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मोदी की पाठशाला, प्रतिस्पर्धा नहीं, अनुस्पर्धा कीजिए

Feb 17, 2018

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में छात्रों को परीक्षा के तनाव से मुक्त होने के लिए गुरुमंत्र दिए। मोदी की पाठशाला में मौजूद छात्रों के अलावा टीवी के माध्यम से जुड़े छात्रों के लाइव सवालों के भी जवाब दिए। पीएम ने छात्रों को बताया कि कैसे परीक्षा के तनाव को दूर किया जाए, कैसे आत्मविश्वास बढ़ाएं, कैसे पढ़ाई पर एकाग्र हों। उन्होंने अभिभावकों को भी सलाह दी कि वे अपने अधूरे सपनों को अपने बच्चों पर न थोपें।नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में छात्रों को परीक्षा के तनाव से मुक्त होने के लिए गुरुमंत्र दिए। मोदी की पाठशाला में मौजूद छात्रों के अलावा टीवी के माध्यम से जुड़े छात्रों के लाइव सवालों के भी जवाब दिए। पीएम ने छात्रों को बताया कि कैसे परीक्षा के तनाव को दूर किया जाए, कैसे आत्मविश्वास बढ़ाएं, कैसे पढ़ाई पर एकाग्र हों। उन्होंने अभिभावकों को भी सलाह दी कि वे अपने अधूरे सपनों को अपने बच्चों पर न थोपें। प्रधानमंत्री ने कहा, ‘यह कोई प्रधानमंत्री का कार्यक्रम नहीं है…देश के करोड़ों बच्चों का कार्यक्रम है…मुझे विश्वास है कि मुझे एक विद्यार्थी के नाते…आप लोग मेरे एग्जामिनर हैं…देखते हैं आप लोग मुझे 10 में से कितना नंबर देते हैं।’प्रधानमंत्री ने आत्मविश्वास की अहमियत को विस्तार से समझाया। प्रधानमंत्री ने कहा, ‘मेहनत में कोई कमी नहीं होती…ईमानदारी से मेहनत की होती है..लेकिन आत्मविश्वास नहीं है तो सारी मेहनत के बावजूद जवाब याद नहीं आता…मैं बचपन में विवेकानंद को पढ़ा करता था…वह कहते थे अहं ब्रह्मस्मि यानी मैं ही ब्रह्म हूं…वह आत्मविश्वास जगाने के लिए ऐसा कहते थे….वह कहते थे कि तुम 33 करोड़ देवी-देवताओं की पूजा भले ही करो लेकिन अगर तुम्हारे अंदर आत्मविश्वास नहीं है तो देवी-देवता कुछ नहीं करेंगे।’
पीएम मोदी ने कहा, ‘एग्जाम के दिन आप भगवान को याद करते हैं…आम तौर पर विद्यार्थी देवी सरस्वती की पूजा करते हैं लेकिन परीक्षा से पहले हनुमानजी की पूजा करते हैं…मैं छोटा था तो इसका मजाक उड़ाता था कि हनुमानजी की पूजा इसलिए करते हैं कि परीक्षा के दौरान नकल करने पर वे न पकड़े जाएं।Ó प्रधानमंत्री ने कहा, ‘आत्मविश्वास कोई जड़ी-बूटी नहीं है…आत्मविश्वास लंबे भाषण सुनकर नहीं आता…हमें हर पल कसौटी पर कसने की आदत डालनी चाहिेए…आत्मविश्वास हर कदम पर कोशिश करते-करते बढ़ता है…इसलिए हमेशा कोशिश करनी चाहिए। मैं जहां हूं उससे बेहतर करना है, यह भाव होना चाहिए।’
कनाडा के खिलाड़ी का दिया उदाहरण
प्रधानमंत्री ने आत्मविश्वास की अहमियत बताने के लिए कनाडा के एक खिलाड़ी का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा, ‘अभी-अभी एक खबर दिल को छू गई। साउथ कोरिया में विंटर ओलिंपिक चल रहे हैं…कनाडा का एक खिलाड़ी मार्क खेल रहा है…स्नो बॉल में ब्रॉन्ज ले आया…स्नो बॉल के प्रैक्टिस में उसे पहले बहुत ज्यादा चोट लगी थी…कई फ्रैक्चर हुए थे…कोमा में था… 11 महीने तक अस्पताल में था…उसने अपनी प्रोफाइल पर दो फोटो लगाए हैं…एक में अस्पताल में कोमा वाला …दूसरे में ब्रॉन्ज मेडल…और लिखा है धन्यवाद जिंदगी…यह है आत्मविश्वास। आत्मविश्वास हर पल प्रयासों से आता है।’
‘दिमाग से निकाल दें कि आप परीक्षा दे रहे हैं’
प्रधानमंत्री ने परीक्षा के तनाव को खत्म करने के लिए सुझाव देते हुए कहा कि दिमाग से निकाल दें कि आप एग्जाम दे रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘एग्जाम के दौरान आप दिमाग से यह निकाल दीजिए कि आप एग्जाम दे रहे हैं…कोई आपका मूल्यांकन करेगा…खुद को जांचना-परखना छोड़ दीजिए…ऐसा करके देखिए…आत्मविश्वास बढ़ेगा।’
एकाग्रता के लिए मंत्र
एकाग्रता बढ़ाने का मंत्र देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, ‘हमें लगता है कि एकाग्रता कोई खास विधा है जिसे सीखना पड़ता है लेकिन ऐसा नहीं है। आप गाना सुनते हैं तो एक-एक शब्द याद रहता है…आप किसी दोस्त से फोन पर बात कर रहे हैं और वहीं पर आपका प्रिय गाना बज रहा है…लेकिन आप तुरंत ही फोन पर दोस्त के साथ कनेक्ट हो जाते हैं…यानी फोन पर एकाग्र हो गए…इसका मतलब है कि एकाग्रता के लिए कोई अतिरिक्त प्रयास की जरूरत नहीं है…जिन चीजों में सिर्फ बुद्धि नहीं, आपका हृदय भी जुड़ जाता है, वे चीजें जिंदगी का हिस्सा बन जाती हैं…योग को कुछ लोग शारीरिक एक्ससाइज मानते हैं लेकिन योग का मूल काम शरीर, बुद्धि, मन, आत्मा को सिन्क्रोनाइज करना है।’
‘वर्तमान में जीने की आदत से आती है एकाग्रता’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एकाग्रता के लिए महान क्रिकेटर सचिन तेंडुलकर का उदाहरण दिया। पीएम ने कहा, ‘आपको याद होगा कि एक बार मन की बात में मेरे साथ सचिन बात कर रहे थे। किसी बालक ने उनसे ऐसा ही सवाल पूछा था। उन्होंने जवाब में कहा था कि मैं जब खेलता हूं तो इससे पहले कौन सी गेंद थी, मैं कैसा खेला था…अगली गेंद कैसी आएगी…इसपर दिमाग नहीं लगाता…मैं उस समय उसी बॉल के बारे में सोचता हूं जो आ रही है…बाकी कुछ नहीं सोचता। वर्तमान में जीने की आदत एकाग्रता के लिए रास्ता खोल देती है। कभी-कभी आप किताब पढ़ते हैं..सब कुछ ठीक है लेकिन आप ऑफलाइन हैं…आप किताब से कनेक्ट नहीं होते हैं…इसलिए जब भी कुछ करें तो ऑनलाइन होना चाहिए।’
‘दूसरों से खुद की न करें तुलना’
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘आप लोग खेल के विज्ञान को जानते होंगे..युद्ध के विज्ञान को जानते होंगे….आप अपने मैदान में खेलिए…जब आप सामने वाले के मैदान में जाते हैं तो बड़ा रिस्क ले लेते हैं…युद्ध में भी ऐसा होता है…आप अपने दोस्तों के साथ स्पर्धा में उतरते क्यों हैं…उसका मैदान, उसकी सोच, उसकी परवरिश, उसकी रूचि, उसका माहौल आपसे अलग है….अगर उसकी तरह बनने की कोशिश करेंगे तो जो आपका है उसे भी खो देते हैं।’
‘प्रतिस्पर्धा नहीं, अनुस्पर्धा कीजिए’
प्रधानमंत्री ने स्टूडेंट्स को अनुस्पर्धा का मंत्र दिया। उन्होंने कहा कि दूसरे से प्रतिस्पर्धा के बजाय खुद से स्पर्धा कीजिए। उन्होंने कहा, ‘पहले अपने आपको जानने की कोशिश करो…अपनी खूबियों को पहचानिएं…खेल जगत में बड़ा-बड़ा नाम करने वालों की डिग्री कोई पूछता है क्या? क्योंकि उसने अपनी ताकत पहचान ली। खुद को न जानना समस्या का एक कारण होता है। जब भी आप प्रतिस्पर्धा में उतरते हैं तो तनाव होता है…दूसरे को देखते हैं कि वह 4 घंटे पढ़ता है..इतने घंटे पढ़ता है और आप कहते हैं कि खुद भी ऐसा करेंगे….प्रतिस्पर्धा अपने आप हो जाएगी…दूसरे लोगों को प्रतिस्पर्धा में आने दीजिए, आप उनकी प्रतिस्पर्धा में शामिल मत होइए…आप अनुस्पर्धा कीजिए यानी खुद के साथ स्पर्धा कीजिए….आप प्रतिस्पर्धा के चक्कर से निकलिए।’
अनुस्पर्धा को समझाने के लिए यूक्रेन के खिलाड़ी का दिया हवाला
अनुस्पर्धा को स्पष्ट करने के लिए प्रधानमंत्री ने यूक्रेन के एक खिलाड़ी का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा, ‘यूक्रेन का एक ओलिंपियन है मिस्टर बोका…उसने खुद के रेकॉर्ड को 36 बार तोड़ा…वह औरों को देखता तो वही अटक जाता लेकिन उसने खुद से अनुस्पर्धा किया और अपने ही रेकॉड्र्स को तोड़ा।’
अभिभावकों, माता-पिता के बनाए दबाव पर
प्रधानमंत्री ने अभिभावकों से कहा कि वे अपने अधूरे सपनों को बच्चों पर न थोपें। इसके साथ ही उन्होंने स्टूडेंट्स से भी कहा कि वे अपने माता-पिता के इरादों पर शक न करें। प्रधानमंत्री ने कहा, ‘हम अपने माता-पिता के इरादों पर शक न करें…वे हमारे लिए जिंदगी खपा देते हैं…त्याग करते हैं…बहुत से मां-बाप ऐसे होते हैं जो अपने बचपन के अधूरे सपनों को अपने बच्चों में देखने लगते हैं…बच्चा खिलाड़ी बनना चाहता है, मां-बाप डॉक्टर बनाना चाहते हैं….इच्छाओं के भी भूत होते हैं जो आपको जकड़ लेते हैं…मां-बाप से खुलकर बात करनी चाहिए…जब वे अच्छे मूड में हो तब करनी चाहिए….यह भारत के बच्चों को सिखानी नहीं पड़ती है क्योंकि हिंदुस्तान का बच्चा जन्मजात पॉलिटिशन होता है। बच्चों को मालूम है कि कुछ काम दादी से, ममी से, भाई से या बहन से हो जाएंगे।’
‘बच्चों की पढ़ाई को सोशल स्टेटस न बनाएं अभिभावक’
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘मैं अभिभावकों से कहना चाहूंगा कि आपने इसको जो सोशल स्टेटस बना लिया है कि मेरा बेटा यह कर रहा है, मेरी बेटी यह कर रही है…ऐसा मत कीजिए…दूसरे के बच्चों की कथा सुनकर आप मन ही मन सोचते हैं कि मेरे बच्चे बेकार हैं…घर पर पत्नी पर बरसते हैं कि तुमने क्या सिखाया बच्चों को…घर पहुंचते ही बच्चा अगर सामने मिल गया तो उसकी खैर नहीं…अपने बच्चे की किसी दूसरे के बच्चे से तुलना न कीजिए…हर किसी को भगवान ने कोई न कोई परमशक्ति दी होती है…उसे पहचानिए…एग्जाम ही जिंदगी नहीं होती है…पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम फाइटर प्लेन का पाइलट बनना चाहते थे लेकिन फेल हो गए..तो क्या उनकी जिंदगी बेकार हो गई…नहीं, उन्होंने उससे भी बड़ा काम किया।’
‘फोकस करना है तो डिफोकस होना सीख लीजिए’
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘आपको अंदर से कुछ खाली करना सीखना चाहिए…फोकस करके रहेंगे तो चेहरे पर भी तनाव रहेगा…मेरे कुछ साथ मुझसे कहते थे कि जब आप टीवी पर बैठते हैं तो गंभीर क्यों होते हैं…ऐसा इसलिए होता है कि मैं डिफोकस नहीं होता हूं…जैसे ही मैं डिफोकस होता हूं तो सब कुछ सामान्य हो जाता है।’

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