पटना। कुछ लोग, जिनमें बड़ी तादाद में शिक्षित लोग भी शामिल हैं का मानना है कि बिना दान दहेज के शादी हो ही नहीं सकती। दान का तो समझ में आता है। हमेशा के लिए किसी और घर, कुल, गोत्र में शामिल होने जा रही बेटी को कोई खाली हाथ नहीं भेजता पर तिलक पर दहेज की मांग अशोभनीय, पीड़ादायक और अपराध है। बिहार के लोगों ने अब खुद ही इसका हल ढूंढ लिया है। योग्य वर को अब पकड़ुआ विवाह का दंश झेलना पड़ रहा है। पिछले साल राज्य में करीब 3400 युवकों का ‘पकड़ुआ विवाह’ कराया गया। इसमें युवक का अपहरण कर लिया जाता है और किसी लड़की से उसकी जबर्दस्ती शादी करा दी जाती है। बिहार में ‘पकड़ुआ विवाह’ बहुत होते हैं। रविवार को ऐसे विवाहों के अधिकृत आंकड़े पुलिस ने जारी किए। पुलिस के अनुसार पिछले साल राज्य में कुल 3405 जबरन विवाह हुए। एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि इन विवाहों में अधिकांश लड़कों और उनके परिजनों को जान की धमकी देकर बंदूक की नोक पर कराए जाते हैं।
पिछले माह पटना के एक गांव में एक इंजीनियर का जबरन विवाह राष्ट्रीय अखबारों की सुर्खी बना था। उसने अपनी नवविवाहित पत्नी को साथ रखने से इन्कार कर दिया था, क्योंकि उसका विवाह बंदूक की नोक पर अपहरण के बाद जबर्दस्ती किया गया था। पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार बिहार में अमूमन हर रोज नौ विवाह जबरन होते हैं। इनकी बढ़ती संख्या को देखते हुए सभी पुलिस अधीक्षकों को इसी माह शुरू हो रहे ‘लगनÓ में ऐसे विवाहों को लेकर सजग रहने और उनकी रोकथाम के उपाय करने के निर्देश दिए गए हैं।
राज्य के बाढ़ की आशंका वाले क्षेत्र कोशी के सामाजिक कार्यकर्ता महेंदर यादव ने कहा कि पकड़ुआ विवाह कोई असामान्य बात नहीं है, लेकिन इनकी संख्या बढऩा चिंताजनक है। उन्होंने बताया कि दहेज की मांग के कारण यह तरीका अपनाया जाने लगा, जो वर्षों से जारी है। लड़कियों का परिवार उपयुक्त लड़के को अगवा कर लेता है और उसकी अपनी लड़की से बलपूर्वक शादी कर देता है। लड़कों के अपहरण के लिए लड़की वाले अक्सर अपने मित्रों, परिजनों और यहां तक की पेशेवर अपराधियों का भी उपयोग करते हैं।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की 2015 की रिपोर्ट के अनुसार बिहार 18 साल के ज्यादा उम्र के लड़कों के अपहरण के मामले में देश में अव्वल है। राज्य में 2015 में 18 से 30 साल की उम्र के 1,096 युवकों को अगवा किया गया था। देश में इस आयु वर्ग के लड़कों के अपहरण का यह 17 फीसद है।