भिलाई। अहिवारा विधानसभा अंतर्गत ग्राम नारधा स्थित श्री रुख्खड़ नाथ धाम अनेक चमत्कारी घटनाओं का साक्षी रहा है। जूना अखाड़ा काशी से आए शिवभक्तों ने लगभग 200 साल पहले यहां धूनी रमाई। इनकी सातवीं पीढ़ी आज भी यहां सेवा कर रही है। यहां गोबर से निर्मित पश्चिम मुखी हनुमान गांव के साथ ही यहां आने वाले सभी भक्तों की रक्षा करते हैं। महाशिवरात्रि पर यहां मेला भरा। एमजे कालेज भिलाई के प्राचार्य डॉ कुबेर सिंह गुरुपंच के नेतृत्व में एमजे ग्रुप आॅफ एजुकेशन का दल यहां पहुंचा। इसमें स्वाति गुलाटी के अलावा दीपक रंजन दास भी सम्मिलित थे। गांव की ऊबड़ खाबड़ गलियों से गुजरकर दल रुख्खड़नाथ धाम पहुंचा। इन गलियों में निकासी नालियों गलियों के बीच से होकर बहती हैं।
रुख्खड़नाथ धाम पहुंचकर एक पीपल के नीचे पार्किंग की। इसके आगे कतारों में चाट के ठेले लगे थे। साथ ही एक तरफ ग्रामीण मंडई मेला भरा था जहां चूड़ी, टिकली, बिंदिया, करधन, बच्चों के प्लास्टिक और काठ के खिलौने बिक रहे थे। दोपहर होने के बावजूद काफी संख्या में भक्त यहां दिखाई दे रहे थे। यहां के मंदिरों में भस्म ही प्रसाद है जिसे लोग माथे पर या ग्रीवा पर भी लगाते हैं।
यहां कई मंदिर बने हैं। पहला मंदिर दाहिने हाथ पर बजरंगबली का है। पंडित सुरेन्द्र गिरी ने बताया कि बजरंग बली की यह प्रतिमा गोबर से बनी है और लगभग 200 साल पुरानी है। प्रतिमा मिट्टी की दीवार पर उकेरी गई है। 7-8 साल पहले ठेकेदार ने यहां मंदिर बनवा दिया।
मंदिर निर्माण को लेकर भी एक लोकप्रिय किस्सा जुड़ा है। बजरंगबली के मंदिर के सामने एक मठ है। यह जूना अखाड़े से आए बाबाओं में से एक का है। ठेकेदार इसे हटाकर मंदिर को बड़ा करना चाहता था। जैसे ही खुदाई शुरू हुई एक विशाल आकार का नरकंकाल दृष्टिगोचर हुआ। काम रोक दिया गया।
पं. सुरेन्द्र गिरी ने बताया कि रात को ठेकेदार के सपने में बाबा आए। उन्होंने ठेकेदार को मठ न हटाने की चेतावनी दी। इसके बाद ठेकेदार अचेत हो गए। सुबह उठे तो वे निर्वस्त्र पड़े थे। जब वे चादर लपेट कर बाहर आए तो अपने वस्त्रों को परछी में पड़ा पाया। ठेकेदार ने इसके बाद निर्देशों का पालन किया और मंदिर को छोटा रखते हुए मठ को भी यथास्थान बनाए रखा। यह मठ मंदिर के चबूतरे से सटा हुआ दिखाई देता है।
इसके सामने एक विशाल शिवलिंग का निर्माण हाल के वर्षों में किया गया है। महाशिवरात्रि के अवसर पर यहां शिव लिंग का दूध और जल से अभिषेक किया जा रहा था। बजरंगबली के मंदिर के ठीक सामने प्राचीन शिव मंदिर है। यहां पाषाण की प्रतिमा है। मंदिर परिसर में बाबा के पालतू श्वानों की भी समाधि है। एक तरफ एक अन्य मंदिर में शतायु नगाड़ा के अवशेष सुरक्षित हैं। यह नगाड़ा प्रारंभ से ही यहां मंदिर में रखा हुआ था।
पं. सुरेन्द्र गिरी महाराज ने बताया कि यहां एक विशाल चूल्हा और उससे लगा हुआ एक कुण्ड है। कुण्ड का पानी कभी नहीं सूखता। यह लगभग एक बांस (20 फीट) गहरा है। मंदिर का सम्पूर्ण परिसर एक खंदक से घिरा था। इसका एक हिस्सा अब तक सुरक्षित है। मंदिर में दोनों नवरात्रि के अलावा दशहरा एवं महाशिवरात्रि का उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है जब रायपुर, दुर्ग सहित दूर दूर से भक्त आते हैं।
रायपुर से आए विनायक जॉब कन्सल्टेंट्स के रितेश अग्रवाल ने बताया कि रुख्खड़नाथ बोलबम सेवा समिति इसे धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का प्रयास कर रही है। इसके लिए शासन प्रशासन से भी मदद की अपील की जा रही है ताकि लोग बिना किसी बाधा के यहां तक पहुंच सकें और शिवबाबा के आशीर्वाद का लाभ ले सकें।