दुर्ग। आत्महत्या सभ्य समाज पर एक अभिशाप की तरह है। अत्यधिक तनाव, अवसाद की स्थिति से गुजर रहे लोगों में इसकी संभावना अधिक होती है। यह एक मानसिक समस्या है। आत्महत्या के मामलों को महिमा मंडित करना, उसके कारणों और तरीकों की चर्चा करना अवसाद में जी रहे लोगों को उकसा सकता है। मीडिया को ऐसी खबरों के प्रकाशन को लेकर संवेनदशील होना चाहिए। उक्त बातें एनसीडी सेल द्वारा सेन्टर फॉर एडवोकेसी एंड रिसर्च सीएफएआर के सहयोग से होटल कैम्बियन में आयोजित मीडिया संवेदीकरण कार्यशाला में कही। सीएफएआर की राष्ट्रीय संयोजक आरती धर ने बताया कि एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार दुर्ग-भिलाई में आत्महत्या करने वालों का घनत्व सर्वाधिक है। छत्तीसगढ़ इस मामलें में राष्ट्रीय स्तर पर चौथा है। उन्होंने कहा कि यह एक मानसिक समस्या है जिसकी रोकथाम की जा सकती है। इसके लिए जरूरी है कि आप अपने आसपास के लोगों के व्यवहार पर नजर रखें तथा जरा सी भी शंका होने पर उन्होंने जिला अस्पताल के स्पर्श केन्द्र में ले जाएं या जाने की सलाह दें।
एनसीडी सेल के नोडल अधिकारी डॉ आरके खण्डेलवाल ने विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा आत्महत्या की रोकथाम के लिए मीडिया को जारी गाइडलाइंस की विस्तृत जानकारी दी। मनोवैज्ञानिक डॉ शमा हमदानी ने आत्महत्या के कारणों की समीक्षा करते हुए कहा उसकी रोकथाम के उपायों की चर्चा की।
कार्यशाला को वरिष्ठ पत्रकार भावना पाण्डेय, कमल शर्मा, अशोक पण्डा, जन्मेजय दास, डॉ आकांक्षा गुप्ता दानी सहित अन्य पत्रकारों ने संबोधित किया। उन्होंने अपने अनुभवों का जिक्र करते हुए कहा कि यह कार्यशाला उनके लिए बहुत उपयोगी रही है तथा वे आगे आत्महत्या की रिपोर्टिंग को लेकर संवेदनशीलता का परिचय देंगे।