दुर्ग। शासकीय डॉ वावा पाटणकर कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय में नई शिक्षा नीति के प्रारूप पर चर्चा करने संवाद कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम की विशेषता इसमें छात्र प्रतिनिधियों की सहभागिता एवं उनके बेबाक विचार रहे। महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ सुशीलचन्द्र तिवारी ने कहा कि सामाजिक बदलाव एवं सामाजिक उपयोगिता के लिए पाठ्यक्रम को रूचिकर एवं सीखने की इच्छा जागृत करने वाला होना चाहिए।देश के समग्र विकास में विद्यार्थियों की भागीदारी सुनिश्चित होनी चाहिए। भाषायी और वैचारिक मतभेद की जगह शिक्षा की उपादेयता पर गंभीरता से विचार करना होगा तभी हम युवापीढ़ी को समाज के बदलाव के साथ जोड़कर विकासके मार्ग तय कर सकेंगे। संवाद कार्यक्रम की संयोजक डॉ ऋचा ठाकुर ने नई शिक्षा नीति पर पावर प्वाईंट प्रस्तुति देते हुए खास-खास बातों का जिक्र किया। उन्होंने बताया कि शिक्षा के अधिकार कानून के दायरे को व्यापक बनाना, राष्ट्रीय शिक्षा आयोग बनाना, बुनियादी साक्षरता, भाषा एवं गणित पर जोर। पुस्तकालय को जीवंत स्वरूप प्रदान करना।
लड़कियों के लिए सुव्यवस्था रेमेडियल शिक्षा पर प्रयास तथा तकनीकि के बेहतर प्रयोग के साथ नई शिक्षा नीति पर कार्य हुआ है। आईक्यूएसी की संयोजक डॉ
अमिता सहगल ने जानकारी दी कि 2030 तक सभी उच्च शिक्षण संस्थान में परिवर्तन होगा और वे बहुविषयक होंगे। उन्होंने कहा कि इस नई शिक्षा की नीति में स्वायतता को बढ़ावा दिया जावेगा। वाणिज्य के प्राध्यापक डॉ के0 एल0 राठी ने मिशन नालंदा एवं मिशन तक्षशिला की चर्चा करते हुए इसे महत्वपूर्ण कदम बताया। इससे अनुसंधान एवं शिक्षण में गुणवत्ता बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि महाविद्यालयीन शिक्षकों से भी गैर शैक्षणेत्तर कार्य नहीं कराया जाना चाहिए।
महाविद्यालय के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष कु रूचि शर्मा ने कहा कि लड़कियों की शिक्षा के लिए और अधिक प्रयास की आवश्यकता है। इस नीति में लड़कियों के लिए नवोदय जैसी व्यवस्था का प्रावधान है। राष्ट्रीय सेवा योजना का विस्तार कर ग्राम पंचायतों एवं नगरीय निकायों के पास राष्ट्रीय सेवा योजना की परियोजना हेतु बजट उपलब्ध कराया जाना चाहिए। छात्रसंघ अध्यक्ष कु तब्बसुम ने कहा कि नारी सशक्तिकरण में छात्राओं की अहम् भूमिका को देखते हुए छात्राओं के लिए उपयोगी रोजागारोन्मुखी डिप्लोमा एवं सर्टीफिकेट कोर्स सभी महाविद्यालयों में उपलब्ध होने चाहिए जिससे वे अपने पैरों पर पढ़ते-पढ़ते ही खड़ी हो सकने में सक्षम हों।
डॉ यशेश्वरी ध्रुव ने कहा कि उच्च शिक्षा को समावेशी बनाने के लिए लड़कियों के लिए अधिक फेलोशिप की तथा रोजगारोन्मुखी पाठ्यक्रमों की आवश्यकता है। छात्रवृत्ति की सहज सुविधा तथा प्राथमिक शिक्षा के साथ ही भाषा गणित पर विशेष फोकस किया जाना चाहिए। डॉ अम्बरीश त्रिपाठी ने महाविद्यालयों की स्वायतता एवं नवाचार को बढ़ावा देने के प्रयास किये जाने पर जोर दिया। डॉ रेश्मा लाकेश ने टीचर एक्सचेंज प्रोग्राम तथा महाविद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों में चयन प्रक्रिया पारदशिर्ता की आवश्यकता बतलाई। डॉ बबीता दुबे ने कौशल विकास के साथ पाठ्यक्रम में आवश्यक परिवर्तन पर जोर दिया। डॉ सीमा अग्रवाल ने परीक्षा प्रणाली में सुधार कर प्रतियोगी परीक्षाओं के अनुरूप पाठ्यक्रम तैयार करने की बात कही। डॉ डीसी अग्रवाल ने 12वीं के बाद स्नातक प्रथम वर्ष के परिणाम में गिरावट पर चिन्ता प्रकट करते हुए इस पर गंभीरता से विचार करने को कहा। डॉ मीरा गुप्ता ने देश में स्नातक और स्नातकोत्तर का एकीकृत पाठ्यक्रम की आवश्यकता बतलाई। ग्रंथपाल डॉ रीता शर्मा ने गं्रथालय के आॅटोमेशन पर जोर दिया। डॉ सुनीता गुप्ता ने शोध को बढ़ावा देने की नीति की प्रशंसा करते हुए रिसर्च सेंटर विकसित करने की आवश्यकता बतायी।
इस अवसर पर महाविद्यालय के प्राध्यापक एवं छात्राऐं बड़ी संख्या में उपस्थित थीं। अंत में डॉ ऋचा ठाकुर ने आभार प्रदर्शित किया।