‘जीतें मन को-जीतें जहां को’ में हैं मन से संबंधित 27 अध्याय
भिलाई। स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वती महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ हंसा शुक्ला की पुस्तक ‘जीतें मन को-जीतें जहां को’ का विमोचन दुर्ग विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ एनपी दीक्षित ने किया। इस पुस्तक में मन से संबंधित 27 अध्याय हैं। इस अवसर पर गंगाजली शिक्षण समिति के अध्यक्ष आईपी मिश्रा, उपाध्यक्ष श्रीमती जया मिश्रा, साहित्यकार डॉ. सुधीर शर्मा उपस्थित थे।
डॉ. दीक्षित ने कहा मन हमारी छठवीं इन्द्रिय है। मन हमारा बदलता रहता है मन को पकड़ कर रखें कि हर हाल में हम प्रसन्न रहे। पहले हम रेल में सफर करते थे खुश रहते थे। बाद में एसी में सफर करना शुरु किया तब जनरल डिब्बे में सफर करना अच्छा नहीं लगता था। अब हवाई जहाज में सफर करना प्रारंभ हुआ तो एसी में सफर करना समय खराब करना लगता है। पर मन को हर हाल में खुश रखना सीख लेे तो हम हर हाल में प्रसन्न रह सकते है। मन को अगर समझना है तो यह किताब जरुर पढऩी चाहिये।
आईपी मिश्रा ने कहा मन ही पांचों इन्द्रियों को नियंत्रित करता है मन। मन को समझना और उस पर नियंत्रण करना अत्यंत कठिन है। डॉ. शुक्ला ने छोटी-छोटी प्राचीन कहानियों के माध्यम से मन को कैसे नियंत्रण में करना है पर विचार व्यक्त किये है जो बहुत मौलिक एवं व्यवहारिक है। हेमा शर्मा ने पुस्तकों के प्रेरणादायी बताया।
मन जैसे जटिल विषय पर पुस्तक प्रकाशन के लिये बधाई देते हुये श्रीमती जया मिश्रा ने कहा किसी भी सफलता या विषय का निर्धारण मन से होता है पुस्तक बहुत ही प्रेरणास्पद हैं। इस पुस्तक में लिखी गई उक्ति मैदान में हारा हुआ इंसान फिर से जीत सकता है लेकिन मन से हारा इंसान कभी नहीं जीत सकता ने मुझे काफी प्रभावित किया। सही है सफलता पाना है तो पहले मन को जीतना होगा।
पुस्तक में डॉ. शुक्ला ने मन की अनंत शक्तियों का उल्लेख करते हुए बताया है कि हमारा आत्म-विश्वास मन से दोस्ती कर ले तो सफलता निश्चित है। मन के विविध पक्षों की भीतर से पड़ताल इस पुस्तक में की गई है। सफलता के लिए ईमानदारी से प्रयास करने वाले अध्यताओं विशेषकर विद्यार्थियों के लिए यह पुस्तक न केवल प्रेरक मार्ग दर्शिका है अपितु स्वयं का स्वयं से साक्षात्कार भी है।
विमोचन के अवसर पर डॉ. हंसा शुक्ला ने कहा हम शांति सफलता एवं सुख की खोज बाहर करते है, ध्यान करते हैं, योग करते है और नित्य नये नये यत्न करते है कि हम खुश और स्वस्थ रहें पर यह सब हमारे अंदर है मन में है। यदि हम अपने मन को नियंत्रित कर सकारात्मक भाव लाएं तो हम छोटे से छोटे अवसर को उत्सव का रूप दे सकते है। इस पुस्तक में जीवन में मन में महत्व को उनकी अनंत शक्तियों से परिचित कराने का प्रयास किया गया है।
साहित्यकार श्रीमती सरला शर्मा ने पुस्तक पर समीक्षा देते हुये कहा प्रसांगानुसार उदाहरण और उद्धरण देकर सहज-सरल ढंग से डॉ. शुक्ला ने मन की क्रिया प्रति क्रिया को समझाने का उत्तम प्रयास किया है। यह पुस्तक सभी वर्ग के पाठकों के लिये उपयोगी सिद्ध होगी। पुस्तक चार बातों पर केंन्द्रित है। मन अदृश्य, चंचल व अगोचर है उसे सहज व सरल भाषा में जटिल विषयवस्तु को उठाया गया है। क्या आपके मन से आपका साक्षात्कार होता है क्या आपका मन आपको सही निर्णय लेने के लिये प्रेरित करता है क्या आपका मन आपके नियंत्रण में हैं।
डॉ. नलिनी श्रीवास्तव ने कहा डॉ. शुक्ला की यह पहली कृति है। आलेख छोटे होने पर भी गहन भावों को अभिव्यक्त करते है। डॉ शुक्ला ने अपनी अनुभूतियों में कल्पना व यथार्थ का सुन्दर सामान्जस्य किया है। व्यक्तित्व विकास के लिये भी यह पुस्तक बहुत महत्वपूर्ण है।
साहित्यकार सुधीर शर्मा ने कहा जिसकी चेतना जागृत है वह मन से काम करना चाहते है। 27 अध्याय में छोटे-छोटे उदारहणों के माध्यम से मन की षक्ति को बताया गया है हर पाठक वर्ग के लिये इसमें कुछ न कुछ आगे बढऩे की प्रेरणा है। सकारात्मक विचारों का संग्रहण है।
इस मौके पर महाविद्यालय के समस्त प्राध्यापक, प्राध्यापिकाऐं एवं रमेन्द्रनाथ मिश्र, अध्यक्ष श्री बक्षी श्रीजन पीठ, श्री अष्वनी कुूमार षुक्ला, भूतपूर्व रजिस्ट्रार पं.रविषंकर षुक्ल रायपुर, डॉ. पी.के षर्मा, डॉ. राजकुमार षर्मा, श्री संजीव तिवारी, डॉ. संध्या मदन मोहन मालवीय, डॉ. सुचित्रा षर्मा, डॉ. रानु षर्मा, श्री दीपक दूबे, श्री कुलवंत भाटिया, संघर्श हिरवकर, श्री खुर्सीद, श्री मंगल अग्रवाल, श्री अरुण निगम, श्री प्रदीप वर्मा, श्रीमती प्रभा सरस, श्रीमती नीति बल्लेवार, श्रीमती संगीता षर्मा, श्रीमती प्रीति मिश्रा, डॉ. सीमा जासवाल, डॉ. षषि कष्यप, डॉ. अनिता पाण्डेय एवं प्रबुद्ध वर्ग एवं साहित्यकार उपस्थित हुए कार्यक्रम में मंच संचालन श्रीमती नीलम गांधी विभागाध्यक्ष वाणिज्य ने दिया।