भिलाई। छोटे बच्चे अकसर लिखना नहीं चाहते। एक-दो अक्षर ठीक से लिखने के बाद वे पेंसिल छोड़ देते हैं। ज्यादा जोर देने पर वह आड़ी तिरछी रेखाएं खींच देते हैं। इसमें परेशान होने की जरूरत नहीं है। ज्यादा देर तक पेंसिल पकड़ने पर वाकई दुखता है बच्चे का हाथ। 2-3 मिनट के बाद उसका मन उचटने लगता है। उसकी क्षमताओं को समझकर हम उसकी बेहतर मदद कर सकते हैं। उक्त बातें माइल स्टोन जूनियर में आयोजित शिशु शिक्षक कार्यशाला को संबोधित करते हुए चाइल्ड एजुकेशन एक्सपर्ट हर्षिता शर्मा ने कही। उन्होंने कहा कि 2.5-3 साल की उम्र के बच्चे की क्षमताओं को समझने की जरूरत है। इस उम्र के बच्चे ज्यादा देर तक किसी एक विषय पर अपना ध्यान केन्द्रित नहीं कर पाते। उनका कंसेन्ट्रेशन 2.5-3 मिनट में ही उचटने लगता है। उनका हाथ अभी पेंसिल पकड़ने के लिए तैयार नहीं है। इसलिए ज्यादा देर तक पेंसिल पकड़ने से उसमें दर्द होने लगता है। कुछ सरल तकनीकों द्वारा उसे इस तकलीफ से बचाया जा सकता है।
यूके और यूएस में प्रशिक्षित हर्षिता शर्मा छोटी उम्र के बच्चों को पढ़ाने की एक्सपर्ट हैं। वे 18 वर्षों से इस क्षेत्र में काम कर रही हैं। उन्होंने बताया कि बच्चे को पढ़ाने का सबसे सही तरीका यही है कि विषय में लगातार परिवर्तन कर उसे रुचिकर बनाए रखा जाए। इसके लिए प्रत्येक 2-3 मिनट में टास्क बदला जा सकता है। टास्क बदलने के लिए झंडी, ताली, आदि का उपयोग किया जा सकता है।
फोनिक्स पर आयोजित इस कार्यशाला को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि बच्चों को ध्वनि से परिचित कराना जरूरी है। इसके लिए मिलते जुलते सरल शब्दों की शृंखला बनाई जा सकती है। उन्होंने बच्चों को ज्यादा से ज्यादा शब्द सिखाने के टिप्स भी टीचर्स को दिए।
इस कार्यशाला का आयोजन माइल स्टोन्स की प्रमुख डॉ ममता शुक्ला के निर्देशन में शहर तथा आसपास के क्षेत्रों के प्री प्रायमरी एवं प्रायमरी एजुकेशन से जुड़े टीचर्स के लिए किया गया था। विभिन्न स्कूलों के 104 शिक्षकों ने इसमें अपनी भागीदारी दी। चाइल्ड एजुकेशन के क्षेत्र में काम कर रहीं अदिति देशमुख ने बताया कि इस कार्यशाला से बच्चों की क्षमताओं को बेहतर ढंग से समझा जा सकेगा। यह न केवल टीचर्स के लिए वरना उनके माध्यम से पैरेन्ट्स के लिए भी मददगार साबित होगा।