बीजापुर। यहां ताड़ की टपरी में लगता है स्कूल। गाँव वालों ने ही ताड़ पत्तों और बांस के डंडों से इस टपरी का निर्माण किया है। मौसम अच्छा होता है तो खुले में भी क्लास लग जाती है। यह सिलसिला पिछले 11 सालों से जारी है। कहते हैं स्कूल भवन स्वीकृत हो चुका है पर कब बनेगा कोई नहीं जानता। यहां पहुंचने के लिए शिक्षक और बच्चों को एक नदी और दो नालों को तैरकर पार करने पड़ते हैं। जिला मुख्यालय से महज 15 किमी दूर गुड्डीपाल में झोपड़ी और किचन शेड में संचालित स्कूल सरकार के दावों और स्कूल शिक्षा व्यवस्था की पोल खोल रहा है। यहां गांव के 27 बच्चे ताड़ के पत्तों से बनी झोपडी में शिक्षा ले रहे हैं। ऐसी स्थिति पिछले 11 साल से है। भवन के अभाव में किचन शेड में पहली से पांचवी तक की कक्षाएं लग रही हैं।झोपड़ी में संचालित इस स्कूल तक पहुँचने में शिक्षकों को बरसात के दिनों में एक नदी और दो नालों को तैरकर पार करना पड़ता है। यह चिन्नाकवाली पंचायत का आश्रित गाँव है। इस सत्र में भी पहली से पांचवीं तक की कक्षाएं किचन शेड में ही संचालित हैं जबकि झोपड़ी को ऑफिस रूम बनाया गया है। यहां पदस्थ शिक्षक नंदकुमार पैकरा और त्रिलोचन मंडावी बताते हैं कि पहली में 8, दूसरी में 6, तीसरी में 5, चौथी में 6 और पांचवी में 2 बच्चे अध्ययनरत हैं।
तेज बारिश और अंधड़ में कक्षाएं झोपड़ी में लगाई जाती हैं वहीं मौसम साफ रहने पर किचन शेड को क्लास रूम बनाया जाता है। शिक्षकों का कहना है कि बरसात के दिनों में जान जोखिम में डालकर नदी पारकर स्कूल आना पड़ता है।
कई बार भवन के लिए मांग पत्र भेजा गया है पर सरकार ध्यान नहीं दे रही है। गाँव के मुखिया गोटे चिन्नाा का कहना है कि 2006 से ही इस स्कूल का संचालन झोपडी में किया जा रहा है। इस वर्ष मध्या- भोजन के लिए किचन शेड बनाया गया है।
बच्चों का कहना है कि बरसात के दिनों में काफी डर लगता है। बरसात का पानी ताड़ के पत्तों से बने छत से अंदर आता है। साँप- बिच्छू का भी डर बना रहता है।
बीजापुर कलेक्टर डॉ अय्याज ताम्बोली का कहना है कि गाँव में स्कूल भवन स्वीकृत है परंतु निर्माण के लिए दिक्कतें आ रही हैं। जल्द ही भवन बनाकर स्कूल संचालन के लिए झोपड़ी से मुक्ति दिलाई जाएगी। मार्ग का सर्वे कर लिया गया है। मार्ग पर पडऩे वाले नदी- नालों पर पुल का निर्माण करवाया जाएगा।