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दंतेश्वरी मंदिर को जमीन देने वाले देवता की पूजा कुटिया में

Sep 27, 2017

दंतेवाड़ा। विश्व प्रसिद्ध दंतेवाड़ा की देवी दंतेश्वरी के दर्शन करने लाखों श्रद्धालु आते हैं और प्रतिमा और मंदिर की निर्माण शैली देख मंत्रमुग्ध होते हैं। परिसर में साज-सज्जा के साथ भव्यता भी आ रही है। लेकिन माईजी को दंतेवाड़ा में जगह देने वाले ग्रामदेव बोधबाबा आज भी उपेक्षित हैं। दंतेवाड़ा। विश्व प्रसिद्ध दंतेवाड़ा की देवी दंतेश्वरी के दर्शन करने लाखों श्रद्धालु आते हैं और प्रतिमा और मंदिर की निर्माण शैली देख मंत्रमुग्ध होते हैं। परिसर में साज-सज्जा के साथ भव्यता भी आ रही है। लेकिन माईजी को दंतेवाड़ा में जगह देने वाले ग्रामदेव बोधबाबा आज भी उपेक्षित हैं।दंतेवाड़ा। विश्व प्रसिद्ध दंतेवाड़ा की देवी दंतेश्वरी के दर्शन करने लाखों श्रद्धालु आते हैं और प्रतिमा और मंदिर की निर्माण शैली देख मंत्रमुग्ध होते हैं। परिसर में साज-सज्जा के साथ भव्यता भी आ रही है। लेकिन माईजी को दंतेवाड़ा में जगह देने वाले ग्रामदेव बोधबाबा आज भी उपेक्षित हैं।मंदिर परिसर से कुछ दूरी पर स्थित बोधबाबा की गुड़ी आज भी दयनीय स्थिति में है। आज भी देवी दंतेश्वरी बोधबाबा की अनुमति के बाद ही जगदलपुर जाती हैं। वापसी में मंदिर प्रवेश से पहले बोधबाबा से अनुमति लेने की प्रथा है। कहा जाता है कि राजा अन्नमदेव के साथ जब वारंगल से देवी दंतेश्वरी बस्तर पहुंची तो पहले कंवलनार के पास ठहरी। दंतेवाड़ा में शंकनी-डंकनी नदी तट पर विराजित होने से पूर्व ग्राम देवता बोधबाबा से अनुमति ली थी। बोधबाबा के कहने से ही देवी ने यहां वास किया।
दंतेवाड़ा तहसील का एक बड़ा हिस्सा माटी देव के दायरे में आता है। आज भी प्रमुख तीज-त्यौहार और धार्मिक आयोजन के दौरान देवी-देवता उस परिधि में भ्रमण करते है। बुजुर्गो की माने तो बोधराज बाबा की जमीन दंतेवाड़ा बस्ती के अलावा आंवराभाटा, चितालंका, भैरमबंद पारा, बालूद का कुछ हिस्सा था। इसी आधार पर पूर्व में पटवारी हल्का का सीमांकन भी हुआ था। नए परिसीमन से दंतेवाड़ा का परिदृश्य बदलता गया।
किवदंतियों के अनुसार माई दंतेश्वरी जब बस्तर दशहरा में शामिल होकर लौटी तो रात हो चुकी थी। उधर बाबा अपने घर (मंदिर) में सो रहे थे। ऐसे में माईजी ने उन्हें जगाना उचित नहीं समझा और दंतेवाड़ा बस्ती से लगे आंवराभाटा में ही ठहर गई। सुबह जब बाबा जागे तो उनसे अनुमति लेकर वापस अपने मंदिर में लौटी। यह परंपरा आज भी कायम है। मंदिर के पुजारी जिया परिवार के सदस्य आज भी बस्तर दशहरा में डोली ले जाने से पहले बोधराज बाबा से अनुमति लेते है। इसी तरह वापसी पर रात्रि विश्राम करने माईजी की डोली को आंवराभाटा में ठहराया जाता है। सुबह बोधराज बाबा की पूजा करने के बाद डोली मंदिर लाते हैं।
मंदिर में सेवा देने वाले पुजारी जयसिंह मांदरी का कहना है कि पुलिस क्वार्टर बनाने के दौरान बाबा के लिए मंदिर बनाने का प्रस्ताव था। वर्ष 2010 में कोतवाली परिसर से बाहर मंदिर निर्माण शुरु भी हुआ लेकिन राशि आबंटन नहीं होने से ठेकेदार ने बीच में ही काम बंद कर दिया है। अभी कोतवाली परिसर स्थित जीर्ण-शीर्ण कक्ष में बाबा की पूजा की जाती है।

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