वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश दुबे को दिया गया वसुन्धरा सम्मान भिलाई। प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने भले ही इमरजेंसी लगाई थी पर उन्होंने मीडिया के संवाद कायम रखा था। मीडिया को किसी न किसी प्रकार के सेंसरशिप को तो बर्दाश्त करना ही पड़ता है। आपरेशन ब्लू स्टार से उन्होंने भारत की अखण्डता की रक्षा की थी जिसकी कीमत उन्होंने शहादत देकर चुकाई। उक्त उद्गार वरिष्ठ पत्रकार रमेश नैय्यर ने भिलाई निवास के सभागार में कीर्तिशेष देवी प्रसाद चौबे की स्मृति में आयोजित वसुन्धरा सम्मान समारोह के दौरान व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि जब से भारत ने पाकिस्तान के दो टुकड़े किए हैं, पाकिस्तान भारत के टुकड़े करने के मंसूबे पाले हुए है। पंजाब में ड्रग्स के जरिए घुसपैठ कर आतंकवादियों ने खुद को बहुत मजबूत कर लिया था और स्वर्णमंदिर में शरण ले रखी थी। किसी भी समय वे ऐक्शन में आते और मुश्किलें खड़ी करते। इंदिराजी ने सख्ती से काम लिया और पंजाब को बचा लिया।
इमरजेंसी के दौर को याद करते हुए उन्होंने कहा कि उन दिनों वे पंजाब में ट्रिब्यून अखबार का काम देख रहे थे। एक सम्पादकीय पर एक सरकारी अधिकारी को आपत्ति हो गई। इस पर मालिक ने सीधे पीएमओ से बात की और वह संपादकीय छपी। उन हालातों में ऐसे संवाद की कल्पना केवल उनके कार्यकाल में ही संभव हो सकती थी।
मीडिया, सत्ता और समाज पर व्याख्यान देते हुए वरिष्ठ पत्रकार सुनील कुमार ने कहा कि अखबार अब करोड़ों का व्यवसाय बन चुका है जिसे अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए कई प्रकार के समझौते करने पड़ते हैं। उसकी लेखनी पर इसका असर पड़ता है। यही कारण है कि 20-22 का अखबार 2-3 रुपए में आपको मिल पाता है। अगर 20 के प्रॉडक्ट पर 17 रुपए की सब्सिडी होगी तो आप उससे सवाल नहीं कर सकोगे। पर कुछ छोटे-छोटे कम खर्च के अखबार हैं जो आज भी पूरी तरह स्वतंत्र हैं। वो बिना डरे लिख सकते हैं।
इस अवसर पर प्रतिष्ठित लेखक, पत्रकार एवं संपादक प्रकाश दुबे को 18वां वसुन्धरा सम्मान प्रदान किया गया। एडिटर्स गिल्ड के महासचिव रहे प्रकाश दुबे अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव कवर कर चुके हैं। नक्सलवादी नेता कानू सान्याल का इंटरव्यू कर सुर्खियों में आए प्रकाश दुबे लादेन के गायब होने की खबर सबसे पहले छाप कर अपनी धाक जमाई। उन्हें दिए गए प्रशस्ति पत्र का वाचन साहित्याकर शरद कोकास ने किया।
अपने उद्बोधन में प्रकाश दुबे ने पत्रकारिता के संघर्षों का जिक्र करते हुए कहा कि पत्रकार के पास हमेशा कुछ न कुछ करने की गुंजाइश रहती है। उन्होंने बताया कि एक जागरूक पत्रकार भविष्य में आने वाले संकट को भांप सकता है। कभी संतरे लिए विख्यात रहा विदर्भ आज किसानों की आत्महत्या के लिए कुख्यात है। उन्होंने इस तरफ कई वर्ष पहले ही सत्ता का ध्यान आकर्षित किया था। उन्होंने बस्तर में पत्रकारों को प्रताड़ित किये जाने की खबर सुनी तो एडिटर्स गिल्ड की टीम लेकर बस्तर पहुंचे। पुलिस और शासन ने जब बिना एक्रेडिटेशन के पत्रकार को पत्रकार मानने से इंकार कर दिया तो उन्होंने सीधे मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह से पूछा थ कि छोटे शहरों और कस्बों के पत्रकारों क्या सरकार अधिमान्यता देती है।
उन्होंने कहा कि यदि पत्रकार ईमानदार है तभी वह निर्भीक होकर देश को सर्वोपरि रखकर काम कर सकता है। उन्होंने कहा कि जब बस्तर में प्रबीर चन्द्र भंजदेव को गोलियों से भून दिया गया था तब भी उन्होंने निर्भीकता के साथ सच्चाई को सामने लाकर रखा था। उन्होंने पत्रकारों को समझाइश दी कि उन्हें किसी भी कीमत पर भ्रष्टाचार से समझौता नहीं करना चाहिए। वसुन्धरा सम्मान समारोह का आयोजन पिछले 18 वर्षों से संयोजक विनोद मिश्र, दिनेश वाजपेयी, अरुण श्रीवास्तव, नरेन्द्र बंछोर, सुमन कन्नौजे, मुमताज, तोरण लाल अटल, अरविन्द पाण्डेय, नेतराम साहू, अशोक त्रिपाठी एवं महेन्द्र कुमार साहू द्वारा किया जा रहा है। इस अवसर पर स्व. देवी प्रसाद चौबे के दोनों पुत्र प्रदीप चौबे, रविन्द्र चौबे के अलावा वरिष्ठ साहित्यकार, विभिन्न महाविद्यालयों के प्राचार्य, संपादक, पत्रकार, समाजसेवी तथा गणमान्य लोग बड़ी संख्या में मौजूद थे।