर्ग। शासकीय डॉ. वा.वा. पाटणकर कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय में हिन्दी साहित्य विभाग द्वारा ”हिन्दी साहित्य में प्रेम अभिव्यक्ति के विविध आयामÓÓ विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के अध्यक्ष डॉ. विनय कुमार पाठक के मुख्य आतिथ्य एवं सुप्रसिद्ध कवि एवं समीक्षक उद्यन बाजपेयी की अध्यक्षता में हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे कवि एवं समीक्षक उद्यन बाजपेयी ने कहा कि भारत का रीतिकालीन साहित्य विश्व में सर्वश्रेष्ठ है और वह प्रथम पंक्ति साहित्य है। गीत-गोविन्द इस देश की सर्वोकृष्ट रचना है। उन्होनें अभिनव गुप्त द्वारा प्रेम की व्याख्या का प्रसंग सुनाया। durg-udayan-bajpaiविद्यापति को महान कवि निरूपित करते हुए कहा कि उनके प्रेम गीतों में शरीर नहीं अपितु आत्मा का संदर्भ है। प्रेम उच्च कोटि का आध्यात्मिक मूल्य है। उन्होंने प्रेम और सौंदर्य की व्याख्या करते हुए बताया कि विप्रबन्ध श्रृंगार व संयोग श्रंृगार में अन्तर है। परकिया नायिका का वर्णन करते हुए प्रेम की अभिव्यक्ति को उच्च आयाम प्रदान किया। इस अवसर पर उन्होनें हिन्दी साहित्य के साहित्यकारों द्वारा रचित प्रेम साहित्य के उदाहरण प्रस्तुत की। सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला, पंत एवं प्रेमचंद के साहित्य को विषय सन्दर्भ में प्रस्तुत करते हुए प्रेम की अभिव्यक्ति की व्याख्या की। उन्होनें प्रख्यात कवि कमलेश द्वारा रचित विष्णुप्रिया का पाठ भी किया।
डॉ. विनय कुमार पाठक ने अपने संबोधन में प्रेम के संदर्भ में श्रृंगार शब्द की व्याख्या करते हुए कहा कि श्रृंगार को समझे बिना प्रेम की अनुभूति संभव नहीं है। जिसमें दो प्रकार की संयोग एवं वियोग अनुभूतियाँ हैं। उन्होनें श्रृंगार को रसराज निरूपित करते हुए सौंदर्य की व्याख्या की। उन्होनें कहा कि श्रंगार के माध्यम से ही प्रेम को समझा और अभिव्यक्त किया जा सकता है। प्रकृति से ही सुख-दु:ख और प्रेम के भावों को समझा जा सकता है।
उन्होंने प्रेम की प्रबलता की प्रवाह को छायावाद के कवियों की देन कहा। छायावाद के आगे हरिवंशराय बच्चन द्वारा प्रतिपादित हालावाद को भी प्रेम की अभिव्यक्ति का माध्यम बताया।
संगोष्ठी को संबोधित करते हुए प्राचार्य डॉ. सुशील चन्द्र तिवारी ने कहा कि हमारी संस्कृति और साहित्य के मूल में प्रेम है। हिन्दी साहित्य के विद्वानों प्रेम को जाति, धर्म, सम्प्रदाय, सरहद के बजाय आदर्श की स्थापना की है।
इस अवसर पर डॉ. हंसा शुक्ला एवं डॉ. आई.एन. सिंह ने भी अपने विचार प्रस्तुत की। संगोष्ठी के पूर्व आयोजन सचिव डॉ. यशेश्वरी धु्रव ने संगोष्ठी की विषय-वस्तु पर प्रकाश डाला।
डॉ. हंसा शुक्ला ने कहा कि – प्रेम का अर्थ केवल नायक-नायिका तक ही सीमित नहीं है। सच्चा प्रेम वह होता है जहाँ कामना और स्वार्थ न हो। प्रेम दाता है वह याचना नहीं करता। उन्होंने प्रेमचंद की रचना गोदान की चर्चा की। संगोष्ठी में छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश एवं उड़ीसा से शोधकर्ताओं ने भाग लिया और अपना शोधपत्र प्रस्तुत किया। संगोष्ठी का संचालन डॉ. यशेश्वरी ध्रुव ने किया तथा सत्रान्त में श्रीमती ज्योति भरणे ने आभार प्रदर्शन किया।

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