आरूषि मैं नहीं जानता तुम्हें किसने मारा। इतना कह सकता हूँ कि मृत्यु के बाद तुम्हारा चीर हरण हुआ। खोजी पुलिस, सीबीआई और पत्रकार ढूंढ-ढूंढ कर रसीले समाचार लाते रहे और लोग चटखारे ले लेकर पढ़ते रहे। मैं शर्मिन्दा हूँ कि मैं भी इसी सिस्टम का एक हिस्सा हूँ। तुम्हारी मृत्यु की सजा तुम्हारे माता पिता को भी मिल चुकी है। ऐसी भयानक सजा दुनिया की कोई भी अदालत किसी को नहीं दे सकती। आईएसआईएस भी नहीं। तुम्हें तो शायद तुरंत ही मौत आ गई होगी पर वो अपने सीने में चुभा हुआ नश्तर लेकर जिन्दा रहने के लिए अभिशप्त हो गए हैं। उठते बैठते, सोते जागते, सीने में घोंपा हुआ यह खंजर उनके घाव को ताजा रखेगा। मन करता है, तुम्हें शहीद का दर्जा दे दूँ। तुम्हारी मौत ने सीबीआई के चेहरे से नकाब नोच लिया है। सीबीआई भी किसी गांव के थानेदार की तरह मनमानी कर सकती है, यह साबित हो चुका है। देश की शीर्ष अपराध अनुसंधान संस्था पर अदालत ने तल्ख टिप्पणी की है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने आरुषि मर्डर केस में उम्रकैद की सजा काट रहे राजेश तलवार और नूपुर तलवार को बरी करते हुए सीबीआई के सभी दावों को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया। आरुषि और हेमराज के बीच सेक्स संबंध से लेकर राजेश और नूपुर तलवार द्वारा कत्ल की ‘कहानीÓ को खारिज करते हुए कोर्ट ने यहां तक कहा कि सबूतों के साथ छेड़छाड़ की गई, गवाह तैयार किए गए साथ ही एजेंसी ने वारदात की रात तलवार के कंपाउंडर कृष्णा की फ्लैट में मौजूदगी के ‘स्पष्ट सबूतÓ को दरकिनार कर दिया।
जस्टिस बी.के. नारायण और ए.के. मिश्रा की बेंच ने 273 पेजों के फैसले में सीबीआई स्पेशल कोर्ट के जज श्याम लाल पर भी नाराजगी दिखाई, जिन्होंने तलवार दंपति को दोषी करार दिया था। बेंच ने कहा कि उन्होंने कई सारे तथ्यों को खुद ही मानकर फैसला दे दिया जो थे ही नहीं। ट्रायल जज एक गणित के टीचर की तरह व्यवहार नहीं कर सकता। ट्रायल जज ने जो कुछ भी हुआ उसे एक फिल्म निर्देशक की तरह सोच लिया।