• Wed. Apr 24th, 2024

Sunday Campus

Health & Education Together Build a Nation

जनसम्पर्क संचालक उइके ने सिखाया जीवन जीने का सलीका

Jul 28, 2018

Chandrakant Uike IASभिलाई। छत्तीसगढ़ शासन के संयुक्त सचिव एवं जनसम्पर्क विभाग के संचालक चंद्रकांत उइके आईएएस सदा खुश रहते हैं। श्रीशंकचाराचार्य महाविद्यालय में उन्होंने इसका राज बताया और जीवन जीने के कुछ टिप्स भी दिए। वे गुरू पूर्णिमा पर ‘विविधा’ द्वारा आयोजित सम्मान, संवाद एवं विमोचन समारोह को मुख्य अतिथि की आसंदी से संबोधित कर रहे थे। आइडेन्टिटी क्राइसिस की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि शिक्षक, गायक, नर्तक, खिलाड़ी असंख्य होते हैं पर इनमें से कुछ को ही दुनिया पहचानती है और याद रखती है। हम सभी वह बनना चाहते हैं कि लोग हमें जानें, पहचानें और याद रखें। पर इसके लिए करते कुछ भी नहीं हैं। जबकि छोटी छोटी बातों का ध्यान रखकर हम ऐसा कर सकते हैं।Shankaracharya-Mahavidyalay Chandrakant Uike IAS SSMVउन्होंने हैदराबाद की एक घटना का जिक्र करते हुए बताया कि वहां एक रिटायर्ड कर्नल श्री राव से उनकी मुलाकात हुई जिनसे घनिष्ट संबंध बन गए। कर्नल राव से उनकी मुलाकात प्रात: भ्रमण के दौरान हुई। कर्नल राव बड़ी गर्मजोशी से मिले और अपना परिचय दिया। परिचय का आदान प्रदान करने के बाद वे साथ साथ चलने लगे और बातें करते गए। रास्ते में 100 से अधिक लोगों ने श्री राव का अभिवादन किया। श्री राव सबसे उसी गर्मजोशी से मिलते। श्री राव उन्हें लेकर एक समूह के बीच पहुंचे जिसमें हर उम्र, स्तर के लोग थे। सभी श्री राव के अजीज मालूम पड़ते थे। आज लगभग तीन दशक बाद भी श्री राव एवं उनके परिवार के साथ उनके गहरे ताल्लुकात हैं। श्री राव ने अपने व्यवहार से उन्हें अपना बना लिया था।
एक अन्य प्रसंग का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि एक बार एक वृद्ध उनसे मिलने के लिए बंगले पर पहुंचा पर उन्हें पहचान नहीं पाया। उन्होंने उनसे आधे घंटे बाद दफ्तर में आने के लिए कह दिया। उन दिनों वे एसडीएम थे। वे जल्दी जल्दी दफ्तर पहुंचे पर वह वृद्ध लौट कर नहीं आया। इस बात का उन्हें आज तक मलाल है कि उन्होंने उसी वक्त अपना परिचय देकर उनकी फरियाद क्यों नहीं सुनी। उन्होंने बताया कि जब भी कोई व्यक्ति आपकी मदद मांगने आए तो उसे तवज्जो दें और संभव हो तो उसकी मदद करें। आपको आंतरिक खुशी मिलेगी।
महिलाओं की सुरक्षा का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि स्कूल कालेज के दिनों में उन्होंने भी लड़कियां छेड़ी हैं पर उसमें अभद्रता या अश्लीलता नहीं होती थी। कालेज में वे सभी छात्राओं को दीदी कहकर संबोधित करते थे। पर जब उन्हें पता चलता था कि वे होस्टल में सबके सीनियर हैं तो उनका स्नेह दोबाला हो जाता था। छात्राओं से भी उनके संबंध इतने सरल और सहज थे कि वे बस में भी अपने साथ बैठा लेती थीं। आज युवतियां सशंकित हैं तो इसके लिए समाज में तेजी से आया बदलाव है। रिश्तों की सहजता जाती रही है।
रिश्तों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि कहां तो हम वसुधैव कुटुम्बकम की बातें करते थे और कहां आज परिवार के पांच लोगों में भी आपस में संवाद नहीं है। पांच लोग एक कमरे में बैठे होते हैं और अपने अपने स्मार्ट फोन में व्यस्त होते हैं। संवादहीनता गलतफहमियों को पुष्ट करता है और रिश्तों में दरार आ जाती है। जब हम पाकिस्तान, कश्मीर यहां तक कि नक्सली समस्या का हल संवाद में ढूंढते हैं तो परिवार की समस्याएं तो इससे हल हो ही सकती हैं। उन्होंने उपस्थित समुदाय से प्रत्येक स्तर पर संवाद बनाए रखने की अपील की।
खुश रहो…. ठहाके लगाओ
उन्होंने कहा कि उन्होंने अपने प्रत्येक काम के लिये समय निर्धारित कर रखा है। ऐसा बचपन से ही है। स्कूल कालेज के दिनों में भी लोगों को लगता था कि वे पढ़ते कब हैं। दरअसल उन्होंने सुबह उठने के बाद के तीन घंटे अपने लिए सुरक्षित कर रखा था। इसमें से डेढ़ घंटा वे अपने स्वास्थ्य को देते हैं जिसमें प्रात: भ्रमण और योग शामिल है। इसके बाद के डेढ़ घंटों में वे एकांत जगह में पूर्ण मनोयोग से पढ़ाई किया करते थे। आवश्यक कार्य पूर्ण होने के बाद वे फ्री माइंड होकर घूमते फिरते और बतियाते थे। इसलिए कभी मार्क्स कम नहीं हुए और टेंशन भी नहीं हुआ। आज भी जब वे दोहरी जिम्मेदारियों से युक्त हैं, उनका कोई काम पेंडिंग नहीं रहता।
गुरू की खुशी देख बाग-बाग हो गए
उन्होंने बताया कि धमतरी में बीएससी की पढ़ाई अधूरी छोड़कर वे कांकेर चले गए और वहां बीकाम में प्रवेश ले लिया। सेकंड ईयर में ही उन्हें प्रवक्ता बना दिया गया। वे काफी बातूनी थे और ऊंची आवाज में बातें करते थे। इसपर प्राचार्य ने उन्हें चेतावनी भी दी थी। वर्षों बाद जब भोपाल स्टेशन पर एकाएक प्राचार्य से उनकी मुलाकात हुई तो उन्होंने पांव छूकर उनका आशीर्वाद लिया। वे उन्हें तुरंत पहचान गए। जब उन्हें पता चला कि वे आईएएस की ट्रेनिंग के लिए भोपाल में हैं तो उनका चेहरा प्रसन्नता से खिल उठा। गुरू के चेहरे पर वह प्रसन्नता देखकर उनका मन बाग-बाग हो गया। गुरुजी ने इसके बाद अपने परिवार के लोगों से भी उनका परिचय कराया।
अंत में बच्चों के सवालों का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि अपने कार्यों को क्रम दें और उनके लिए समय निर्धारित करें। अपने स्वास्थ्य को समय देना न भूलें। विद्यार्थी के रूप में स्वास्थ्य और अध्ययन ही सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। साथ ही कुछ ऐसा भी करें जिसमें आपको संतुष्टि मिलती हो। शरीर स्वस्थ रहेगा, काम पेंडिंग नहीं रहेगा, मार्क्स अच्छे आएंगे तो चेहरे पर मुस्कुराहट भी सदा बनी रहेगी।

Leave a Reply