गुण्डरदेही। ब्रह्मकुमारी गीता दीदी ने कहा कि मन के अन्दर गुण और अवगुण के बीच द्वन्द्व चलता रहता है। जब मन थका हुआ होता है तब वह आसुरी शक्तियों से लडऩे में असमर्थ होता है। वह तनाव अथवा अवसाद का शिकार हो जाता है। ऐसे समय में गीता का ज्ञान उसे मोटिवेट करके अवसाद से बाहर निकलने में मदद कर सकता है। गीता दीदी प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरी विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित रामायण महाभारत एवं श्रीमद् भगवत गीता पर आधारित सात दिवसीय ज्ञान यज्ञ शिविर के द्वितीय दिवस पर शिविराथिर्यों को संबोधित कर रही थीं। उन्होंने बाताया कि गीता भागवत् श्री कृष्ण और अर्जुन का संवाद है। जब किसी मनुष्य के जीवन में विषम परिस्थितियां आती हैं तो वह मन ही मन भगवान से संवाद करता है। हमने अपने जीवन को इतना जटिल बना लिया है कि वह उलझ गई है। यदि जीवन के उद्देश्य को निश्चित कर लें तो हम जीवन के द्वन्द्व को समाप्त कर सकते हैं।
योग शक्ति गीता दीदी ने सांख्य योग अर्थात आत्म ज्ञान और स्थितप्रज्ञा अवस्था का वर्णन करते हुए कहा कि यह शरीर ही कर्म करने का क्षेत्र है। इसी के द्वारा किए गए कर्म संस्कार के रूप में सामने आते हैं। जीवन में आने वाले सुख-दुख हमारे ही अच्छे या बुरे कर्मों का परिणाम है। जीवन में हर घड़ी संघर्ष करना पड़ता है। जब हम नकारात्मक भावना के साथ संघर्ष करते है तब जीवन कठिन लगने लगता है। आत्मा अविनाशी है वह कभी मरती नहीं है। प्रकृति के पांच तत्व भी उसे नुकसान नहीं पहुंचा सकते। सांसारिक बन्धनों में बन्धकर आत्मा कमजोर होती है। अवगुणों के वश में होने से उसका प्रभाव कम हो जाता है।
गीता दीदी ने कहा कि जैसे हम नया वस्त्र धारण करने के लिए पुराना वस्त्र उतार देते हैं वैसे ही आत्मा भी नया शरीर धारण करने के लिए पुराने शरीर का त्याग करती है। इसलिए देह त्याग करने पर दुखी होने की जरूरत नहीं। जब हम बाल्यावस्था से युवावस्था में और यौवन से बुढ़ापे में जाने पर दुखी नहीं होते तो आत्मा के देह त्याग करने पर भी दुखी नहीं होना चाहिए।
गीता दीदी ने कहा कि जिसने शरीर की इन्द्रियों को वश में किया हुआ है वह अपरिग्रही है। वह कर्म बन्धन में नही बंधता। जो द्वन्द्व से परे है। सफलता असफलता में समान रहता है जो संगदोष कि आसक्ति से रहित और अभिमान से मुक्त स्थिर बुध्दि है। ऐसी संतुष्ट आत्मा के पूर्व के सारे विकर्म ज्ञान यज्ञ से दग्ध हो जाते हैं। ज्ञान यज्ञ में बुद्धि का शुद्धिकरण होता है। महान पापात्मायें भी ज्ञान नैया द्वारा संसार सागर को पार कर जाती हैं। भगवान अर्जुन से कहते है कि जिसने इंद्रियों के संयम से वासनाओं को जीता। जिसकी साधना में आसक्ति नहीं और जो परमात्मा में श्रध्दा तथा विश्वास रखता है, वह ज्ञान मार्ग पर अग्रसर होकर परम शान्ति को प्राप्त कर लेता है। इसके विपरीत विवेकहीन श्रद्धारहित संशययुक्त आत्मा पुरूषार्थ के मार्ग से भ्रष्ट हो जाती है और परम शान्ति से वंचित हो जाती है।
उन्होंने आगे कहा कि कौरव कौन? जो दूसरों के धन सम्पत्ति को हड़पने की कोशिश करते हैं। पाण्डव भगवान के प्रति प्रीत बुध्दि रखने वाले। पाण्डव का सारथी एक भगवान है।