कटघोरा, कोरबा । हनी बी यानि मधुमक्खियों को न केवल शहद की मिठास और उत्पादन में विशेषज्ञता हासिल है, परागण क्रिया के माध्यम से फसल उत्पादकता में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। वैज्ञानिकों के शोध में यह स्पष्ट हो चुका है कि मधुमक्खी पालन से केंद्र के आसपास के खेतों-बाड़ियों में ली जाने वाली फसल का उत्पादन 10 से 30 फीसदी तक ज्यादा प्राप्त होता है। यही वजह है जो शासन-प्रशासन मधुमक्खी पालन की दिशा में ज्यादा से ज्यादा किसानों की भागीदारी अर्जित करने पर जोर दे रही।यह बातें कृषि विज्ञान केंद्र कटघोरा के कृषि वैज्ञानिक डॉ. एसके उपाध्याय ने किसानों का मार्गदर्शन करते हुए ग्राम लैंगी में कही। कृषि विज्ञान केंद्र कटघोरा के तत्वावधान में पोड़ी-उपरोड़ा विकासखंड अंतर्गत ग्राम लैंगी में एक कार्यक्रम व कायर्शाला का आयोजन किया गया था। मधुमक्खी पालन की विशेषताओं व उससे होने वाले कृषि आधारित फायदों से अवगत कराने यह कार्यक्रम वर्ल्ड हनी बी डे के अवसर पर आयोजित किया गया था। कार्यक्रम में कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि वैज्ञानिक डॉ. उपाध्याय ने किसानों को बताया कि ज्यादातर फसलों में परागण क्रिया के लिए मधुमक्खियां अहम सहायक होती हैं।
परागण के माध्यम से फसल उत्पादकता में दस से 30 फीसदी तक की बढ़ोतरी दर्ज की जा सकती है, इसलिए किसानों को पारंपरित कृषि आधारित फसलों पर परिश्रम करने के साथ मधुमक्खी पालन के व्यावसायिक विकल्प से भी जुड़ना चाहिए। इस कार्यक्रम में क्षेत्र के 30 से ज्यादा किसानों ने शामिल होकर जानकारी प्राप्त की।
शहद-मोम से आमदनी के वैकल्पिक स्त्रोत
डॉ. उपाध्याय ने बताया कि कृषि कार्य के साथ मधुमक्खी पालन के माध्यम से किसान भाई अपनी आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ कर सकते हैं, जिसमें फसल उत्पादकता बढ़ाने मदद तो मिलेगी ही, शहद उत्पादन कर अतिरिक्त आय भी अर्जित की जा सकती है।
शहद के अलावा मधुमक्खी के छत्ते से वैक्स यानि मोम भी बनता है। आम के आम गुठलियों के दाम की तर्ज पर इस व्यवसाय से दोहरा लाभ अर्जित किया जा सकता है, जरूरत है तो सिर्फ इसे अच्छी तरह समझ-बूझकर प्रशिक्षण प्राप्त करने की। एक संतुलित व परिष्कृत योजना के तहत कार्य शुरू कर अच्छी आय का जरिया विकसित किया जा सकता है। कार्यक्रम के दौरान कृषि विज्ञान केंद्र की मत्स्य वैज्ञानिक सुलोचना भुइयां व मृदा वैज्ञानिक दीपक तंवर भी मौजूद रहे।