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मातृभाषा आधारित बहुभाषी शिक्षा जरूरी क्यों?

Sep 13, 2019

भिलाई/संजय गुलाटी/ बच्चे जब स्कूल में आते हैं तब वे अपने जाने पहचाने संदर्भ में दैनिक जीवन में उपयोगी मूर्त वस्तु के बारे में अपनी मातृभाषा में बात कर पाते हैं। वे धारा प्रवाह बोल सकते हैं, बोली जाने वाली भाषा का उन्हें बुनियादी व्याकरण और बहुत से मूर्त शब्दों का ज्ञान भी होता है। वे अपनी सारी जरूरतें मातृभाषा में बता सकते हैं। इस प्रकार उनमें आपसी बातचीत का बुनियादी कौशल होता है। इस प्रकार का ज्ञान और कौशल कक्षा-1 के बच्चों के लिए पर्याप्त होता है, जहां शिक्षकों से यह उम्मीद की जाती है कि वे से उन सभी विषयों पर बातचीत करें जिसके बारे में बच्चों का अपना पूर्व अनुभव / ज्ञान होता है।भिलाई/संजय गुलाटी/ बच्चे जब स्कूल में आते हैं तब वे अपने जाने पहचाने संदर्भ में दैनिक जीवन में उपयोगी मूर्त वस्तु के बारे में अपनी मातृभाषा में बात कर पाते हैं। वे धारा प्रवाह बोल सकते हैं, बोली जाने वाली भाषा का उन्हें बुनियादी व्याकरण और बहुत से मूर्त शब्दों का ज्ञान भी होता है। वे अपनी सारी जरूरतें मातृभाषा में बता सकते हैं। इस प्रकार उनमें आपसी बातचीत का बुनियादी कौशल होता है। इस प्रकार का ज्ञान और कौशल कक्षा-1 के बच्चों के लिए पर्याप्त होता है, जहां शिक्षकों से यह उम्मीद की जाती है कि वे से उन सभी विषयों पर बातचीत करें जिसके बारे में बच्चों का अपना पूर्व अनुभव / ज्ञान होता है।बड़ी का में बच्चों को बौद्धिक और भाषिक रूप से अधिक अमूर्त अवधारणा को समझना होता है। उन्हें अपने परिवेश से दूर की बात को समझने और उन पर बात करने की आवश्यकता होती है जैसे भूगोल व इितहास की बातें। कई बार ऐसी बात को भी समझना होता है जिन्हें देखा नहीं जा सकता, जैसे गणित की अवधारणाएं या सच्चाई, इमानदारी, प्रजातंत्र जैसे शब्द का अर्थ आदि। उन्हें भाषा और अमूर्त तर्क के आधार पर बिना मूर्तवस्तु की मदद से समस्या सुलझाने की आवश्यकता होती है। इस प्रकार के संज्ञानात्मक-अकादमिक भाषायी-कुशलता की आवश्यकता कक्षा-3 से आगे होती है और यह कुशलता बच्चों में धीरे- धीरे ही विकसित होती है। इस बात की आवश्यकता है कि बच्चों में इस प्रकार की अमूर्त क्षमता उनके मातृभाषा आधारत ज्ञान के आधार पर ही विकसित हो। यदि मातृभाषा आधारित संज्ञानामक-अकादिमक भाषायी-कुशलता के विकास का अवसर बच्चों को स्कूल में आने के बाद न मिले तो उन्हें किसी भी भाषा में अमूर्त चिंतन के विकास के अवसर नहीं मिल पाएंगे।
यद स्कूल में शिक्षण एक ऐसी भाषा में होता है जो स्थानीय / आदवासी / अल्पसंख्यक बच्चे नहीं जानते हैं, तब वे बिना कुछ समझे प्रारंभिक वर्षों में कक्षाओं में बैठते हैं और बना समझे यांत्रिक रूप से शिक्षक की बात को दोहराते हैं। इस कारण उनमें भाषा की मदद से च्ािंतन क्षमता का विकास नहीं हो पाता है और वे अन्य अकादमिक विषय में भी पिछड़ जाते हैं। इसी कारण ये बच्चे पढ़ना, लिखना और अन्य स्कूली विषय को सीखे बिना ही स्कूल छोड़ देते हैं।
यदि बच्चों को उनक मातृभाषा, स्कूल में शिक्षण के माध्यम के रूप में मिले तो वे पढ़ाई हुई बातों को समझेंगे, मातृभाषा में संज्ञानात्मक अकादमिक भाषायी कुशलता विकसित कर सकेंगे और इस बात की पूरी संभावना होगी कि वे एक चिंतनशील व्यक्ति के रूप में अपनी शिक्षा को जारी रख सकेंगे।
शोध लगातार यह बताते आ रहे हैं कि स्कूल के प्रारंभिक सालों में मातृभाषा में शिक्षण से बच्चों के शाला त्यागने की दर में गिरावट आती है और यह कार्यक्रम हाशिए पर रुके समूहों को शिक्षा के प्रति अधिक आकर्षित करता है। जिन बच्चों को मातृभाषा आधारित बहुभाषी शिक्षा का लाभ मिलता है वे अपनी दूसरी भाषा में भी अच्छा प्रदर्शन करते हैं।
बच्चे जब अपनी मातृभाषा में शिक्षा ग्रहण करते हैं तो उनके पालक भी बच्चों के सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में सक्रिय भूमिका निभाते हैं। पालकों का इस प्रकार का जुड़ाव बच्चों के बौद्धिक और सामाजिक विकास के लिए महत्वपूर्ण होता है। भाषायी अल्पसंख्यक बच्चों के पालक प्राय: इस प्रकार की सहायता प्रदान करने में असमर्थ होते हैं।
बहुभाषी शिक्षा कार्यक्रम घर की संस्कृति, स्कूल की संस्कृति और समाज के बीच एक पुल का काम करता है। यह कार्यक्रम केवल बच्चों के सीखने के स्तर में ही सुधार नहीं करता है बल्कि सहिष्णुता बढ़ाता है और सांस्कृतिक विविधता के सम्मान को बढ़ावा देता है।
प्रारंभ में बहुभाषी शिक्षा की लागत एक भाषा शिक्षा से अधिक होती है परन्तु इस कार्यक्रम के दीर्घकालिक लाभ प्रारंभिक निवेश से बहुत अधिक होते हैं। बहुभाषी शिक्षा से उन हजारों बच्चों की क्षमताओं की पहचान कर उनका उपयोग किया जा सकता है जो समाज से छुपी रहती है।
इस प्रकार मातृभाषा आधारित बहुभाषी शिक्षा बच्चों में स्वयं को व्यक्त करने के साथ-साथ स्कूलों में अलग-अलग विषयों की अवधारणाएं सीखने का विश्वास देती हैं। यह कार्यक्रम बच्चों को उनकी भाषा, संस्कृति, उनके पालकों और समुदाय से अलग होने से भी रोकते हैं और हम ऐसी स्थिति से भी बचते हैं जहां बच्चों को एक अलग भाषा का उपयोग करने के कारण परेशान किया जाता है, जिसके कारण वे अपनी संस्कृति और विरासत के बारे में नकारात्मक सोचने को मजबूर हो जाते हैं।
9827113696, 20बी, सड़क-2, सेक्टर-1, भिलाई.

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