दुर्ग। शासकीय विश्वनाथ यादव तामस्कर स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालर्य में प्रेमचंद जयंती का आयोजन किया गया। इस अवसर पर महाविद्यालय के प्राचार्य एवं संरक्षक डॉ. एस. के. राजपूत ने अपने उद्बोधन में कहा कि विद्यार्थियों को व्याख्यान माला का लाभ उठाना चाहिए। प्रेमचंद हिन्दी साहित्य के पुरोधा हैं। उनके समग्र लेखन में भारत के ग्रामीण जीवन का यथार्थ व्यक्त हुआ है। उनके पात्र हमारे आस-पास के जीते जागते लोग हैं। प्रेमचंद की कहानियों को विद्यार्थी पढ़ें तथा उसमें जो संदेश हैं उसे अपने जीवन में आत्मसात करें।चर्चा आगे बढ़ाते हुए शास. महाविद्यालय खरोरा के प्राचार्य डॉ. राजेश दुबे ने कहा – प्रेमचंद के साहित्य में भारतीय समाज का कोई हिस्सा नहीं छूटता है। हम प्रेमचंद को पढ़ते-सुनते हैं तो लगता है उनके समीप ही बैठे हैं तथा जनता के दुख-दर्द को महसूस कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि प्रेमचंद भविष्य दृष्टा थे, उन्होने अपने अनुभव से यह देख लिया था कि आजादी के बाद भारत के किसानों, मजदूरों तथा श्रमशील जनता की स्थिति कैसी होगी। सुप्रसिद्ध आलोचक डॉ. सियाराम शर्मा सहा. प्राध्यापक शास. महाविद्यालय, उतई ने कहा कि प्रेमचंद की महानता उनकी सहजता, सरलता में है। यह सहजता उनके साहित्य में भी दिखाई पड़ती है पर इस सहजता में जो जटिलता है वह सामान्य पाठक के समझ में नहीं आती है। प्रेमचंद को समझने के लिए देश, काल, परिस्थितियों तक बहुत गहरे धंसने की जरूरत है। प्रेमचंद के विचारों में कहीं ठहराव नहीं है जैसे -जैसे सामाजिक परिस्थितियाँ बदलती है क्रमश: उनका वैचारिक विकास होता है। डॉ. मृदुला शुक्ला ने प्रेमचंद की चर्चित कहानी बड़े घर की बेटी की विस्तार से चर्चा की। कार्यक्रम का शुभारंभ सरस्वती वंदना तथा अतिथियों के स्वागत के साथ हुआ। विभागाध्यक्ष डॉ. अभिनेष सुराना ने स्वागत उद्बोधन में प्रेमचंद जी के साहित्यिक अवदान का परिचय दिया। कार्यक्रम में विभाग के प्राध्यापक डॉ. शंकर निषाद, डॉ. बलजीत कौर, डॉ. जय प्रकाश साव, डॉ. सुचित्रा गुप्ता (अंग्रेजी विभाग) तथा बड़ी संख्या में स्नातक तथा स्नातकोत्तर कक्षाओं के विद्यार्थी उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन डॉ. कृष्णा चटर्जी ने तथा आभार ज्ञापन प्रो. थान सिंह वर्मा ने किया।