भिलाई। 70 वर्षीय रूपाली दास की गुरूवार को लावारिस की हालत में मौत हो गई। रूपाली को दुर्ग सदर अस्पताल से रायपुर मेडिकल कालेज अस्पताल रिफर किया गया था। संजीवनी 108 से उसे रायपुर रवाना किया गया था पर खुर्सीपार के पास ही रूपाली ने दम तोड़ दिया। रूपाली दास नाम है उस मां का जिसके दो लायक बेटे हैं। बड़ा बेटा मुकुल दास रेलवे में नौकरी करता है जबकि छोटा बेटा रातुल स्कूल मास्टर है। पति की मौत 10 साल पहले हो चुकी है। रूपाली ने अपना अंतिम वक्तव्य बुधवार को दिया था। इस प्रतिनिधि से चर्चा करते हुए उसने बताया था कि वह रांगामाटी गांव, तेजपुर, आसाम में रहती थी। जब तक बेटे कुंवारे थे, कहीं कोई दिक्कत नहीं थी। इधर बेटों का विवाह हुआ और उधर उसके छोटे से सुखी संसार को आग लग गई। आए दिन के लड़ाई ागड़ों से घर में क्लेष का वातावरण बन गया। बात मारपीट तक जा पहुंची तो घर में रहना मुश्किल हो गया। बेटे उसपर भी हाथ उठाने लगे थे। सितम्बर 2017 में उसने घर छोड़ दिया। भूखी प्यासी ट्रेनों में भटकती वह अज्ञात मंजिल की तलाश में निकल पड़ी। किसी ने कुछ दे दिया तो खा लिया, वरना स्टेशन के नल से पानी पी लिया। पान ठेले से पान का एक पत्ता मांग लिया और सुपारी के साथ उसी को मूंह में रखकर भूख मार लिया।
दिवाली से पहले वह भिलाई पहुंची। उसकी तबियत खराब थी। यहां वह आस्था संस्था के संचालक प्रकाश गेडाम के सम्पर्क में आई। गेडाम एक वृद्धाश्रम का संचालन करते हैं। तबियत ज्यादा खराब होने पर उसे दुर्ग सदर अस्पताल में भर्ती कर दिया गया। पूछताछ के बाद नगर निगम के पूर्व सभापति राजेन्द्र अरोरा ने पुलिस के माध्यम से उसके घर असम खबर भिजवा दी। पर इससे पहले कि कोई वहां से आता रूपाली ने अपने प्राण त्याग दिए।
रूपाली का जीवन और उसका करूण अंत हम सबके लिए एक चेतावनी है। अधिकारों की लड़ाई में हम अपनी जिम्मेदारियां भूलते जा रहे हैं। हम भले ही गाय और देश को अपनी मां कहकर छाती ठोकें, पर हकीकत यही है कि जब निभाने की बारी आती है तो हम रिश्ते की मां के साथ भी न्याय नहीं कर पाते।