रायपुर। ट्रैकियोब्रोंकियलमलसिया या टीबीएम उन बीमारियों में से एक है जिसके बारे में बहुत कम जागरूकता है। जब सांस की तकलीफ, खांसी और घरघराहट के अन्य इलाज विफल हो जाते हैं तब कहीं जाकर रोगी की इस स्थिति की ओर ध्यान जाता है। ऐसा श्वांस नली में सिकुड़न के कारण होता है। टीबीएम के क्षेत्र में शोध कर रहे डॉ सिधु पी गंगाधरन बताते हैं कि अब तक सर्जरी से ही इसका इलाज संभव हो पाया है।डॉ गंगाधरन यहां श्रीरामकृष्ण केयर हॉस्पिटल द्वारा होटल बेबीलोन में आयोजित अंतरराष्ट्रीय सेमीनार को संबोधित कर रहे थे। डॉ गंगाधरन बेथ इजरायल डीकनेस मेडिकल सेन्टर के इंटरवेंशनल पल्मोनोलॉजी एवं थोरासिक सर्जरी विभाग के अध्यक्ष हैं। उन्हें श्वांस मार्ग के अवरोधों के इलाज का विशेषज्ञ माना जाता है।
हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ गंगाधरन बताते हैं भारत जैसे विशाल आबादी वाले देश में इस स्थिति से जूझ रहे लोगों की संख्या करोड़ों में हो सकती है। पर जागरूकता और जानकारी के अभाव में इसका इलाज नहीं हो पाता। टीबीएम के प्रति जागरूकता लाना उनके जीवन का लक्ष्य है।
डॉ गंगाधरन बताते हैं कि टीबीएम को दो प्रकारों में बांटा जा सकता है। एक जो जन्मजात होता है और दूसरा जो बढ़ती उम्र के साथ प्रकट होता है। ऐसा श्वांस नली की दीवारों में शिथिलता के कारण होता है। दीवारें आपस में चिपकने लगती हैं और सांस छोड़ते समय तेज आवाज आती है। श्वांस की अपर्याप्तता के कारण शरीर में आक्सीजन की कमी के लक्षण उभर सकते हैं।
डॉ गंगाधरन बताते हैं कि टीबीएम के साथ अस्थमा या क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिसीस सीओपीडी जैसी कुछ अन्य बीमारियां भी जुड़ी हो सकती हैं। टीबीएम का पता लगाने के लिए सीटी स्कैन एवं ब्रोंकोस्कोपी का उपयोग किया जाता है।
अब तक उपलब्ध इलाज के तरीकों की चर्चा करते हुए डॉ गंगाधरन बताते हैं कि ट्रेकियल स्टेंट के द्वारा एयरवे को खोला जा सकता है। पर यह प्रोसीजर ज्यादा कारगर नहीं है। थ्रीडी प्रिंटेड श्वांसनली को वे केवल हाईप मानते हैं। इनकी उपयोगिता पर उन्हें भरोसा नहीं है। इसलिए सर्जरी ही एकमात्र विकल्प है।
ट्रेकियोब्रोंकोप्लास्टी द्वारा श्वांस नली की पिछली दीवार को मजबूत करने की कोशिश की जाती है। यह टीबीएम का एक अधिक स्थायी उपाय है। डॉ गंगाधरन बताते हैं कि इस दिशा में वे शोध कर रहे हैं और आने वाले वर्षों में इसका कोई किफायती और स्थायी विकल्प ढूंढने वे सफल हो जाएंगे।