स्मृति शेष विजय शंकर चौबे ७५ वीं जयंती पर आयोजित व्याख्यान
भिलाई। भारत के पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त ओम प्रकाश रावत ने कहा कि जिला एवं पुलिस प्रशासन के बेहतर समन्वय से जिले की कठिन से कठिन समस्या पर प्रभावी नियंत्रण संभव है। उन्होंने इंदौर में अपने जिलाधीश के कायर्काल का उल्लेख करते हुए बताया कि तत्कालीन पुलिस अधीक्षक विजय शंकर चौबे और उनके मध्य एक बेहतरीन समन्वय था। इंदौर में उच्च स्तरीय दबाव के बावजूद एक महिला के संविधान प्रदत्त अधिकार की रक्षा के लिए दोनों अधिकारी अडिग रहे। अंतत: शासन को जिलाधीश एवं पुलिस अधीक्षक के दृष्टिकोण से सहमत होना पड़ा। श्री रावत बीआईटी सभागार में आयोजित छत्तीसगढ़ के लोकप्रिय पुलिस अधिकारी एवं सेवानिवृत अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक स्मृति शेष विजय शंकर चौबे की 75 वीं जयंती पर बोल रहे थे। ह्यजिले के विकास में प्रशासन एवं पुलिस की भूमिका – कल आज और कलह्ण पर आयोजित इस व्याख्यान में विशिष्ट वक्ता के रूप में छत्तीसगढ़ के प्रमुख लोकायुक्त न्यायमूर्ती टी पी शर्मा एवं सरदार वल्लभ भाई पटेल राष्ट्रीय पुलिस अकादमी, हैदराबाद के पूर्व निदेशक राजीव माथुर थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता अविभाजित मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव शरद चन्द्र बेहार ने की।
कार्यक्रम के प्रारंभ में आयोजकीय व्यक्तव्य देते हुए नरेंद्र शुक्ल, आईएएस प्रबंध संचालक छत्तीसगढ़ वेयर हाउसिंग कारपोरेशन ने विषय पर प्रकाश डाला। उन्होंने दुर्ग जिले के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक विजय शंकर चौबे एवं समकालीन जिलाधीशों के साथ बेहतरीन समन्वय से जिले में हुए उल्लेखनीय कार्यों पर विस्तार से प्रकाश डाला।
विशिष्ट वक्ता सरदार वल्लभ भाई पटेल राष्ट्रीय पुलिस अकादमी, हैदराबाद के पूर्व निदेशक राजीव माथुर ने कहा कि पुलिस शासन की व्यवस्था का महत्वपूर्ण अंग है और उसकी उपस्थिती के बगैर शासन की परिकल्पना बेमानी है। उन्होंने भारतीय पुलिस के समक्ष उपस्थित दिक्कतों एवं आने वाली चुनौतियों का उल्लेख करते हुए कहा की पुलिस को हर उन समस्याओं पर आगे रहना पड़ता है जिसमे उसकी कोई भूमिका नहीं होती मसलन छात्र आन्दोलन, मजदूर आन्दोलन, अतिक्रमण हटाना इत्यादी। उन्होंने पुलिस को समाज एवं जनता से जुड़कर कार्य करने की सलाह दी एवं नक्सल मोर्चे पर पुलिस द्वारा किये जा रहे सामाजिक बेहतरी के कार्यों का ब्योरा दिया। श्री माथुर ने पुलिस को और अधिक स्वायतता प्रदान करने की वकालत की और राजनैतिक नेत्तृत्व के सिर्फ न्याय संगत आदेशों के पालन की सलाह दी।
श्री रावत ने आगे कहा कि वनांचलों में आदिवासियों के अधिकारों के क़ानून की प्रभावशीलता के बाद भी वे शोषण व मानव अधिकारों के हनन के शिकार हैं। प्रशासनिक अधिकारियों को सूझ-बूझ और विवेक का परिचय देते हुए वांचितों को विकास के विविध विकल्प उपलब्ध करना चाहिए।
न्यायमूर्ति टी पी शर्मा ने विकास में न्यायपालिका के योगदान की चर्चा करते हुये कहा कि अधिकारियों को आपसी सामंजस्य से जिले की परिस्थितियों के अनुरूप अपने विवेक व बुद्धिमता से विकास के मार्ग को प्रशस्त करना चाहिए।
अध्यक्षता सम्बोधन में शरद चन्द्र बेहार ने कहा कि सत्ता व कारपोरेट की जुगलबंदी से विकास का ऐसा मॉडल बना है कि बढ़ी हुई सम्पत्ति का अधिकांश हिस्सा पाँच प्रतिशत लोगों को मिलता है और शेष अपनी परिस्थितियों से जूझते रहते हैं। उन्होंने इस ग्लोबल प्रवृत्ति के विपरीत जाकर ग़रीब और दूरस्थ क्षेत्रों के लोगों की जीवन स्थितियों को बेहतर बनाने के विकास के मॉडल को जिले के भीतर अपनाए जाने का आह्वान किया।
कार्यक्रम में जिÞला व सत्र न्यायाधीश गोविन्द मिश्रा, पूर्व मुख्य सचिव- सुयोग्य मिश्रा, कमिश्नर-दिलीप वासनिकार, पूर्व कमिश्नर – ब्रजेश मिश्रा, एस पी तिवारी; बीबी एस ठाकुर, पीएन तिवारी पुलिस अधीक्षक संजीव शुक्ला, हिन्दुस्तान कापर लिमिटेड के अध्यक्ष कैलाश दीवान पूर्व सचिव- चन्द्रहास बेहार, वरिष्ठ पत्रकार रमेश नैयर, पूर्व स्वास्थ संचालक डॉ आर एस सिद्दीक़ी, डॉ एच एन दुबे, परदेशीराम वर्मा, डॉ बी पी मुखर्जी, प्रो सुरेश शर्मा, आर पी शर्मा, सुरेश दीक्षित, शरद कोक़ास, सीएसपी एसएसशर्मा सहित अधिकारी एवं गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।
धन्यवाद ज्ञापन पुनीत चौबे ने किया। शिक्षाविद डॉ डी एन शर्मा के व्याख्यान का संचालन किया।