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देश की कुल आबादी में 10 फीसदी दिव्यांग, दया नहीं सहयोग करें

May 14, 2018

भिलाई। देश की आबादी का दस प्रतिशत दिव्यांगों का है। अनेक ऐसे हैं जिनकी विकलांगता अंशत: या पूर्णत: ठीक हो सकती है, आवश्यकता है उपचार की व उपकरणों की। दिव्यांग दया के पात्र नहीं है वरन सहयोग के आकांक्षी हैं वे आत्म निर्भर होना चाहते है। समाज में इनके प्रति अभी भी उपेक्षा का भाव है। दिव्यांग को समाज की मुख्य धारा से जोड़ना आवश्यक है, जिसके लिये लोगों को जागरूक करना होगा। इन्हीं उद्देश्यों की पूर्ति हेतु अखिल भारतीय विकलांग चेतना परिषद व स्वरूपानंद महाविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में राज्य स्तरीय निबंध प्रतियोगिता का आयोजन किया गया, जिसका पुरस्कार वितरण समारोह छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के अध्यक्ष डॉ. विनय पाठक के मुख्य आतिथ्य में तथा अध्यक्षता दुर्ग विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. शौलेन्द्र सराफ की उपस्थिति में संपन्न हुआ। विशिष्ट अतिथि के रूप में श्री गंगाजली शिक्षण समिति के चेयरमेन आईपी मिश्रा, अखिल भारतीय विकलांग चेतना परिषद छ.ग. के अध्यक्ष, डी.पी. अग्रवाल, श्री मदनमोहन अग्रवाल, राष्ट्रीय महामंत्री अखिल भारतीय विकलांग चेतना परिषद् एवं प्राचार्य डॉ. श्रीमती हंसा शुक्ला उपस्थित थीं। भिलाई। भिलाई। देश की आबादी का दस प्रतिशत दिव्यांग है. अनेक ऐसे हैं जिनकी विकलांगता अंशत: या पूर्णत: ठीक हो सकती है, आवश्यकता है उपचार की व उपकरणों की। दिव्यांग दया के पात्र नहीं है वरन सहयोग के आकांक्षी हैं वे आत्म निर्भर होना चाहते है। समाज में इनके प्रति अभी भी उपेक्षा का भाव है। दिव्यांग को समाज की मुख्य धारा से जोड़ना आवश्यक है, जिसके लिये लोगों को जागरूक करना होगा। इन्हीं उद्देश्यों की पूर्ति हेतु अखिल भारतीय विकलांग चेतना परिषद व स्वरूपानंद महाविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में राज्य स्तरीय निबंध प्रतियोगिता का आयोजन किया गया, जिसका पुरस्कार वितरण समारोह छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के अध्यक्ष डॉ. विनय पाठक के मुख्य आतिथ्य में तथा अध्यक्षता दुर्ग विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. शौलेन्द्र सराफ की उपस्थिति में संपन्न हुआ। विशिष्ट अतिथि के रूप में श्री गंगाजली शिक्षण समिति के चेयरमेन आईपी मिश्रा, अखिल भारतीय विकलांग चेतना परिषद छ.ग. के अध्यक्ष, डी.पी. अग्रवाल, श्री मदनमोहन अग्रवाल, राष्ट्रीय महामंत्री अखिल भारतीय विकलांग चेतना परिषद् एवं प्राचार्य डॉ. श्रीमती हंसा शुक्ला उपस्थित थीं। कार्यक्रम संयोजिका डॉ. तृषा शर्मा एसोसिएट प्रो. शिक्षा विभाग ने कहा की विकलांग व्यक्तियों की दैनिक जीवन की चुनौतियों का सामना करने के बारे में जागरूकता पैदा करने के प्रति तथा विकलांग व्यक्तियों को सहयोग देने के लिये जन सामान्य को प्रोत्साहित करना ही इस निबंध प्रतियोगिता का उद्देष्य है। विकलांगता कोई अभिषाप नहीं है सामाजिक धारणाओं और संकुचित सोच के चलने विकलांगता के षिकार लोगों को बहुत सी परेषानियों का सामना करना पड़ता है इसके लिये हमें अपनी सक्रिय जिम्मेदारी का निर्वाह करना, उनके आत्मसम्मान के निर्माण में सहयोग करना ताकि वे आत्म निर्भर बनें, इस निबंध प्रतियोगिता में दुर्ग जिले के आठ महाविद्यालयों से तथा विभिन्न संस्थाओं से तिरपन लोगों ने भाग लिया।
प्राचार्य डॉ. श्रीमती हंसा शुक्ला ने अपने उद्बोधन में कहा कि शारीरिक विकलांगता पर मानसिक विकलांगता हावी हो रही है जो व्यक्ति शारीरिक रूप से विकलांग है पर मानसिक रूप से दृढ़ है वह असंभव कार्य भी कर सकते है। उनमें विकलांगता हावी नहीं होती परन्तु कोई सामान्य व्यक्ति भी मानसिक रूप से विकलांग है तो वह काम नहीं कर सकता। यह प्रतियोगिता विद्याथिर्यों, अध्यापकों, समाजसेवकों, विकलांगों तथा सामान्य जनता के लिये था। किसी के अंदर कौषल है, क्षमता है तो उनकी प्रतिभा को प्रदर्षित करने के लिये अखिल भारतीय विकलांग चेतना परिशद् द्वारा इस प्रतियोगिता का आयोजन किया गया।
मदनमोहन अग्रवाल महामंत्री अखिल भारतीय चेतना परिषद ने कहा निबंध प्रतियोगिता के माध्यम से हम लोगों में चेतना विकसित करना चाहते है हमारा मकसद दिव्यांग को सक्षम बनाना है। शल्य क्रिया के माध्यम से जिनमें विकृति है उनकी विकृति दूर करने का प्रयास किया जा रहा है साठ से अधिक लोगों का ईलाज शिविर के माध्यम से किया जा चुका है हम मनुष्य हैं यह मनुष्यता का भाव दिव्यांग में जागृत करना विकलांग चेतना परिषाद का मुख्य ध्येय है।
अखिल भारतीय चेतना परिषद के कायर्कारी अध्यक्ष डी.पी. अग्रवाल ने बताया अब तक विकलांगता को पाठ्यक्रम में शामिल नहीं किया गया है यह दुर्भाग्यपूर्ण है विषय को पाठ्यक्रम में शामिल करने से लोगों में जागरूकता आयेगी।
राजभाषा आयोग के अध्यक्ष डॉ. विनय पाठक ने आयोजन के लिये बधाई दी व अखिल भारतीय विकलांग चेतना परिषद के अवदानों पर प्रकाश डाला व बताया विकलांग शोधपीठ व विकलांग चिकित्सालय की स्थापना की जा रही है जिससे दिव्यांगों की चिकित्सा हो सके व उन्हें आत्म निर्भर बनाया जा सके। दिव्यांग को ना आत्महीनता की भावना रखना है ना लोगों की उपेक्षा उनके लिये अपने मन में उपेक्षा का भाव ना रखें बल्कि उन्हें आदर व सम्मान के भाव से देखें।
दुर्ग विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. शैलेन्द्र सराफ ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा हमारी संस्कृति आक्रमक संस्कृति नहीं रही, हम कई वर्षा तक परतंत्र रहे पर हमारी संस्कृति जीवित रही कारण है हमारे परिवार में हमारे संस्कार जीवित है हमारी संस्कृति स्वजन सुखाय बहुजन हिताय की संस्कृति रही है। सुरदास की प्रतिभा को हम कभी कम नहीं आंक सकते। दिव्यांग समाज से सहानुभुती नहीं चाहते, वे चाहते है हम उनको बराबरी का दर्जा दें। कई बार दिव्यांग सामान्य व्यक्ति से अच्छा राश्ट्र निर्माण में कार्य कर सकता है इस प्रकार के आयोजन होने चाहिये, जिसमें सभी को हिस्सा लेना चाहिये। हार-जीत की भावना महत्वपूर्ण नहीं है महत्वपूर्ण है भाग लेना। हम अपनी पीढ़ी के लिये कुछ देकर जायें जिसे हमारी पीढ़ीयाँ याद रख सकें।
इस अवसर पर श्री गंगाजली शिक्षण समिति के चेयरमेन श्री आई.पी. मिश्रा ने घोषणा की शंकराचार्य मेडिकल कॉलेज में दिव्यांगों का नि:शुल्क ईलाज किया जायेगा। उन्होने अपने उद्बोधन में कहा मनुष्य का जीवन अत्यंत दुर्लभ है पशु तो अपने लिये ही जीवित रहता है, मनुष्य में मस्तिष्क व विचार करने की क्षमता है व दूसरे के हित हेतु कार्य कर सकता है। जब मनुष्य जन्म हमें मिला है तो असहाय कमजोर की सहायता हेतु सतत प्रयास करते रहना चाहिये। दिव्यांग भी हमारे समाज का हिस्सा हैं उन्हें समाज के मुख्य धारा में शामिल करना आवश्यक है। इस प्रकार के आयोजन से लोगों में जागरूकता आयेगी हमें विकलांगता व कुरूपता के आधार पर किसी का अपमान नहीं करना चाहिये।
निबंध के निर्णायक डॉ. श्रीमती नलिनी श्रीवास्तव, भूतपूर्व विभागाध्यक्ष हिन्दी, सेंट थॉमस महाविद्यालय, व शीला शर्मा, विभागाध्यक्ष हिन्दी विभाग, खुर्सीपार भिलाई का सम्मान किया गया। मंच संचालन श्रीमती नीलम गांधी, विभागाध्यक्ष, वाणिज्य विभाग ने किया। कार्यक्रम में विषेश सहयोग स.प्रा. श्रीमती उशा साहू, तथा स.प्रा. श्रीमती जया तिवारी ने दिया एवं कार्यक्रम में महाविद्यालय के समस्त प्राध्यापक-प्राध्यापिकायें एवं उपस्थित हुये।
निबंध प्रतियोगिता के परिणाम निम्नलिखित है:- सीमा कुमारी, भिलाई महाविद्यालय सर्वोत्तम तथा रीतू नेताम जगदगुरू शंकराचार्य महाविद्यालय उत्तम।

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