भिलाई। वर्ष 1981-82 में एक बार भोपाल जाना हुआ। माध्यमिक शिक्षा मण्डल के दफ्तर में कुछ काम था। मैं 11वीं का छात्र था और पहली बार भोपाल जा रहा था। घर वालों ने और परिचितों ने कुछ पते लिखकर दिए थे। भोपाल स्टेशन पर उतरकर मैंने एक ऑटो किया और उसे एक पता बताया। हमीदिया अस्पताल का इलाका था। काफी तलाशने के बाद भी पता नहीं मिला। हमने दूसरा पता ढूंढने की कोशिश की तो वह भी नहीं मिला। इधर 11 बजने को थे। तभी ऑटो रिक्शा चालक ने बड़ी आत्मीयता से उस काम के बारे में पूछा जिसके लिए मैं भोपाल आया था। मैंने बोर्ड ऑफिस का काम बताया। उसने कहा चलो काम मैं करवाए देता हूँ।
वह वहां से सीखे दफ्तर गया। ऑटो चालक वाला एप्रन उतार कर बक्से में बंद कर दिया और मेरा हाथ थामे दफ्तर में प्रवेश कर गया। एक जगह हस्ताक्षर करने के बाद वह मुझे लेकर दूसरी मंजिल पर पहुंचा और एक डेस्क पर खुद जा बैठा। उसने मुझसे कागजातों का लिफाफा मांगा और उसे उलट पुलट कर देखने के बाद बोला – लास्ट डेट निकल चुका है। तुम बैठो। और वह कागजों को हाथ में लिए कहीं चला गया।
लगभग आधे घंटे बाद वह लौटकर आया और मुझे पावती दे दी। कहा यहीं बैठो, दोपहर को निकलते हैं। दोपहर तक वह काम में व्यस्त रहा। फिर भोजन के समय उठा और मुझे लेकर कैंटीन को चला। हम दोनों ने रोटियां खाई और मैं फिर आकर उनके पास बैठ गया। वो काफी व्यस्त था पर उसके माथे पर कोई शिकन नहीं थी। वह मिलने वालों से वैसी ही आत्मीयता से बात कर रहा था, जैसा मुझसे किया था। पूरी छुट्टी के बाद वह मुझे लेकर बाहर आया और सीधे स्टेशन पहुंचा। हमने फिर रोटियां खाईं। इस बार भी पैसे उसने ही दिए। उसने मुझसे ऑटो भाड़ा के 100 रुपए लिए और मुस्कुराकर मेरे सिर पर एक चपत मारी। परिवार बड़ा है, नौकरी से बचे टाइम में ऑटो चला लेता हूँ… उसने कहा।
मैंने अपनी डायरी उसके आगे कर दी। अपना नाम और पता तो लिख दो – मैने कहा। उसने अपना नाम लिखा – वी के रेहनी। पता नहीं वह फरिश्ता आज कहां है? पर जहां भी है – मुझे यकीन है कि वह लोगों को उसी तरह प्यार बांटता फिर रहा होगा और उन्हें अपना बना रहा होगा।