भिलाई। परिवर्तन जीवन का शाश्वत सत्य है। इस दुनिया में कुछ भी स्थाई नहीं है – जीवन भी नहीं। बचपन, किशोरावस्था, युवावस्था, अधेड़ावस्था, बुढ़ापा सबकुछ अपने समय पर आएगा। इसके साथ ही बदलती जाएगी समाज में आपकी स्थिति, बदल जाएंगे आपके अधिकार। इसे सहजता से स्वीकार करेंगे तो तनाव मुक्त आनंदमय जीवन व्यतीत कर सकेंगे। उक्त उद्गार वरिष्ठ पत्रकार दीपक रंजन दास ने ‘हेल्प अस सोसायटी’ द्वारा बुजुर्गों के लिए आयोजित स्वास्थ्य जांच शिविर में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि समूची सृष्टि परिवर्तन शील है। मौसम भी आते जाते रहते हैं। जब आप ग्रीष्म की गर्मी से त्राहि-त्राहि करने लगते हो तो वर्षाकाल की बारिश का इंतजार करते हैं। जब बारिश परेशान करती है तो उसके जाने और शरद ऋतु के आने की प्रार्थना करते हैं। कड़ाके की सर्दी पड़े तो ऋतु वसन्त का इंतजा करते हैं। ऋतुएं अपने समय पर आएंगी, जो है उसे स्वीकार करो, चिड़चिड़ाहट से मुक्ति मिल जाएगी।
उन्होंने कहा, बालपन में किशोरावस्था और किशोरावस्था में युवावस्था का बेसब्री से इंतजार रहता है। कब बड़े होंगे, कब अधिकार मिलेंगे। पर जब आयु ढलान पर होती है तो हम इस गति को उलट देना चाहते हैं जो संभव नहीं है। न तो आप किशोरावस्था को थाम सकते थे और न ही जवानी हमेशा रहने वाली है।
कभी आप बेटी, कभी मां, कभी सास, कभी दादी बन जाती हैं। इन सबकी अपनी अपनी भूमिका है। इसके साथ ही समय चक्र भी बदलेगी। समाज में भी बदलाव आएंगे। कभी संयुक्त परिवार थे। पांव छूने की परम्परा थी। आज एकल परिवार हैं, पांव छुएं भी तो किसके? छुट्टियों में कभी गांव जाते थे अब गोवा, मलेशिया जाते हैं। अफसोस किस बात का? जो जिस भूमिका में है उसे सहजता से स्वीकार करो। टेंशन का भूत भाग जाएगा।
जब घर में किसी की मृत्यु हो जाती तो एकाएक पूरे परिवार का चेहरा उतर जाता है। स्वास्थ्य बिगड़ जाता है। मृत्यु जितनी अनपेक्षित होती है, शोक भी उतना ही बड़ा होता है। इसी तरह घर में नए मेहमान के आने पर सबके चेहरे खिल जाते हैं। सभी उस नए मेहमान के लिए कुछ न कुछ करने का उद्यम करने लगते हैं। सुख और दु:ख का यही रहस्य है। दोनों ही स्थितियां स्वयं हमारे दिमाग की उपज हैं। जैसा हमारा दिमाग सोचता है, हम वैसे ही हो जाते हैं। शोक में मुरझा जाते हैं और खुशी में खिल उठते हैं।
मतलब साफ है कि खुशियों की चाभी आपके अपने दिमाग में है। सहज रहिए। परिवर्तन को स्वीकार कीजिए। जिससे आपको परेशानी हो रही है, उसकी जगह स्वयं को रखकर कल्पना कीजिए। समय भी कटेगा और तनाव से मुक्ति भी मिलेगी।
पढ़ना, लिखना, चित्रकारी और संगीत आपको हर उम्र में एक जैसा बनाए रखता है। यदि ऐसा कोई शौक न हो तो घर की जिम्मेदारियों से मुक्ति मिलते ही समाज सेवा या भगवत सेवा में जुट जाएं। ये दोनों ही कार्य एक दूसरे के पर्यायवाची हैं।