भिलाई। वह आम बच्चों जैसा नहीं है। उसकी अपनी दुनिया है। उसे हमारी वाली गणित नहीं समझती पर वह चुटकियों में दिए गए किसी भी तारीख का दिन बता सकता है। जब कभी फुर्सत में होता है तो चित्रकारी करता है। उसके चित्रों में अभिव्यक्त होती है उसकी नजरों की बारीकी। जी फाउंडेशन द्वारा अय्यप्पा मंदिर में आयोजित खास बच्चों की चित्रकारी प्रतियोगिता में उसे प्रथम पुरस्कार मिला। जी हां! हम बात कर रहे हैं जूही बैडमिंटन ऐकेडमी के संचालक जयंत देवांगन के 18 वर्षीय पुत्र रुपम देवांगन की। डाक्टरी जुबान में वह आॅटिस्टिक है। उसके पिता जयंत और दीदी जूही अंतरराष्ट्रीय स्तर के बैडमिन्टन खिलाड़ी हैं। जयंत आने वाले अगस्त महीने में वेटेरन टीम के साथ पोलैंड जाने वाले हैं।जूही बताती है कि रूपम जब 5 साल का था तब हमें पहली बार उसके आॅटिस्टिक होने का पता चला। ‘तारे जमीं पर..’ से पहले आॅटिज्म को लेकर इतनी जागरूकता नहीं थी। उनके पेरेन्ट्स रूपम को लेकर देश के हर बड़े शहर में जाते और डाक्टरों को दिखाते। जब उसके आॅटिस्टिक होने का पता चला तो हमने उसके घर पर ही शिक्षा और प्रशिक्षण की व्यवस्था की।
जूही बताती हैं कि रूपम में कई विलक्षण गुण हैं जो यह बताते हैं कि वह एक आला दिमाग का मालिक है। दिक्कत सिर्फ यही है कि वह हमारे जैसा नहीं है। कभी कम्प्यूटर में कुछ गड़बड़ी होती है तो वह चुटकियों में उसे ठीक कर देता है। उसे भी बैडमिन्टन खेलना पसंद है और रोज अकादमी जाता है। बैडमिन्टन कोर्ट को वह गिगी कहता है।
रूपम फिलहाल एंजल गार्डन में जीवन के गुर सीख रहा है। वहां उसके जैसे और भी बच्चे हैं जिनके बीच वह कुछ कम्फर्टेबल रहता है। पर ये सभी बच्चे एक दूसरे से अलग हैं। सभी में कोई न कोई प्रतिभा है। जूही कहती है, ‘काश हम यह जान पाते कि उनके आला दिमाग में क्या चल रहा है।’