श्री शंकराचार्य महाविद्यालय में बच्चों की सुरक्षा व जल संरक्षण पर व्याख्यान
भिलाई। ‘कहीं कोई बच्चा पीड़ित, परेशान दिखे तो खामोश न रहें। बाल श्रम भी इसी के दायरे में आता है और नशा भी। यदि व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से उसकी सहायता नहीं भी कर सकते तो कोई बात नहीं। 1098 पर चाइल्ड हेल्पलाइन को सूचना दें। बच्चे की देखभाल की व्यवस्था हो जाएगी।’ उक्त बातें बच्चों के हितों की रक्षा में जुटे चाइल्ड हेल्प लाइन के निदेशक सुरेश कापसे ने आज श्री शंकराचार्य महाविद्यालय में आयोजित व्याख्यानमाला में कहीं।उन्होंने कहा कि 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों की सुरक्षा के लिए कड़े कानून बने हैं। इन बच्चों से श्रम कराना, इनका स्कूल से बाहर होना, स्टेशनों या अन्य सार्वजनिक स्थानों पर मांग कर, छीन कर खाना, नशे की गिरफ्त में फंसा होना सभी अवांछित है। कहीं कहीं बच्चों के साथ ज्यादतियां भी हो रही होती हैं। यदि आपको ऐसे किसी भी बच्चे की जानकारी मिलती है तो आगे बढ़कर उसकी सहायता करें। यदि किसी कारणवश ऐसा करना संभव न हो तो 1098 पर चाइल्ड हेल्पलाइन को फोन कर दें।
उन्होंने बताया कि बच्चों को आश्रय या संप्रेक्षण गृह में रखा जाता है। परिस्थितिवश अपराध कर बैठे बच्चों के साथ नर्मी से पेश आया जाता है। उन्हें तीन वर्ष से अधिक की सजा नहीं दी जा सकती। यह अवधि वह पूर्ण सुविधा के बीच संप्रेक्षण गृह में काटता है जहां उसके भोजन, व्यायाम, खेलकूद, मनोरंजन एवं शिक्षा की पूरी व्यवस्था शासन की तरफ से की जाती है। हालांकि निर्भया काण्ड के बाद हुए विचार मंथन में अब जघन्य अपराधों में संलिप्त बच्चों के विचारण में संशोधन किया गया है। ऐसे अपराधी बच्चों को मानसिक रूप से बालिग मानते हुए उनके खिलाफ सेशन कोर्ट में मामला चलाया जा सकता है। उन्होंने चाइल्ड वेलफेयर कमिटी की भी सारगर्भित जानकारी दी।
इससे पूर्व बचपन बचाओ आंदोलन की राज्य समन्वयक एवं सीडब्ल्यूसी की पूर्व चेयरपर्सन डॉ सोमा नायर ने बाल अपराध, बालकों के शोषण एवं उत्पीड़न की रोकथाम के सरकारी प्रावधानों की चर्चा की। उन्होंने बचपन बचाओ आंदोलन और उसके प्रणेता नोबेल पुरस्कार प्राप्त कैलाश सत्यार्थी के बारे में बताया।
व्याख्यान माला के प्रथम भाग में बीएसपी के जल संरक्षण विशेषज्ञ डॉ आरपी देवांगन ने वर्षाजल को साफ पानी का एकमात्र स्रोत बताते हुए कहा कि यही पानी तालाबों, पोखरों, नदियों में बहता है। यही पानी जमीन के नीचे जाकर भूमिगत जल भण्डार बनाता है। इस पानी को बहकर समुद्र में नहीं जाने देना है। इसे संग्रहित करने के लिए अलग अलग स्तर पर रेन वाटर हार्वेस्टिंग किये जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि कुछ लोग रेन वाटर हार्वेस्टिंग के लिए बोरिंग को माध्यम बनाने की सलाह देते हैं पर यह गलत है। इससे बोरिंग का पानी दूषित हो सकता है। रेन वाटर हार्वेस्टिंग के लिए बोरिंग से दूर अलग से इंतजाम किये जाने चाहिए। इसके लिए नगर निगम तकनीकी सहायता उपलब्ध कराता है।
महाविद्यालय की निदेशक सह प्राचार्य डॉ रक्षा सिंह एवं अतिरिक्त निदेशक जे दुर्गा प्रसाद राव ने अतिथियों का पौधे भेंटकर स्वागत किया। कार्यक्रम का आयोजन महाविद्यालय के आईक्यूएसी सेल द्वारा किया गया था। कार्यक्रम में श्री शंकराचार्य महाविद्यालय के साथ ही एमजे कालेज के प्राध्यापकों एवं बच्चों ने भी बड़ी संख्या में हिस्सेदारी की।
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