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शिक्षक आज भी उतना ही विश्वसनीय जितना चाणक्य के काल में था : पाण्डेय

Sep 10, 2018

MM Tripathy felicitated by Prem Prakash Pandeyभिलाई। उच्च एवं तकनीकी शिक्षा मंत्री प्रेम प्रकाश पाण्डेय का मानना है कि शिक्षक आज भी उतना ही विश्वसनीय है जितना वह चाणक्य के काल में था। उन्होंने कहा कि संसदीय लोकतंत्र में शिक्षक की जिम्मेदारी और भी बढ़ गई है। श्री पाण्डेय होटल अमित पार्क इंटरनेशनल में मां शारदा सामर्थ्य चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा आयोजित शिक्षक सम्मान समारोह को संबोधित कर रहे थे। मां शारदा सामर्थ्य चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा कृष्णा पब्लिक स्कूल के प्रमुख श्री एमएम त्रिपाठी एवं उनके परिवार के 36 शिक्षकों के सम्मान में इस समारोह का आयोजन किया गया था। Maa Sharda Samarthya Charitable Trustश्री पाण्डेय श्री त्रिपाठी द्वारा उछाले गए मुद्दे का अपने ढंग से जवाब दे रहे थे। उन्होंने बताया कि श्री त्रिपाठी उनके शिक्षक रहे हैं। तब भी वे कॉस थीटा और साइन थीटा के सवालों में उन्हें उलझाया करते थे और आज भी एक कठिन सवाल दे गए हैं। श्री त्रिपाठी ने कहा था ‘रहनुमाओं को ही मंजिल का पता नहीं, ऐसे में क्यों न रोए महफिले कारवां’
श्री पाण्डेय ने कहा कि संसदीय लोकतंत्र में कारवां ही अपना रहनुमा चुनता है। इसलिए उसका शिक्षित और समझदार होना जरूरी है। इसलिए यह जिम्मेदारी भी शिक्षक पर ही आती है कि वह स्वयं भी समझे और औरों को भी समझाए ताकि गलत रहनुमा न चुने जाएं।
श्री पाण्डेय ने पुराने दिनों को याद करते हुए कहा कि त्रिपाठी सर को हम सब दादा कहते थे। वे पैदल ही स्कूल आया करते थे। वे कठिन परिश्रमी थे और स्कूल में अध्यापन के बाद भी सात शिफ्टों में ट्यूशन पढ़ाया करते थे। यह उसी मेहनत का परिणाम है कि आज कृष्णा पब्लिक स्कूल एक विशाल बरगद की तरह है जिसकी छांव में सैकड़ों लोगों को रोजगार मिला हुआ है।
उन्होंने शिक्षकों से मूल्यांकन कार्य पूरी ईमानदारी से करने का आग्रह किया ताकि योग्य ही चुन कर सामने आएं। इसी कड़ी में उन्होंने बताया कि त्रिपाठी सर ने एक कहानी लिखी थी ‘जलियांवाला बाग’। इस कहानी पर उन्होंने साइंस कालेज के फायनल इयर में नाटक खेला था, जिसमें उन्हें प्रथम पुरस्कार मिला था। एक और प्रसंग को याद करते हुए उन्होंने कहा कि एक बार तात्कालिक भाषण प्रतियोगिता में उन्हें ‘गधा’ विषय दिया गया था। उन्होंने इस भाषण प्रतियोगिता में भी प्रथम पुरस्कार जीता था।
श्री पाण्डेय राजनीतिज्ञों और समर्थों पर कटाक्ष करने से भी नहीं चूके। उन्होंने कहा कि यह तो निश्चित है कि हम सभी को गिरना है, पर कौन कितना गिरेगा यह तय करना उसके अपने हाथों में होता है। उन्होंने कहा कि आज राजनीति की मजबूरी हो गई है कि हम जो करें खूब बता-बता कर करें। जो किया वह तो ठीक ही है, पर जो नहीं किया उसे भी चिल्ला चिल्ला कर बताना पड़ता है। अब राजा हरिश्चंद्र का जमाना नहीं रहा जब दान देते समय दानवीर की नजरें झुकी होती थीं।
श्री पाण्डेय ने कहा कि भारत में ज्ञान बांटने की चीज है। हमारी मान्यता है कि ज्ञान को जितना बांटोगे उतना बढ़ेगा और जितना सहेजोगे उतना घटेगा। हमारी इसी सोच का फायदा पश्चिम ने उठाया। गूगल, व्हाट्सअप, फेसबुक भी केवल हमारी बौद्धिक संपदा की चोरी कर रहे हैं और फिर उसे नए स्वरूप में हमें ही बेच रहे हैं। बौद्धिक संपदा अधिकार को लेकर हमें सचेत रहना होगा।
इससे पूर्व समारोह को संबोधित करते हुए वरिष्ठ शिक्षाविद श्री मदन मोहन त्रिपाठी ने कहा कि केवल डिग्री या सर्टिफिकेट बांटना ही शिक्षा नहीं है। आईन्सटीन, रामानुजम, आर्किमिडीज आदि का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि अकसर बेवकूफाना सवाल ही परिवर्तन लाते हैं। सेब नीचे क्यों गिरता है, यह सवाल पूछकर ही न्यूटन गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत दे गए।
भारतीय ज्ञान में दूसरों की जिज्ञासा का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि उपनिषद मूल रूप से संस्कृत में थे जो लोगों से दूर थे। औरंगजेब के बड़े भाई दाराशिकोह ने इसका फारसी में अनुवाद किया जिसका बाद में अंग्रेजी और फिर हिन्दी में अनुवाद हुआ। उन्होंने कहा कि हमारे पास ज्ञान की कमी नहीं है, बस उसे जगाने वाले की जरूरत है। यह स्थिति ऐसी है कि दीया भी है, तेल से भीगी हुई बाती भी है, बस तीली दिखाने वाले की देर है। शिक्षक इसी भूमिका में होता है। प्रत्येक व्यक्ति के भीतर गुण भरे हैं, उन्हें बस उभारकर बाहर लाना होता है।
शिक्षक से समाज की अपेक्षाओं की चर्चा करते हुए श्री त्रिपाठी ने कहा कि लोग आज भी सच्चरित्रता, सदाशयता, निष्कपट शिक्षादान जैसी उम्मीदें केवल शिक्षकों से लगाए रहते हैं। जबकि शिक्षक भी इसी समाज से आता है। उसकी भी पारीवारिक जिम्मेदारियां होती हैं। उन्होंने कहा कि देश को गढ़ने के लिए शिक्षक, समाज और नेतृत्व तीनों को साथ मिलकर काम करना होगा, तभी अच्छे नतीजे आएंगे और देश का कल्याण संभव होगा।
आरंभ में केपीएस ग्रुप के निशांत त्रिपाठी ने कहा कि समूह की यह यात्रा श्री पाण्डेय के करकमलों से ही प्रारंभ हुई थी। 1993 में तत्कालीन स्कूली शिक्षा मंत्री के रूप में ही उन्होंने इसका भूमिपूजन किया था। आज एजुकेशन हब में हमारी भूमिका 20 फीसदी की है। ग्रुप के आशुतोष त्रिपाठी ने श्री पाण्डेय, श्री त्रिपाठी एवं डॉ संतोष राय को शिक्षा के तीन स्तंभ बताते हुए कहा कि डॉ संतोष राय पिछले 21 वर्षों से राज्य में कॉमर्स प्रतिभा को तलाश और तराश रहे हैं। यह कहा जा सकता है कि कॉमर्स के क्षेत्र में जितने भी टैलेंट खोजे गए, डॉ संतोष राय द्वारा ही तलाशे गए हैं।
राजा हरिश्चंद का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि तब दान करने वाले की नजर झुकी रहती थी। यह मान्यता थी कि देने वाला तो कोई और है, कहीं लोगों को ऐसा न लगे कि यह मैं दे रहा हूँ। ऐसा ही केपीएस के साथ भी है। यह सबकुछ कर कोई और रहा है, हम तो निमित्त मात्र हैं।
कार्यक्रम के सूत्रधार डॉ संतोष राय ने कहा कि यह एक संयोग है कि छत्तीसगढ़ के 36 हजार बच्चों को शिक्षित करने में त्रिपाठी परिवार के 36 सदस्य अपना योगदान कर रहे हैं। कहा जाता है कि यदि एक जेल बंद करवाना हो तो एक स्कूल खोल दो। इस परिवार ने 32 स्कूलों का जाल बिछा कर दिखा दिया है कि संकल्प में बड़ी शक्ति होती है। उन्होंने कहा कि श्री पाण्डेय जब मध्यप्रदेश में शिक्षा मंत्री थे तभी से स्कूलों और शिक्षा की हालत में सुधार के लिए निरंतर प्रयासरत हैं। आज उच्च शिक्षा मंत्री के रूप में भी उन्होंने दुर्ग में नवीन विश्वविद्यालय की स्थापना, भिलाई में आईआईटी समेत पूरे प्रदेश में कई कीर्तिमान गढ़े हैं।
इस अवसर पर श्री पाण्डेय के करकमलों से ग्रामीण विद्यार्थियों, शिक्षकों एवं समाज के निचले तबके से आने वाली महिलाओं को वस्त्र एवं रात्रि भोजन देकर सम्मानित किया गया। यह एक अनूठी परम्परा है जिसमें मुख्य अतिथि को भेंट की गई सामग्री का ही दान मुख्यमंत्री के करकमलों से करवा दिया जाता है।

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