भिलाई। सिविक सेन्टर भिलाई की सिविक लाइफ का केन्द्र रहा है। 70 के दशक में बाटा, जसवंत टेलर्स, बाम्बे फैशन, बैनसन, बंसल, भूरा, रेडियो, क्वालिटी, चौहान के लिए विख्यात रहे सिविक सेन्टर की पहचान यहां के फेरीवालों से भी थी। बात चाहे ‘भिलाई में आया पेड़ा नहीं खाया’ की हो या फिर देसी वायलिन ‘किंगरी’ या ‘रकाब’ की लंबी तानों का, ‘चना जोर गरम’ की हो या चाट-गुपचुप-एटमबम का, छतरी नुमा सुपर बाजार के साथ ही इन सबकी अपनी पहचान थी। समय के साथ सुपर बाजार नेहरू आर्ट गैलरी बन गया, भूरा सहेली हो गया, बुक स्टोर गायब हो गया, ‘चना जोर गरम’ और ‘पेड़ा नहीं खाया’ की आवाजें गुम हो गर्इं। एटम बमों की जगह इडली, दोसा, पावभाजी, कुलफी, बिरयानी, फ्राइड राइस ने ले ली। उस दौर की आखरी निशानी के रूप में ये बाबा आज भी यहां फेरे लगाते दिख जाते हैं। देसी वायलिन की टूटी-फूटी तानों के साथ लड़खड़ाते कदमों से आगे बढ़ते बाबा अब एकतारा बेचते नहीं हैं। कानों से सुनाई पड़ना बंद हो गया है। सवालों के जवाब नहीं देते। नाम, उम्र, सिविक सेन्टर से नाता जैसे हर सवाल के जवाब में वे देसी वायलिन के तारों पर कमान फेर देते हैं। लोग उन्हें 10-20 से लेकर 50 रुपए तक दे देते हैं। पैसे मिलने पर वे बुदबुदाते हैं और फिर अपने रकाब के तारों को छेड़ते हुए आगे बढ़ जाते हैं।