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नष्ट हो रहा आमदी गांव का इतिहास, उपेक्षित है इकलौती बावड़ी

Jul 22, 2019
भिलाई। आमदी नाम भिलाई नगर वासियों के लिए नया नहीं है। 1960 के दशक में जब भिलाई इस्पात संयंत्र के पहले अस्पताल की नींव रखी गई तो उसे आमदी अस्पताल का ही नाम दिया गया। कालांतर में हुडको ने अस्पताल से लगकर कालोनी बसाई तो उसका नाम भी आमदी पर रखा गया। इसी आमदी की विरासत दुर्ग रेलवे स्टेशन के सामने एक अनाम पुराने अहाते में उपेक्षा का शिकार होकर नष्ट हो रहा है। यह जिले की एकमात्र बावड़ी है जिसे संभव 150 साल पहले बनाया गया था।

इनटैक की टीम ने किया विरासत का अवलोकन

भिलाई। आमदी नाम भिलाई नगर वासियों के लिए नया नहीं है। 1960 के दशक में जब भिलाई इस्पात संयंत्र के पहले अस्पताल की नींव रखी गई तो उसे आमदी अस्पताल का ही नाम दिया गया। कालांतर में हुडको ने अस्पताल से लगकर कालोनी बसाई तो उसका नाम भी आमदी पर रखा गया। इसी आमदी की विरासत दुर्ग रेलवे स्टेशन के सामने एक अनाम पुराने अहाते में उपेक्षा का शिकार होकर नष्ट हो रहा है। यह जिले की एकमात्र बावड़ी है जिसे संभवत: 150 साल पहले बनाया गया था।Aamdi-Baodi-03 Amdi-Mandir भिलाई। आमदी नाम भिलाई नगर वासियों के लिए नया नहीं है। 1960 के दशक में जब भिलाई इस्पात संयंत्र के पहले अस्पताल की नींव रखी गई तो उसे आमदी अस्पताल का ही नाम दिया गया। कालांतर में हुडको ने अस्पताल से लगकर कालोनी बसाई तो उसका नाम भी आमदी पर रखा गया। इसी आमदी की विरासत दुर्ग रेलवे स्टेशन के सामने एक अनाम पुराने अहाते में उपेक्षा का शिकार होकर नष्ट हो रहा है। यह जिले की एकमात्र बावड़ी है जिसे संभव 150 साल पहले बनाया गया था।इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज (इंटैक) के सदस्यों ने गत दिवस इसका अवलोकन किया। इंटैक की सालाना बैठक के बाद सदस्यों का एक समूह यहां पहुंचा। स्टेशन के ठीक सामने एक पुरानी सी इमारत का प्रवेश द्वार दिखता है। प्रवेश द्वार पर खड़े रथ की आड़ से एक पीले रंग के मंदिर की झलक दिखाई देती है।
परिसर में प्रवेश करने के बाद कच्ची पगडंडियां और बेतरतीब बसाहट दिखाई देती है। सामने मंदिर है जिसमें शिलालेख मिलता है। इसके अनुसार मंदिर का निर्माण 1939 में किया गया। शिलालेख पर अस्पष्ट लेखन है। इसमें गजरा बाई, दाऊ साहब, मालगुजार जैसे शब्द दिखाई देते हैं। यहां श्रीराम जानकी, जगन्नाथ, बजरंगबली आदि के मंदिर हैं जहां प्रतिदिन पूजा पाठ होता है। मंदिर प्रांगण लोहे की जाली से घिरा हुआ है।
बायीं तरफ से एक पगडंडी पीछे जंगल-झाड़ियों में चली जाती है। आगे बढ़ने पर पगडंडी की दायीं ओर कुछ पुरानी सीढ़ियां नीचे जाती हुई दिखाई देती हैं। नीचे पानी दिखाई देता है। थोड़ा और आगे जाने पर पेड़ों के झुरमुट में एक विशाल कुआं दिखाई पड़ता है। कुएं का पानी काला है। उसमें बुलबुले उठ रहे हैं। पेड़ की शाख से निकली जड़ें नीचे कुएं के भीतर तक झूल रही हैं।
यही है दुर्ग जिले की एकमात्र बावड़ी। यहां रहने वाली किशोर वय की प्रीति और अधेड़ आयु की ज्योति ने बताया कि जब से होश संभाला है इस स्थान को ऐसा ही पाया है। यहां से प्रतिवर्ष रथ यात्रा निकलती है। लोग आते जाते हैं। कोई कोई बावड़ी तक भी जाता है। साल के शेष दिनों में दुकानों की जमघट के बीच किसी को इस परिसर का प्रवेश द्वार भी शायद ही दिखाई देता हो। ट्रेन के डेली पैसेंजर यहां अपनी दुपहिया खड़ी करने आते हैं। पर स्थल के इतिहास या विरासत से उनका कोई लेना देना नहीं है।
Amdi-Baodi-02 भिलाई। आमदी नाम भिलाई नगर वासियों के लिए नया नहीं है। 1960 के दशक में जब भिलाई इस्पात संयंत्र के पहले अस्पताल की नींव रखी गई तो उसे आमदी अस्पताल का ही नाम दिया गया। कालांतर में हुडको ने अस्पताल से लगकर कालोनी बसाई तो उसका नाम भी आमदी पर रखा गया। इसी आमदी की विरासत दुर्ग रेलवे स्टेशन के सामने एक अनाम पुराने अहाते में उपेक्षा का शिकार होकर नष्ट हो रहा है। यह जिले की एकमात्र बावड़ी है जिसे संभव 150 साल पहले बनाया गया था।निर्मित, प्राकृतिक और सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के लिए पर्यावरण निर्माण में जुटी इनटैक ने इस परिसर को संरक्षित करने की दिशा में पहल करने का फैसला किया है। जल्द ही इसके दस्तावेजी साक्ष्य का संकलन कर संबंधित पक्षों से पत्राचार प्रारंभ किया जाएगा। विशेषकर दुर्ग के युवाओं को अपनी विरासत को पहचानने और उसकी रक्षा करने के लिए प्रेरित किया जाएगा।
इनटैक की सालाना बैठक में राज्य समन्वयक वरिष्ठ पत्रकार ललित सुरजन, जिले के संयोजक डॉ हरिनारायण दुबे, सह संयोजक विद्या गुप्ता, हेमचंद यादव विश्वविद्यालय के प्रथम कुलपति डॉ एनपी दीक्षित, वरिष्ठ शिक्षाविद डॉ देवेन्द्र नाथ शर्मा, रवि श्रीवास्तव, दीपक रंजन दास, रवीन्द्र खण्डेलवाल, तेजकरण जैन, बीएस मूर्ति, रूपेन्द्र कुमार साव, कान्ती भाई सोलंकी, अरूण कुमार गुप्त, आनंद कपूर ताम्रकार, बी पोलम्मा, भागवत प्रसाद देवांगन, नम्रता पोन्डे, स्मिता सक्सेना तथा विकास पंचाक्षरी उपस्थित थे।भिलाई। आमदी नाम भिलाई नगर वासियों के लिए नया नहीं है। 1960 के दशक में जब भिलाई इस्पात संयंत्र के पहले अस्पताल की नींव रखी गई तो उसे आमदी अस्पताल का ही नाम दिया गया। कालांतर में हुडको ने अस्पताल से लगकर कालोनी बसाई तो उसका नाम भी आमदी पर रखा गया। इसी आमदी की विरासत दुर्ग रेलवे स्टेशन के सामने एक अनाम पुराने अहाते में उपेक्षा का शिकार होकर नष्ट हो रहा है। यह जिले की एकमात्र बावड़ी है जिसे संभव 150 साल पहले बनाया गया था।

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