रायपुर। छत्तीसगढ़ के राजकीय वृक्ष साल (सरई) के रोपण में दीमक की बांबी की उपयोगिता की चर्चा अंतरराष्ट्रीय विज्ञान जगत में हो रही है। साल वृक्ष के पुनरूत्पादन पर किया गया रिसर्च अमेरिकी साइंस जर्नल में प्रकाशित होगा। साल के वृक्ष के रोपण की तकनीक पर सालों रिसर्च किया गया लेकिन सफलता तभी मिल पाई जब वनवासियों के पारंपरिक तरीके को अपनाया गया। साल के रोपण की तकनीक पर छत्तीसगढ़ राज्य वनौषधि पादप बोर्ड के सदस्यों ने मैनेजिंग डायरेक्टर पीसीसीएफ शिरीष चंद्र अग्रवाल और एथिक्स फार्मा के सीईओ योगेंद्र चौधरी के नेतृत्व में काम किया। टीम के इस रिसर्च को अंतरराष्ट्रीय साइंस जर्नल एसएस पब्लिकेशन, डेलावारि, यूएसए ने प्रकाशित करने की सहमति दी है।
शिरीष चंद्र अग्रवाल ने बताया कि साल के बीज त्वचा के संपर्क में आते ही सूख जाते हैं। आदिवासी इसके रोपण करने के लिए बीज को पंख या लकड़ी से उठाते हैं। वनौषधि पादप बोर्ड ने उनकी इस तकनीक को समझा और इसके उपयोग से अब छत्तीसगढ़ में बड़े पैमाने पर साल के उत्पादन की तैयारी की जा रही है। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साल के बीजों का रोपण एक चुनौती बना हुआ है। ऐसे में छत्तीसगढ़ को मिली सफलता प्रदेश के लिए गौरव की बात है।
साल में औषधीय गुण भी होते हैं
साल के वृक्ष में तापमान नियंत्रण और भूजल संग्रहण की क्षमता होती है। इसके गोंद से पूजा में उपयोग होने वाली धूप बनाई जाती है। साल के पत्ते, छाल, फूल, बीज, जड़ का उपयोग कैंसर, फंगल, गैस संबंधी बीमारी, शुगर कंट्रोल करने और रोग प्रतिरोधक दवाइयां बनाने में किया जाता है।
दीमक की बांबी पर्यावरण संरक्षण में उपयोगी
दीमक की बांबी का प्रयोग साल के रोपण में उत्प्रेरक के रूप में किया जाता है। इसमें जल को सोखने की क्षमता होती है। इसे बढ़ावा देने से जल संग्रहण की क्षमता बढ़ेगी। इससे भारत जैसे विकासशील देशों में सूखती नदियों को बचाया जा सकता है। यह पर्यावरण संरक्षण और जलवायु नियंत्रण में भी उपयोगी है।