Santosh Rungta Campus में सजा TEDxRCET का ग्लोबल मंच
भिलाई। संतोष रूंगटा कैम्पस में टेडेक्स आरसीईटी का आयोजन हुआ। इस ग्लोबल मंच से अपने जीवन में बड़ी से बड़ी चुनौती को मात देने वाली छह हस्तियों ने अपनी आपबीती शेयर की। इन लोगों ने बताया कि किस तरह जीवन के उस मोड़ पर भी उन्होंने हौसला नहीं गंवाया जब चारों तरफ घुप्प अंधेरा था। उन्होंने न केवल उन अंधेरी गलियों से बाहर निकलने का रास्ता निकाला बल्कि असाधारण उपलब्धियां हासिल कीं। रूंगटा ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशन्स तथा भिलाई राउण्ड टेबल के सहयोग से आयोजित इस कार्यक्रम में फिल्ममेकर अनुराग बसु, मेजर डॉ. सुरेन्द्र पूनिया वीएसएम, एंजल इन्वेस्टर शशीकान्त चौधरी, शिक्षाविद् डॉ. जवाहर सूरीसेट्टी, पद्मश्री फुलबासन बाई यादव तथा मशहूर सितार वादक अनुपमा भागवत ने अपने अनुभव शेयर किए। मौके पर रूंगटा समूह के चेयरमेन संतोष रूंगटा, डायरेक्टर टेक्निकल डॉ. सौरभ रूंगटा, डायरेक्टर एफ एण्ड ए सोनल रूंगटा तथा समूह द्वारा भिलाई तथा रायपुर में संचालित कॉलेजों के डायरेक्टर्स, प्रिंसिपल, फैकल्टी तथा स्टूडेंट उपस्थित थे।नई और वैकल्पिक सोच देती है सफलता
शिक्षाविद तथा शासन के शिक्षा सलाहकार डॉ. जवाहर सूरीशेट्टी ने आर्ट ऑफ थिंकिंग पर अपना व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि संसार की समस्याएं आर्ट ऑफ थिंकिंग के माध्यम से सुलझाई जा सकती है। उन्होंने कहा कि हमें उलझनों को सुलझाने के वैकल्पिक मार्गों की तलाश करनी चाहिए। आइडिया को रिपीट करने के बजाय हमें कुछ हट कर, कुछ नया सोचना चाहिए। कैरियर का चुनाव करते समय समाज की भविष्य की आवश्यकता का आंकलन करना चाहिए। उन्होंने विस्तार से बताया कि किस तरह इडली बेचते हुए उन्होंने अपने सपने को साकार किया। स्कूल जाने से वंचित होने पर भी किस तरह विदेश में शिक्षा हेतु स्कॉलरशिप हासिल की और सफलता की बुलंदियों तक पहुंचे।
भूख और बेडिय़ों को इच्छाशक्ति से दी मात
पद्मश्री फुलबासन बाई यादव ने बताया कि उन्होंने गरीबी का वह मंजर देखा है जब घर में दो दो दिन तक चूल्हा नहीं जलता था। कब खाना मिलेगा पता नहीं होता था। 10 साल की उम्र में शादी हो गई और बच्चे भी हो गए। कुछ करने के लिए घर से निकली तो पति ने रात को घर में ही नहीं घुसने दिया। पर उन्होंने हार नहीं मानी। स्व सहायता समूह से शुरू करके उन्होंने अपने जैसी और महिलाओं के जीवन में उजियारा लाने की कोशिश की। 11 महिलाओं के साथ पहला महिला समूह बनाया। तमाम विरोधों का मुकाबला करते हुए आज दो लाख महिलाओं को इस अभियान से जोड़ चुकी हैं। उन्होंने पूरे राज्य में महिला स्व सहायता समूहों का जाल बिछा दिया और फिर उन्हें मां बम्लेश्वरी जनहितकारी समिति के नाम से समूहबद्ध दिया। समिति के पास आज 25 करोड़ रुपए की अर्जित पूंजी है। स्व सहायता समूहों के जरिए उन्होंने सूदखोरों को मात दी, स्वच्छता अभियान छेड़ा, तालाबों की सफाई से लेकर स्कूलों के संचालन तक की जिम्मेदारी उठाई। शराब बंदी का सफल अभियान चलाया। फुलबासन ने बताया कि पढ़ाई, भलाई, कमाई उनके जीवन के मुख्य मुद्दे रहे हैं। आगे बढऩा चाहो तो पैर पकड़कर खिंचने वाले बहुत होते हैं पर इच्छाशक्ति दृढ़ हो तो कोई रोक नहीं हो सकता। शौचालय बनाना बहुत बड़ी बात नहीं है उसका ईस्तेमाल करना बड़ी बात है। सम्मान को निभाना बड़ी जिम्मेदारी है। सर झुका कर अपनी मजबूती नहीं सिद्ध की जा सकती। जीवन में तीन बातें महत्वपूर्ण हैं। अहंकार न करना, समय का ध्यान रखना और एकता की शक्ति को पहचानना।
सेना में पग-पग पर हैं प्रेरणा पुंज
सेना के डाक्टर, अंतरराष्ट्रीय भारोत्तोलन एवं एथलेटिक्स खिलाड़ी मेजर डॉ. सुरेन्द्र पुनिया का जीवन उपलब्धियों से भरा पड़ा है। उन्होंने 27 अंतरराष्ट्रीय पदक जीते जिसमें 10 स्वर्ण पदक शामिल हैं। 1962 और 1965 की लड़ाई में शामिल हुए और अपने सामने अपने साथियों को गोली खाकर शहीद होते देखा। साथ ही वे गवाब बने एक सैनिक के अदम्य साहस की। मेजर पुनिया बताते हैं कि कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी एक सच्चा सैनिक कभी अपना आपा नहीं खोता। उसका सेंस ऑफ ह्यूमर बना रहता है और वह तार्किक ढंग से सोचता रहता है। घबराया हुआ आदमी कभी सही फैसला नहीं ले सकता। उन्होंने बताया कि जब अमेरिका में बने पैटन टैंकों ेसे लैस पाकिस्तान की सेना तेजी से भारतीय भू-भाग पर कब्जा करती बढ़ी चली आ रही थी तो किस तरह कैप्टन हमीद ने अकेले इन अभेद्य समझे जाने वाले टैकों में से आठ को ध्वस्त कर दिया था। ऐसे ही अनेक प्रसंगों का जिक्र करते हुए वे कभी भावुक हुए तो कभी जोश में आते रहे। उन्होंने कहा कि बहादुरी और कायरता दोनों संक्रामक हैं। उन्होंने कश्मीर की समस्या पर बेबाकी से अपनी राय दी और कहा कि सरकार को यह तय करना होगा कि कश्मीर में शहीद कौन है। सेना का जवान या अलगाववादी ताकतें। दोनों शहीद नहीं हो सकते। उन्होंने कहा कि युद्ध खराब होता है और इससे सबसे ज्यादा प्रभावित एक सैनिक का परिवार होता है। पर देश की सुरक्षा के लिए किसी को तो आगे आना होता ही है।
सबकुछ खोकर भी हार नहीं माना
23-24 साल की उम्र। एक उम्दा कालेज से इंजीनियरिंग की मास्टर्स डिग्री लेने के बाद उन्होंने अपनी फैक्ट्री शुरू की। भीषण गर्मी में 18-18 घंटे काम करते थे। पर फैक्ट्री नहीं चली, कर्जा अलग हो गया। सब कुछ गिरवी पड़ गया था। ऊपर से शादी हो चुकी थी। छोटी से छोटी जरूरत के लिए पिता के आगे हाथ फैलाना पड़ता था। पर उन्होंने हार नहीं मानी। उन्होंने पूरी स्थिति का विश्लेषण किया। पाया कि उन्होंने गलत राह पकड़ी थी। वे इलेक्ट्रानिक्स इंजीनियर थे और फाउंड्री का काम शुरू किया था। लिहाजा उन्होंने नई संभावना की तलाश की। साफ्टवेयर में भविष्य दिखा तो उसकी ट्रेनिंग के लिए मुम्बई गए। वो कहते हैं कि समय की गणना घंटों में की जानी चाहिए। यदि आप प्रतिदिन 6 की जगह 18 घंटे काम करें तो एक साल में तीन साल का ज्ञान हासिल कर सकते हैं और तजुर्बा भी। उन्होंने यही किया और आज तक करते आ रहे हैं। भविष्य पर नजर है, नया करने का जज्बा है और नए आइडियाज को फाइनेंस करने वालों की कमी नहीं है। उन्होंने कहा कि स्टार्टअप आपको तेजी से सीखने का अवसर देता है पर स्टार्टअप्स में से केवल 10 फीसदी ही सफल होते हैं। उन्होंने कहा कि दुनिया आपको एप्लायिंग, मास्टरिंग तथा वालिंटियरिंग स्किल्स के लिए पैसा दे सकती है। यदि आपने अपनी हासिल की हुई दक्षता को एप्लाई नहीं किया तो वह आउट डेटेड हो जाएगी। किसी भी खेल को खेलने की सोचना परन्तु उसे नहीं खेलना यह आपकी जिंदगी का सबसे बड़ा खेद का विषय हो सकता है। मेरे लिये युद्ध को जीतना एक इच्छा थी परन्तु युद्ध को हारने का कोई विकल्प नहीं था।
कैंसर से लड़ते हुए गढ़ते गए करियर
फिल्मकार, निर्देशक और लेखक अनुराग बसु ने बताया कि किस तरह उन्होंने मुम्बई में अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष किया। छोटी छोटी सफलताओं ने उन्हें ताकत और पहचान तो दी किन्तु उन्हें हमेशा यह पता था कि उन्हें क्या करना है। इन सफलताओं को उपयोग उन्होंने सीढ़ी की तरह किया और निर्देशक बनने का अपना सपना पूरा किया। इस बीच कैंसर ने उन्हें बुरी तरह जकड़ लिया। लोग उम्मीद छोड़ बैठे थे पर दिमाग के किसी कोने में उनकी इच्छा अभी जीवंत थी। जब कैंसर को मात देने के बाद वे सेट पर लौटे तो कोई उन्हें काम देने का रिस्क नहीं लेना चाहता था। वे दोबारा छोटे पर्दे की ओर गए। एक फिल्म शुरू की। उनका जज्बा देखकर महेश भट्टन ेउन्हें दोबारा काम दिया। जब वे फिल्म भ्रष्टाचार की शूटिंग कर रहे थे तब भी उनका कीमो चल रहा था।
उन्होंने कहा कि डर हमें बड़े सपने या बड़े कदम उठाने से रोकता है। डर आपको हर दिन मारता है इसलिए डर को अपने से दूर भगाएं। संभावनाओं की खोज जरूरी है। आपको अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए छोटे छोटे टार्गेट बनाने चाहिए। लक्ष्य तय करें तो वहां तक आप किसी भी प्रकार से पहुंच ही जाएंगे। कुछ नया सीखने और करने की भूख हमेशा बनी रहनी चाहिए। पिक्चर वही अच्छी होती है जिसका फस्र्ट हाफ अच्छा होता है, और मैं बहुत ही किस्मतवाला हूं जो मेरे जीवन का फस्र्ट हाफ भिलाई में बीता है। भिलाई की संस्कृति में वो सब रचा-बसा हुआ है जो कि किसी भी टेलेंट की ग्रूमिंग के लिए जरूरी होता है।
जब कद्दू का सितार बन सकता है…
प्रख्यात सितारवादक अनुपमा भागवत ने युवाओं में जोश भरते हुए कहा कि जब कद्दू को तराश कर सितार बनाया जा सकता है तो युवाओं को कौन रोक सकता है। जरूरत सिर्फ तराशे जाने की होती है। आप जिस भी काम को करना चाहते हैं, पहले उसे तय कर लें और फिर उसे अपना सबकुछ दें। जैसे जैसे आप लक्ष्य को हासिल करते जाएंगे लक्ष्य और ऊंचा होता चला जाएगा। यही आपको शीर्ष तक ले जाएगा। अपने गुरु आचार्य पं. विमलेन्दु मुखर्जी को याद करते हुए उन्होंने कहा कि गुरुजी कहा करते थे कि तुम अपना काम अच्छे से करते रहो, बाकी सब चीजें अपने आप तुम्हारे पास चली आएंगी। उन्होंने यही किया और आज वे इस मुकाम पर हैं।