भिलाई। स्पर्श मल्टीस्पेशालिटी हॉस्पिटल के डायरेक्टर एवं निश्चेतना विशेषज्ञ डॉ संजय गोयल ने कहा कि कभी कभी मरीज का जीवन बचाने के लिए डॉक्टर व्यक्तिगत जोखिम तक उठा लेते हैं। रोगी और चिकित्सक के बीच के इस विश्वास के रिश्ते को बचाना जरूरी है। डॉ गोयल स्पर्श मल्टीस्पेशालिटी हॉस्पिटल में आयोजित जेसीआई वीक के हैप्पी हेल्थ क्लब को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि कहा कि इमरजेंसी के दौरान हमें कई ऐसे निर्णय लेने पड़ते हैं जो आखिरी साबित हो सकते हैं। हम तभी राहत की सांस ले पाते हैं जब मरीज ठीक होकर घर लौट जाता है।प्रसंगों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि भिलाई का ही एक युवक दुर्घटनाग्रस्त होकर अस्पताल पहुंचा। उसे गंभीर अंदरूनी चोटें पहुंची थीं और काफी समय व्यतीत हो चुका था। काफी खून बह चुका था। हमें खून की जरूरत थी पर उसके ग्रुप का खून कहीं उपलब्ध नहीं हो रहा था। सर्जरी तुरंत करनी थी। हमने आॅटो ट्रांसफ्यूजन के बारे में पढ़ रखा था जिसमें घायल के बह रहे खून को ही फिल्टर करके उसे दोबारा चढ़ाया जाता है। हमारे पास फिल्टर उपलब्ध नहीं थे। पर कोई चारा भी नहीं था। हमने खुद जेल जाने का खतरा उठाते हुए बिना फिल्टर के आॅटो ट्रांसफ्यूज करने का निर्णय किया। उसके पेट में जमा खून को ही सिरिंज के सहारे वापस उसके शरीर में पहुंचाते रहे। सर्जरी सफल रही और मरीज ठीक हो गया। तब जाकर हमारी जान में जान आई।
इसी तरह राजनांदगांव का एक मरीज यहां पहुंचा। उसे 8 गोलियां लगी थीं। कोई भी अस्पताल उसे लेने के लिए तैयार नहीं था। उसके साथ खतरनाक दिखने वाले लोगों का पूरा हुजूम था। हमें भी डर लगा पर हमने जान बचाने को प्राथमिकता दी। 8 घंटे की सर्जरी के बाद उसका जीवन बच गया। इसके बाद उस रसूखदार से ऐसा रिश्ता जुड़ा कि राजनांदगांव से गनशॉट इंजुरी की पेशेंट सीधे हमारे पास आते रहे। हम बिना किसी डर के उनका इलाज कर पाए।
एक अन्य प्रकरण का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि एक गर्भवती महिला का गर्भाशय फट गया था और आसपास के अंग भी जख्मी हो चुके थे। हमारे पास सिर्फ आधा घंटा समय था। मरीज को तत्काल रक्त की जरूरत थी और रक्त मिल नहीं रहा था। ऐसे समय में स्टाफ के सदस्यों ने स्वत:स्फूर्त होकर रक्तदान किया। रक्त की जांच में होने वाला खर्च भी स्वयं वहन किया और सर्जरी कर मरीज की जान बचा ली गई।
डॉ गोयल ने कहा कि मरीज के साथ अस्पताल आने वाले उत्तेजित लोग आम तौर पर माहौल खराब करते हैं। चिकित्सकों की टीम इलाज शुरू करने के बजाय इन्हें समझाने में ही कीमती वक्त गंवा देते हैं। इससे बचने के लिए ही कुछ अस्पताल ज्यादा भीड़ देखने पर मरीज को रिफर कर देते हैं। यह स्थिति मरीज के लिए घातक होती है। आदर्श स्थिति यही है कि कोई एक या दो जिम्मेदार व्यक्ति ही मरीज के साथ आएं और चिकित्सक से चर्चा करें। डॉक्टर को जल्द से जल्द इलाज शुरू करने दें ताकि रोगी की जान बचाई जा सके।