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सिकलिंग क्राइसिस, एक्लैम्पसिया, जॉन्डिस और दिल में छेद से पीड़ित महिला के पेट में ही मर गया था बच्चा, स्पर्श में बची जान

Jul 9, 2019

भिलाई। गर्भ में 9 माह का मृत भ्रूण लिए एक गंभीर रूप से बीमार महिला को स्पर्श मल्टीस्पेशालिटी हॉस्पिटल की टीम ने नया जीवन दिया है। अनेक रोगों से ग्रसित इस महिला को लेकर उसके परिजनों ने अनेक अस्पतालों का दरवाजा खटखटाया था पर मरीज की स्थिति को देखते हुए सभी ने उसे दाखिल करने से मना कर दिया था। छुईखदान, राजनांदगांव से इस मरीज को अंतत: स्पर्श लाया गया जहां अथक प्रयासों से उसका जीवन बचा लिया गया।भिलाई। गर्भ में 9 माह का मृत भ्रूण लिए एक गंभीर रूप से बीमार महिला को स्पर्श मल्टीस्पेशालिटी हॉस्पिटल की टीम ने नया जीवन दिया है। अनेक रोगों से ग्रसित इस महिला को लेकर उसके परिजनों ने अनेक अस्पतालों का दरवाजा खटखटाया था पर मरीज की स्थिति को देखते हुए सभी ने उसे दाखिल करने से मना कर दिया था। छुईखदान, राजनांदगांव से इस मरीज को अंतत: स्पर्श लाया गया जहां अथक प्रयासों से उसका जीवन बचा लिया गया। 21 वर्षीय कन्या बाई पटेल को सिकलिंग क्राइसिस, एक्लैम्पसिया, जॉन्डिस और दिल में छेद थी। सिकल सेल एनीमिया वाले मरीजों में जब हंसिया आकार की लाल रक्त-कोषिकाएं पतली धमनियों में रक्त का प्रवाह रोकती हैं तो उन अंगों में पीड़ा होती है जहां रक्त नहीं जा पाता। इस स्थिति को सिकलिंग क्राइसिस कहते हैं। मरीज को एएसडी (दिल के परदे में छेद) था। यह विकार जन्मजात होता है तथा कई मामलों में इसका पता नहीं चलता। मरीज का लिवर फेल हो गया था जिसके कारण पीलिया हो गया था। 9 माह के भ्रूण की गर्भ में ही मृत्यु हो चुकी थी। मरीज को रह-रहकर झटके आ रहे थे। मरीज का बीपी काफी बढ़ा हुआ था और उसे झटके आ रहे थे। मरीज की हालत गंभीर थी और किसी बड़े अस्पताल के लिए भी यह एक बेहद चुनौतीपूर्ण केस था।
कई अस्पतालों के चक्कर लगाने के बाद जब मरीज को स्पर्श मल्टीस्पेशालिटी अस्पताल लाया गया, तब उसकी हालत बेहद नाजुक हो चुकी थी। पर अस्पताल की अनुभवी टीम ने मरीज का जीवन बचाने की चुनौती को स्वीकार कर लिया। 40 हजार सर्जरी करवा चुके एनेस्थेटिस्ट डॉ संजय गोयल की अगुवाई में स्त्री एवं प्रसूती रोग विशेषज्ञ डॉ कीर्ति कौरा एवं डॉ नम्रता भुसारी की टीम ने यह जिम्मेदारी ली। मरीज को स्टेबिलाइज करने के बाद उसकी सर्जरी कर दी गई। मृत शिशु को निकालकर मरीज की जान बचाई गई। गहन चिकित्सा में 24 घंटे की निगरानी में मरीज का इलाज किया गया और अंतत: उसे स्वस्थ अवस्था में अस्पताल से छुट्टी दे दी गई।

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