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मन की शांति के लिए इगो को त्यागना जरूरी : ब्रह्मकुमारी उषा

Dec 18, 2017
भिलाई। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के 80 वर्ष पूर्ण होने पर 15 से 20 दिसंबर तक प्रात: सत्र सुबह 6:30 से 8 बजे तक पीस आॅडिटोरियम, सड़क-2, सेक्टर-7, में तथा संध्या 7 से 8.30 बजे तक सेक्टर 6, पुलिस र्ग्राउंड में विशेष शिविर का आयोजन किया जा रहा है। इस नि:शुल्क शिविर में अंतर्राष्ट्रीय मुख्यालय माउण्ट आबू की वरिष्ठ राजयोग शिक्षिका और मैनेजमेंट ट्रेनर ब्रह्माकुमारी उषा के तनावमुक्ति और सकारात्मकता के राजयोग के प्रेरक मंत्र के साथ संस्था की विकास यात्रा पर आयोजित प्रदशर्नी आकर्षण का प्रमुख केंद्र होगी।
ब्रह्माकुमारी उषा

भिलाई। ब्रह्मकुमारी उषा बहन ने कहा कि मन की शांति के लिए सबसे पहले इगो को त्यागना जरूरी है। इगो को त्यागकर सबसे प्रेमपूर्ण व्यवहार करने पर हमें न केवल मन की शांति मिलती है बल्कि दुआएं भी मिलती हैं। ब्रह्मकुमारी उषा बहन प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय द्वारा संस्था के 80 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में आयोजित राजयोग शिविर को संबोधित कर रही थीं। उन्होंने कहा कि आज हम सत्य से दूर हो रहे है, ईश्वर के बारे में कन्फ्यूज़ है, विभिन्न मत-मतांतर है, संसार में कितने भगवान हो गये है, मनुष्य भी स्वयं को भगवान कहने लगा है, जिससे सभी का विश्वास डगमगा रहा है। भभूति से असाध्य बीमारी भी ठीक हो जाती है, यह अज्ञानता और अंध विश्वास का प्रतीक है। विज्ञान के युग में हर एक के लिए लॉजिक है तो ईश्वर के लिए क्यों नहीं? अपने विवेक के आधार पर परखिये। ब्रह्मकुमारी उषा बहन ने कहा कि बिना परखे विश्वास करना अंधश्रद्धा है। इसलिए मनुष्य का मन भटकता है और मन की शांति के ह्रास से जीवन में भय बढ़ता जा रहा है। सत्य को जानने से भय नही रहेगा। भय की उत्पति अज्ञानता से होती है। पाँच तत्वों के पार छटा तत्व है जिसे ब्रह्मलोक और साधारणत: उपर वाला कहते है। गॉड इज़ वन, जो कि सर्वोच्च शक्ति, प्रकाश स्वरूप और सर्व धर्म मान्य है। जिसे गणितीय भाषा में बिंदु और अनंत के रूप में दर्शाया है। कुछ वर्ष पहले तक मनुष्य पाप कर्म करने से डरता था। हमने सभी शास्त्रों और ग्रंथों को भावनात्मक रूप से सत्य मान लिया है पर सैद्धांतिक रूप से नहीं।
मन की शांति और जीवन की शक्ति के लिए अंहकार को छोड़ दे। हमें सर्व के प्रति शुभ भावना रखनी है। वाणी के उपर संयम रखते हुए उमंग -उत्साह वाले बोल बोलने है। कड़वे बोल बद दुआ का कारण बनते है। हमारी मन की भावनाएं सबके प्रति शुभ होनी चाहिए। यदि कोई हमसे बुरा व्यवहार करे तो मधुर मुस्कुराना है और दिल की भावना रहे कि आप सुखी रहे, तो उन्हे फील होगा कि हम गलत है। दूसरों को झुकाने के लिए सदा प्रेम की शक्ति का प्रयोग करे। जैसे कि नीचें की गिरी हुई वस्तु को नहीं खाते है वैसे ही कड़वे बोल और मन को दुखाने वाले कर्म गिरी हुई वस्तु के समान है। तब आपके द्वारा औरों का परिवर्तन होगा और जीवन में शक्ति की प्राप्ति होगी। इस सभी बातों को जीवन में धारण करने के लिए राजयोग मेडिटेशन द्वारा अनुभव भी कराया गया।

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