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फुटपाथ से उठती है बारह खड़ी और पहाड़ों की आवाज

Feb 5, 2018

इंदौर। किला मैदान रोड के पास फुटपाथ पर लोहा पीटने की आवाज के बीच से 'अ' अनार का, 'आ' आम का और 'दो एकम दो... दो दूनी चार...' की आवाज सुनाई पड़ती है। फुटपाथ पर टंगे बोर्ड और बारहखड़ी के पोस्टर खुद ब खुद निगाह उस तरफ खींच लेते हैं। पंद्रह-बीस के समूह के बीच बैठे मास्टरजी बच्चों को पढऩे-लिखने और अच्छा इंसान बनने की नसीहत देते हैं। जहां इस व्यस्त जीवनशैली में लोगों के पास अपने बच्चों को पढ़ाने का समय नहीं है, वहीं किला मैदान वीआईपी रोड पर फुटपाथ पर भटकने वाले बच्चों के लिए रोज क्लास लगती है।इंदौर। किला मैदान रोड के पास फुटपाथ पर लोहा पीटने की आवाज के बीच से ‘अ’ अनार का, ‘आ’ आम का और ‘दो एकम दो… दो दूनी चार…’ की आवाज सुनाई पड़ती है। फुटपाथ पर टंगे बोर्ड और बारहखड़ी के पोस्टर खुद ब खुद निगाह उस तरफ खींच लेते हैं। पंद्रह-बीस के समूह के बीच बैठे मास्टरजी बच्चों को पढऩे-लिखने और अच्छा इंसान बनने की नसीहत देते हैं। जहां इस व्यस्त जीवनशैली में लोगों के पास अपने बच्चों को पढ़ाने का समय नहीं है, वहीं किला मैदान वीआईपी रोड पर फुटपाथ पर भटकने वाले बच्चों के लिए रोज क्लास लगती है। रूपांकन संस्था से जुड़े रवींद्र व्यास और अशोक दुबे दोपहर में 2 से 4 बजे तक लोहारी करने वालों के बच्चों को पढ़ाते हैं। यहां न कोई कमरा है न सुविधा है। पेड़ के नीचे फुटपाथ पर ही दरी बिछाकर क्लास शुरू हो जाती है। मास्टरजी को देखते ही बच्चे आकर बैठ जाते है। यहां 3 से लेकर 10 साल तक की उम्र के बच्चे एक ही कक्षा में पढ़ते हैं। यहां कोई भी बच्चे स्कूल नहीं जाते। वे खुद ही बच्चों के लिए स्लेट और पेनसिल लेकर जाते हैं। उन्हें पढ़ाई का महत्व समझाते हैं।
व्यास के मुताबिक हम बच्चों को पढ़ाई के साथ साफ सुथरा रहने, गंदगी से बचने, अच्छा भोजन करने, गाली-गलौज न करने और ईश्वर प्रेम की बातें सिखाते हैं ताकि वे विषय परिस्थितियों में रहकर थोड़ा बेहतर बन सके। अगर इनमें से दो-तीन बच्चों में भी पढऩे की ललक जगने से वे स्कूल में भर्ती हो जाए तो यही हमारी सफलता है।
यह पाठशाला बच्चों के हिसाब से अलगअलग इलाकों में लगती है। व्यास बताते हैं- हमारा मकसद गैर प्रवेश बच्चों को शिक्षा की मुख्य धारा से जोडऩा है ताकि उन्हें और उनके परिवार को शिक्षा का महत्व समझ आ सके। कई वर्षों से वीआईपी रोड पर स्कूल चला रहे हैं। इन बच्चों के माता-पिता को भी हम इसी तरह पढ़ा चुके हैं। इससे उनकी चोरी, अटाला बीनना, गाली-गलौज, शराब पीने जैसी बुरी आदतें दूर हुई हैं। आचार-विचार में भी बदलाव शुरू हो गया है लेकिन उन्हें कक्षा में लाना बड़ी चुनौती है।

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