हिन्दी कैसी भी हो बातों में दम होना चाहिए। इसे साबित कर दिखाया है देश की पहली पूर्ण कालिक महिला रक्षामंत्री निर्मला सीतारमन ने। विशुद्ध रूप से अपनी काबीलियत से अपनी जगह बनाने वाली तमिलनाडू की निर्मला ने उच्च शिक्षा जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय से हासिल की। यहां एक फ्री थिंकर के रूप में उन्होंने अपनी पहचान बनाई। कांग्रेस और भाजपा दोनों ही उनके लिए आलोच्य विषय थे।
शोध परक प्रवृत्ति के अनुकूल उन्होंने जेएनयू से अन्तरराष्ट्रीय अध्ययन में एमफिल किया और फिर उच्चतर शिक्षा के लिए विदेश चली गईं। निर्मला ने अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त प्राइसवाटर हाउस कूपर्स के साथ वरिष्ठ प्रबंधक (शोध एवं विश्लेषण) के रूप में काम कर चुकी हैं।
भारतीय जनता पार्टी से उनके जुडऩे की वजह भी रोचक है। जब निर्मला विदेश से लौटीं तो हैदराबाद में भाजपा थिंक टैंक में शामिल हो गईं। उनके भाषण ने भाजपा के शीर्ष नेताओं को प्रभावित किया। हालांकि वे हिन्दी टूटी फूटी बोलती थीं पर उनका कथ्य इतना मजबूत होता था कि उसका प्रभाव जबरदस्त होता था।
उन्हें काम करने का पहला मौका अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मिला। उन्हें राष्ट्रीय महिला आयोग से जोड़ दिया गया जहां उन्होंने बेहद प्रभावी रूप से कार्य किया। उन्होंने महिलाओं के बीच जोरशोर के साथ काम करना शुरू किया और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की नजरों में आ गईं। 2008 में उनका विधिवत भाजपा प्रवेश हो गया।
निर्मला ने भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में उन्होंने भाषण दिया। यह भाषण रक्षा एवं आर्थिक मामलों पर था। यह भाषण इतना प्रभावी था कि पार्टी के तमाम शीर्ष नेता प्रभावित हो गए। इसके बाद महिला स्व सहायता समूहों के बीच काम करने के लिए गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उन्हें न्यौता दिया। उन्होंने वहां भी अपनी उपयोगिता साबित की। उन्हें न तो हिन्दी ठीक से आती थी और न गुजराती, पर उनके कामकाज पर इसका कोई फर्क नहीं पड़ा।
निर्मला सीतरमन की बुद्धि चातुर्य और निपुणता ने अटलजी को तो प्रभावित किया ही था, नरेन्द्र मोदी, नितिन गडकरी, राजनाथ सिंह, अरुण जेटली जैसे नेता भी उनके कायल हो चुके थे। इसके बाद निर्मला ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। नितिन गडकरी ने उन्हें भाजपा का प्रवक्ता बनाया। वह गैर-हिंदी भाषी क्षेत्र से थीं और हिंदी में बोलने में उन्हें कठिनाई होती थी। मगर पार्टी में तय हुआ कि यह हिंदी ठीक न भी बोलें, वह प्रभावी रहती हैं। इनकी इंग्लिश में भी ताजापन था।
शोध पर अपनी पकड़ के कारण निर्मला को पार्टी पालिसी मैटर्स पर भी रिसर्च करने का मौक दिया गया। उन्होंने खुद को साबित किया और शीर्ष नेतृत्व को प्रभावित कर गईं।
2014 में उनका मंत्रिमंडल में शामिल होना, स्वयं नरेन्द्र मोदी का फैसला था। लंदन की मशहूर कंसल्टेंसी फर्म प्राइस वॉटरहाउस में उनके काम को देखते हुए उन्हें वाणिज्य मंत्री बनाया गया। इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जब किसी मुद्दे पर स्टडी या रिसर्च की जरूर होती थी, वह निर्मला को जिम्मेदारी देते थे। काम बढ़ा था मगर मेहनत जारी रखी उन्होंने। वह विभिन्न जगहों पर जाकर फीडबैक भी लाती थीं।
अंतत: 3 सितम्बर, 2017 को उन्हें देश का पहला पूर्णकालिक महिला रक्षामंत्री बना दिया गया। उनसे पहले इस पोर्टफोलियो को संभाले वाली महिला तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं। पर उनके पास इसका अतिरिक्त प्रभार ही था।
शायद मोदी की सोच यही थी कि रक्षा मंत्रालय में बड़े काम हो चुके हैं। मनोहर पर्रिकर रिफॉर्म शुरू कर दिए थे। वेतन आयोग का मसला भी हल हो गया है। डिफेंस की प्रॉडक्शन पॉलिसी अनाउंस हो चुकी है। बड़ी पॉलिसी के पैमाने तय हो चुके हैं। अब बड़ा काम था इन्हें लागू करना। इसके लिए उनके सामने निर्मला से बेहतर कोई कैंडिडेट नहीं था।