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स्वरूपानंद सरस्वती महाविद्यालय में महिला संगोष्ठी : छत्तीसगढ़ स्वर्ग, घूंघट-दहेज जैसी कुरीतियां नहीं

Nov 24, 2017

स्वरूपानंद सरस्वती महाविद्यालय में महिला संगोष्ठी का आयोजन भिलाई। स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वती महाविद्यालय में महिला प्रकोष्ठ द्वारा भारतीय महिला कल और आज विषय पर एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की मुख्य वक्ता डॉ. प्रेरणा मल्होत्रा, रामलाल आनंद महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली थीं। उन्होंने कहा कि यहां की महिलाएं खुशकिस्मत हैं। यहां महिला-पुरुष अनुपात बेहतर है। घूंघट और दहेज जैसी कुरीतियां नहीं हैं। स्वरूपानंद सरस्वती महाविद्यालय में महिला संगोष्ठी का आयोजन : भिलाई। स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वती महाविद्यालय में महिला प्रकोष्ठ द्वारा भारतीय महिला कल और आज विषय पर एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की मुख्य वक्ता डॉ. प्रेरणा मल्होत्रा, रामलाल आनंद महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली थीं। उन्होंने कहा कि यहां की महिलाएं खुशकिस्मत हैं। यहां महिला-पुरुष अनुपात बेहतर है। घूंघट और दहेज जैसी कुरीतियां नहीं हैं। विशिष्ट अतिथि के रूप में श्रीमती रचना नायडू, वेट्रंस इंडिया संयोजिका उपस्थित हुईं। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्राचार्या डॉ. श्रीमती हंसा शुक्ला ने की, कार्यक्रम संयोजक डॉ. श्रीमती सुनीता वर्मा प्रभारी, महिला प्रकोष्ठ थीं। कार्यक्रम के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुये संयोजक डॉ. श्रीमती सुनीता वर्मा प्रभारी, महिला प्रकोष्ठ ने कहा महिला देश की आधी आबादी मानी जाती है। ऐसे में उनके समुचित विकास के बिना हम देश के विकास की कल्पना नहीं कर सकते। महिला सशक्तिकरण सिर्फ उनकी सुरक्षा सामाजिक अधिकार जैसे मुद्दे तक सीमित रह जाती है। हाल ही में विश्व आर्थिक मंच की ओर से जारी ग्लोबल जेंडर इंडेक्स में लैंगिक समानता के मामले में भारत को 87वां स्थान मिला है। जिसमें आर्थिक तौर पर असमानता को सबसे बड़ी चुनौती माना गया है।
डॉ. प्रेरणा मल्होत्रा ने महाविद्यालय की सराहना करते हुये कहा आप भाग्यशाली हैं जो छ.ग. जैसे प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक संपदा से भरपूर प्रदेश में जन्म लिये, यह गौरवपूर्ण बात है। यहाँ की महिला अनुपात पुरूषों की तुलना में ज्यादा है। यहाँ घूंघट, दहेज जैसी प्रथा नही है। यहाँ मैंने बस्तर में महिला सशक्तिकरण का प्रत्यक्ष उदाहरण देखा जहाँ महिलायें बाजार में समान बेचतीं है मुर्गा लड़ाई में भाग लेतीं हैं व अपनी सांस्कृतिक धरोवर को बचाकर रखीं है। छत्तीसगढ़ में पहचान नक्सलवादी प्रदेश के रूप में बाहर में प्रचारित है पर हमें प्रदेश की पहचान व पछत्तर दिन तक मनाये जाने वाले दशहरे के रूप में हो, यहाँ के पर्यटन क्षेत्र के रूप में होनी चाहिए। यहाँ एक स्थल पर 1000 मंदिर हैं इस रूप में होनी चाहिये। यहाँ की 104 वर्ष की महिला ने बकरी बेच शौचालय बनवाया। मैं इस प्रदेश की वंदना करती हूँ।
उन्होंने वैदिक काल में व आज की महिला की स्थिति पर प्रकाश डालते हुये कहा वेदों में पुत्र व पुत्रियों को समान अधिकार थे। पुत्रियों को भी पुत्र के समान दाह संस्कार का अधिकार था। भारत ही वह देश है जहाँ दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती की पूजा होती है। हम गौरावान्वित हैं गार्गी, मैत्रेयी जैसी विदूषी महिलायें थीं। बालविवाह व पर्दाप्रथा जैसी कुप्रथाएं नहीं थीं पर एक संक्रमण का दौर आया। मुगल आक्रमण के बाद महिलाओं की सुरक्षा के लिये पर्दाप्रथा, सतीप्रथा जैसी कुप्रथाऐं शुरू हुईं व महिलाओं को चारदिवारी में बंद कर दिया गया।
हमें देश के उस गौरव को याद करना चाहिए जिसमें माना जाता है आत्मा का लिंग नहीं होता जहाँ ईश्वर को भी अर्धनारीश्वर का रूप लेना पड़ता है। जहाँ स्वयंवर जैसी प्रथा थी। गंधर्व विवाह को मान्यता प्राप्त थी जो आज के लवइन रिलेशनशिप का उदाहरण है। इतना गौरवशाली इतिहास वाले देश में आज तीन वर्ष की लड़की भी सुरक्षित नहीं है, हमें इन बातों पर विचार की आवष्यकता है। जब षारीरिक षक्ति विकास का पैमाना बन गया तब महिलाओं पर अत्याचार का दौर प्रारंभ हुआ।
नक्सलवाद की समस्याओं पर विचार करते हुये कहा जब महिला, बच्चों पर अत्याचार होते हैं तो मानव अधिकार की बात नहीं होती नक्सलवादी मारे जाते हैं तब नक्सलवाद की चर्चा जोर शोर से होने लगती है यह दुर्भाग्य है।
श्रीमती रचना नायडू ने अपने वक्तव्य में कहा किसी पर उंगली उठाना आसान है पर उसकी उंगली पकड़कर उठाना, उसे सहारा देना अलग बात है। एक गिलरही ने भी रामसेतु के निर्माण में अपना योगदान दिया। आप भी देष के नवनिर्माण हैं। महिला उत्थान में योगदान दे सकते हैं।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में प्राचार्या डॉ. श्रीमती हंसा शुक्ला ने महिलाओं की दशा एवं दिशा पर विचार व्यक्त करते हुये कहा चाहे सतयुग में सीता का परित्याग हो या द्वापर में द्रौपदी का चीरहरण या आधुनिक युग में दामिनी, महिला अत्याचार की शिकार हुई है। आज शिक्षा के द्वारा हमें उड़ान भरने की स्वतंत्रता दी जा रही है पर सामाजिक सुरक्षा के नाम पर हमारे पर काटे जा रहे हैं। नारी स्वतंत्रता की बात मंच पर होती है पर नारी को समझने के लिये नारी का दृष्टिकोण चाहिए। पुरूष के दृष्टिकोण से महिलाओं की समस्याओं का समाधान नहीं किया जा सकता। अगर हमें आगे बढऩा है, अपनी समस्याओं का समाधान करना है तो अपने पंखों में ही उडऩे का हौसला करना होगा, हमें अपनी उड़ान स्वयं भरनी होगी।
कार्यक्रम में विद्यार्थियों व प्रतिभागियों के प्रश्नों का उत्तर डॉ. प्रेरणा मल्होत्रा ने दिया। कार्यक्रम को सफल बनाने में महिला के सदस्य सहा.प्रा. श्रीमती अजीता सजिथ, सहा.प्रा. मीना मिश्रा, सहा.प्रा. उशा साहू, सहा.प्रा. डॉ. तृशा षर्मा, सहा.प्रा. टी. बबीता ने विषेश योगदान दिया। कार्यक्रम में बोरी, धमधा, दुर्ग, भिलाई, रायपुर, राजनांदगाँव आदि से अधिक से अधिक प्राध्यापक-प्राध्यापिकायें व छात्र-छात्रायें उपस्थित हुये। कार्यक्रम में मंच संचालन एवं धन्यवाद ज्ञापन श्रीमती नीलम गाँधी विभागाध्यक्ष वाणिज्य ने दिया।

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