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अधिकांश लोगों को नहीं होती मानसिक व्याधियों की पहचान : डॉ गुप्ता

Feb 6, 2019
Dr Pramod Gupta Psychiatrist

देवादा। पिछले दो दशक से भी अधिक समय से मनोरोगियों के प्रति जागरूकता एवं उनके पुनर्वास की दिशा में काम कर रहे प्रसिद्ध मनोरोग चिकित्सक डॉ प्रमोद गुप्ता का मानना है कि आज भी लोगों में मानसिक व्याधियों को लेकर स्पष्ट धारणा नहीं है। समाज आज भी मनोरोग चिकित्सकों को पागल डाक्टर कहते हैं। पागल कहलाने के डर से लोग अपनी समस्याओं को लेकर मनोरोग चिकित्सालयों में आने से कतराते हैं।1998 में दुर्ग में 20 बिस्तर अस्पताल से अपनी पहली क्लिनिक खोलने वाले डॉ गुप्ता बताते हैं कि लोगों को मनोरोगों के प्रति जागरूक करने के लिए उन्होंने गांव-गांव तक व्यापक जागरूकता अभियान चलाए। चिड़चिड़ापन, अवसाद, उत्कंठा, दोहरा व्यक्तित्व, भीति, यहां तक कि भोजन विकृति और नशे की प्रवृत्ति भी मनोरोगों की तरफ इशारा कर सकते हैं। पर समाज तभी चेतता है जब रोगी आक्रामक होकर स्वयं को या दूसरों को क्षति पहुंचाने की कोशिश करता है।
डॉ गुप्ता ने 2007 में देवादा, राजनांदगांव में सेंट्रल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेन्टल हेल्थ एण्ड न्यूरोसाइंसेस की स्थापना की। कुल सौ बिस्तरों के इस अस्पताल में विभिन्न विभागों के लिए अलग-अलग व्यवस्था की गई है। अस्पताल के केन्द्र में एक विशाल हरा-भरा मैदान है जिसके बीच में शिवजी, गणेशजी, आदि की प्रतिमाएं रखी हुईं हैं। इसके चारों तरफ खूबसूरत खुशगवार रंगों से सजे अलग-अलग भवनों में अलग-अलग गतिविधियों का संचालन किया जाता है। यहां एक नशामुक्ति केन्द्र भी है जहां लोग स्वेच्छा से यहां परिवार की प्रेरणा से भर्ती होते हैं।
डॉ गुप्ता ने बताया कि उपेक्षा और अवहेलना से मनोरोग उग्र हो जाते हैं और रोगी में विकृतियां भी घर करने लगती हैं। इसे रोका जा सकता है। यदि हम परिवार के प्रत्येक सदस्य पर नजर रखें तो उनके व्यवहार में आ रहे परिवर्तनों को पढ़ सकते हैं। यह परिवर्तन भोजन और शयन से भी जुड़े हो सकते हैं। बच्चा गुमसुम रहता है, पढऩे में मन नहीं लगता, स्कूल में रुचि खत्म हो गई है जैसे लक्षण प्रकट होने पर तत्काल मनोरोग विशेषज्ञ से सलाह लें। लोग क्या कहेंगे, इसकी चिंता किए बिना सही समय पर उठाया गया आपका कदम एक कीमती जीवन को बचा सकता है।
डॉ गुप्ता ने कहा कि हमारा जीवन पहले की तुलना में काफी जटिल और क्लिष्ट हो गया है। प्रत्येक व्यक्ति के मन में कई प्रकार के भाव चल रहे होते हैं। इनमें से कुछ उसे तनाव भी दे सकते हैं। तनाव का प्रबंधन भी मनोरोग विशेषज्ञ के सहयोग से किया जा सकता है। तनावग्रस्त लोगों को हम रोगी कहें या न कहें उन्हें बाह्य मदद की जरूरत से इंकार नहीं किया जा सकता।

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